पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काम्बाज उक्त मञ्चको छोड़ थोड़ी दूरः पविम चलनेपर विकीपणाकार और छह तलम विभत है। प्रत्येक दूसरा सुदृश्य मञ्च मिलता है। यहां कम्बोजके तलमें निगम विद्यमान है। अपर ही.. ...अपर स्यापित राजावों और उनके परिवारवालोंको मूर्ति खुदी हैं। हो अन्तको ३८ हांथ , अचे विभुजने मन्दिररूप इस कारकार्यका पारिपाव्य देख चमत्त होना धारण किया है। प्रत्येक मध्यस्थलमें सिड्डी है। पड़ता है। ऐसा भड़कीला दृश्य कम्बोजमें दूसरे उसमें जो सिंहमूर्ति खोदित रहो, वह आजकल प्राय: स्थानपर कहां देख सकते हैं। कहीं पीनोवत-पयो देख नहीं पड़ती। निगमके प्रत्येक कोणमें गजमूर्ति धरा सुचारुहासिनो राजमहिला विविध अन्लारसे विद्यमान है। मन्दिरको चारो ओर दृष्टकनिर्मित विभूषित हो एक स्थपर बैठो समारोहके साथ बीचमैं क्षुद्र क्षुद्र आठ मन्दिर हैं। स्थानीय लोगोंके कथनानु- चली जा रही है। अपर चित्रविचित्र चन्द्रातप सार वहांत प्रधान मन्दिरको सीमा चली गयी है। दोदुख्यमान है। फिर उन्होंके पश्चात् दिव्यरूपधारिणी पाठो मन्दिरके तोरण-पाचौरमें संस्कृत भाषासे ६१. मनोमोहिनी राजकन्या नरचालित रथपर चढ़ मानो पति लिपि खुदी है। इससे मन्दिर के निर्माताका किसी स्थानको गमन करती हैं। उनके साथ सखी कुछ परिचय मिलता है। कम्बोजक राजा इन्द्रवर्माने पुष्यचयनकर उपहार देती हैं। दास और दासी दोनों हरगौरीपूजाके चिये उक्त मन्दिर बनवाया था। निकटवर्ती फलशाली वृक्षसे फल लाकर छोटे छोटे बकु नामक स्थानमें पास ही पास छह शिवमन्दिर बच्चों को बांटते हैं। राजकन्यावौके पार्ख पर सह बने हैं। प्रत्येक प्रवेशद्वारके प्राचीरपर बकरके चरियों में कोयो चामर डोलाती, कोई मस्तकापर छाता मन्दिरको भांति संस्कृत भाषा लिपि खोदित है। लगाती और कोयी सुखादु कर लिये अपनी स्वामिनी बकरके मन्दिरसे केवल संरक्षत भाषाको लिपि निकली, को देखाती है। उससे अदूर निर्जन उपवनका किन्तु बबुके मन्दिर में संक्षत एवं कम्बोज-प्रचलित दृश्य है। गिरिमाथाके मध्य तराजी खड़ी है। खम भाषाको लिपि भी मिली है। शिलालेखके तरके तलपर मगमा शिश खेल रहा है। फिर तरको अनुसार परमेश्वर और इन्द्रेश्वर नामपर उक्त देव- शाखापर नानाविध पची बैठे मन्दिर उत्सर्ग किये गये हैं। बकुमें तीन शक्तिमन्दिर मंचके उपरिभागमें कवचायत राजपुरुष, नर्तक है। मन्दिरका कासकार्य अति सुन्दर है। .. और धानुष्क दण्डायमान हैं। इनकी वेशभूषा भी बकुसे कोई. पाव कोस उत्तर चलने पर खोलि राजसभाके लिये उपयोगी है। सम्मुख ही रानसभा नामक स्थान मिलता है। वहां ष्टकनिर्मित चार है। कुण्डलधारी जटाजूट-विलम्बित ब्राह्मण गन्धौर देवमन्दिर है। स्थान स्थानपर भग्न स्तम्भ पड़े हैं। भाव समासीन है। राजा और राजकुमार पदोचित उन्हें देखते ही समझ पड़ता-यहां कोई बहत् वेशभूषा बना यथायोग्य प्रासनपरं उपविष्ट हैं। देवालय रहा। आजकल मञ्चका और भित्तिका अस्त्रधार योहा राजसभाको उज्ज्वल कर रहे हैं। सामान्य व सावशेष मात्र पड़ा है। प्रत्येक मन्दिर में चत दृश्य देखनेसे धारणा पड़तो-प्राचीन भारतीय वाट्रिक अनुशासनलिपि खोदित है। उसको.पढ़नेसे राजसभा. किस भावसे लगती थी। परम वैष्णव समझ पाये-पाखोमराज यशोवर्माने ८१५ शकको जयवर्मा अधोरवटको उक्त महामोति. स्थापन कर शिव एवं भवानीके सेवार्थ, उस मन्दिर बनवाये थे। गये हैं। वह अपने उत्तराधिकारियों को देवसेवामें विशेष : 'अहोरषट नामक मन्दिरसे दक्षिणपूर्व साढ़े पांच मनोयोग करने के लिये पुनः पुनः पादेय दे गये हैं। फोस दूर दूसरे भी तीन पवित्र स्थान विद्यमान है। : अपर जिनके संक्षिप्त विवरण दिये, उनको छोड़ उनके नाम बकर, बकु और लोनि. है। दूसरे भी अनेक मन्दिर बने हैं। उनमें बेवोन नगरका बड़का मन्दिर प्रति प्राचीन है। वह देखने में मद्यामन्दिर हो सर्वप्रधान है। शिल्पशास्त्रवित् Vol. IV. 1 16