1 कालिदासक-कालिन्दौभेदन उनको युवावस्थाके लिखे ग्रन्थ हैं। पीछे कालिदासने | कालिन्दक (सं० लो० ) कालिन्द खार्थे कन् । तरम्बु ज, अपने भावां और विचाँगेंको अधिक सुधारा है। करौंदा। ऋतुसंहारको भी बहुतसी बातें कालिदासके दूमरे | कानिन्दिका, कालिन्दी देखो। ग्रन्थों में मिलती हैं। ऋतुसंहारमें उम्मेदशर कविन | कान्निन्दी ( म० स्त्रो०) कामिन्दात् कनिन्दात्य- भारतके एक एक भागवा वर्णन किया है। दूमरे | पर्वतात् तत्मन्निवष्टदेशाहा जाता निःसृता वा, ग्रन्थमें वह उससे बहुत आगे बढ़ गये हैं। परन्तु कनिन्द-अगा-डीप । १ यमुना नदी । २ श्रीकृष्णका ऋतुसंहारमें उन्होंने जिस भावका वौज डाला, वही एक स्त्री।३ प्रसित की स्त्री और मगरको माता । ४ दुमरे अन्योंमें वृक्ष बन गया है। इस बातका ध्यान रखना चाहिये कि कालिदास ऋतुवर्णन करने पर अरुण त्रिमृत्, निमोत । ५ वेतकिणोहि, एक प्रोषधी। बड़ा प्रेम रखते थे। ६ कोई असुरकन्या 10 एक रागिणी। मेवदूतमे वर्षा, शकुन्तलामें ग्रीष्म, विक्रमोर्वशीमें कालिन्दो-उड़ीसे का एक वैष्णव सम्प्रदाय । कान्निन्दी शीत, कुमारसम्भवमें वसन्त, मानविका ग्नविम प्रायः कोरी-चमार नीच जाति होते हैं। बह कोयोन राजाद्यानको वसंत और रघुवंशी षटऋतुवर्णन वगैरह पहने घरमें भी रहते हैं । विवाह पादि विद्यमान हैं। किन्तु ऋतुमंहारमें अवशिष्ट समग्र म्वजातिमें ही होता है। उक्त सम्प्रदाय कारीचमार ग्रंथांकि वर्णनका बीज विद्यमान है। इमसे यह विषय प्रभृति नीच जातिका गुरु है । वह शवकी न जन्ना असन्दिग्ध है कि उक्त सातो ग्रंथ कालिदासके ही मृतिकामें गाड़ देते हैं। फिर नौ दिन प्रणौच मान बनाये हैं। कालिदासक (सं० पु०) कालिदास साथै कन् । कान्नि दशम दिवम याद कर शुद्ध होते हैं । कान्तिन्दियोंकि दास, भारतके महाकवि । मठ पृथक् पृथक हैं, महन्तों के शिष अपने अपने मठमें कालिदास त्रिवेदी -एक विख्यात हिन्दुस्थानी कवि । अलग रहा करते हैं। दाक्षिणात्यके गोलकुण्डमें अवस्थिति करते समय कालि. कालिन्दी-एक शाखा नदी। वङ्गदेशक खुनना जिनमें दास त्रिवेदी औरंगजेब बादशाहके पास रहते थे। यमुना नाम्रो नदी प्रवाहित है। काचोन्दो उमौकी उसके पीछे वह नम्व प्रदेश रघुवंशीय योगजिसिंह शाखा नदी है। वह वसन्तपुरके निकट यमुनासे अलग नामक राजाके निकट चले गये। उनके पास रह हो सुन्दरवनमें रायमङ्गल नामक स्थान पर जा गिरी उन्होंने 'वधूविनोद' बनाया था । १४२३ से १७१८ ई. है। कालिन्दी सुगम्भीर है। कलकत्तेसे बड़ी बड़ी सक जिन कवियोंने जन्म लिया, उनमें २१२ कवियोंके नौकायें उक्त नदीपथसे पूर्वाभिमुख गमन करती हैं। ... छन्द एकत्र कर कालिदासने एक कविता- | कालिन्दीकर्षण (स० पु०) कासिन्दों कर्षति कासिन्दी- संग्रह प्रणयन किया। उक्त पुस्तकका नाम 'कानि कष कर्तरि व्य यहा कर्वतीति कर्षणः, कामिन्याः दासहजारा' है। कालिदासहनारा पुस्तकको विशेष कर्षणः, ६-तत्। वश्वदेव । बनदेवके कालिन्दिकर्ष पसी 'मुख्याति है। उनके पुत्र उदयनाथ विवेदी और पौत्र कथा हरिवंशमें इस प्रकार लिखी है,-किसो समय दूलह त्रिवेदी दोनों ही ग्रंथकार रहे। बलदेवने मान करने के लिये यमुना नदीको बुलाया था। कालिनी (सं० स्त्रो०) काल: शिरः अधिष्ठाटतथा अथवा किन्तु वह स्त्रीस्वभावसुलभ भौस्तावशतः उनके समीप काल प्राकाशस्थ पुरुषाकारो लुब्धकः सविरुष्टत्वेन उपस्थित न हुयौं । बलदेव यमुनाके उस व्यवहार पर अस्ताम्याः, काल-इन-डोप । १ भाद्रा नक्षत्र । काल- बहुत बिगड़े थे। फिर वह अपने अस्त्र हनुमे उन्हें यति प्रेरयति, कल-णिच-णिनि । २ प्रेरणकारिणी, पार्षगा कर वृन्दावन लेगये । (हरिवंश, १०२०) भजनवानी। कालिन्द (सं० ली.) कालि जलराशि ददाति, कालि कानिन्दोमेटन (म. प.) कान्निन्दी भिनत्ति, दा-क पृषोदरादित्वात् मुम् । कालिङ्ग, तरबूज, कालिन्द्या भेदनो वा मानिन्दो-भिट् कतैरि ल्य. कांदा। बलराम ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५९५
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