पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८९

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५६२ कालिदास लिखा था। राजतरङ्गिणीके मतानुसार मालगुप्त और कपूरमन्नरोप्रणेता वासुदेवने अपने ग्रन्य, मानः प्रवरसेन समकाजीन थे। माटगुप्त प्रवरसेनको काश्मीर गुप्तको अन्नवार-रचयिता बनाया है। सुन्दर मिथका राज्य दे काशीवासी हुये। राघवभने शकुन्तलाको नाव्यप्रदीप पढ़नेसे समझ सकते हैं कि मारगुप्तने टीका मानगुप्ताचार्यके कतिपय अलङ्कार श्लोक उद्धृत भरत-प्रणीत नाट्यशास्त्रको विकृति बनायी थी। उक्त किये हैं। वह पढ़नेमे प्रधान काविक बनाये समझ प्रमाणसे माटगुप्त नामका एक स्वतन्त्र कविका होना पड़ते और कालिदासके लेखनौ-प्रसूत कहनसे भी स्पष्ट हो मालूम पड़ता है। अब देखना चाहिये- पच्छे लगते हैं । प्रवरसेन तीरमाणके पुत्र थे। ववेन्द्र कालिदास, प्रवरसेन और हर्ष विक्रमादित्यके सम- की कन्या पञ्जनाके गर्भ से उनका जन्म हुवा। पहले सामयिक थे या नहीं। तोरमाणके माता काश्मीरमें राजत्व करते थे। (उन्होंने डाकर भाजदाजी प्रभृति पुराविनि प्रधानतः तोरमाणको बन्दी बना दिया।) हिरण्य और तोर हर्षचरितमें प्रवरसेन और कालिदासका उल्लेख देव माणके मरने पीछे प्रवरसेनको प्रथम अधिकार मिला उभयको समसामयिक ठहराया है। लोक यही,- न था। इस बात पर झगड़ा लगा-कौन राज्यका "कौति: प्रवरसेनस्य प्रयाता कुमुदोश्वना। प्रकत उत्तराधिकारी हो। उस समय उन्नयिनी- सागरम्य पर्व पारं कसिनेब सेतुना ॥१५॥ नाथ विक्रमादित्य (अपर नाम हर्ष) भारतवर्ष के सूबधारक तारम्भेर्नाटक ममियः। सपसायगो मे मामी देवकुलरिव ॥ १६ . एकच्छत्र चक्रवर्ती थे। उन्होंने मानगुप्तका काश्मीरका मिर्गतासुन वा कस्य कालिदासस्य सूक्ति। राज्य प्रदान किया। उक्त मानगुप्त ही कालिदास प्रीतिमधुरमास मजरोष्विष नायते । १." माक्षमुलरके मसमें तारमाण ५०० ई. और (किसी किसी मुद्रित पुस्तक, "निसर्गसुरवंगस्य कालिदासस्य विषु" प्रवरसेन ५५० ई० को विद्यमान रहे। सुतरां पाठ) कालिदास और विक्रमादित्यका विद्यमान रहना उसी उपरि उक्त शोक द्वारा इसी विषयमा परिचय समयके मध्य सम्भव था। मिलता कि प्रवरसेन और कालिदास दोनी प्रसिद्ध नहीं समझते उता मतों में कौन समीचीन है। कवि थे। किन्तु स्पष्ट मालम नहीं पड़ता-उभय माटगुप्त और कालिदास देनिको एक ही व्यक्ति मान समकालीन थे या नहीं। राजा रामदास विरचित नहीं सकते। प्रथमतः किसी प्राचीन पुस्तकमें माटगुप्त रामसेतुमदीप नामक "तुवन्ध" को व्याख्याको और कालिदास पभिन्न व्यक्ति नहीं लिखे गये हैं। प्रस्तावनामें लिखा है- राजतरङ्गिणमें कवि मारगुप्तके सम्बन्ध पर अनेक "इह तावन्महाराजप्रवरसेननिमित्त महाराजाधिरानविक्रमादित्य नासती कथा लिखी हैं। किन्तु कल्हण पण्डितने उन्हें एक निखिलकविचमाघुडामणिः कालिदासमहागयः सेतुबन्धप्रबन्ध चिको।" बार भी कालिदास नहीं लिखा। क्षेमेन्द्र-विरचित राजा प्रवरसेनके निमित्त विक्रमादित्वको पात्रासे कालिदासने सेतुबन्ध नामक प्रबन्ध रचना किया। औचित्यविचारचर्चा, सुभाषितावली और सूक्तिक- राजतरङ्गिणीमें लिखा है कि प्रवरसेनको काश्मीर- मृत ग्रन्थमें कालिदास तथा मालगुप्तके भिन्न भिन्न का राज्य मिलनेसे पहले ही हर्षविक्रमादित्य का मृत्यु लोक उपत हुये हैं। उक्त पुस्तकसमूहसे भी मारगुप्त (राजतरहिणीपू-१९०) और कालिदास परस्पर भिन्न व्यक्ति समझ पड़ते हैं। सुतरां विक्रमादित्यक प्रादेशसे प्रवरसेनकै निमित्त Dr. Bhau Dajt, Journal of the Royal Asiatic कालिदास द्वारा प्राकृतभाषामें "सेतुबन्ध" का लिखा Society of Bombay, Vol. VIII. p. 244 50. + Max Müller's India, whnt can it teach us, p. 816. भाजदाजो, मोशमन्नर प्रमति इस शोकको शेड़ गये है। किन्तु शिलालिपि चारा तीरमाण ५०० ई. के कुछ पूर्ववतो' पौर + "बिगामा मशिस्वा स बननाथ भूपतिः । उनके पुत्र मिहिरकुल ५३२-५३४ ई. के पूर्ववतो समझ - पाते हैं। विक्रमादित्यममणीत कावधर्ममुपागतम् ।" (रामतरहिनी ३ । १०) (Fleet's Inscriptionum Indicarum, Vol. III. p. 10-11.) 'हुवा था।