६.४ कालौचरण-कालीन किन्तु वर्तमान फोर्ट-विलियम निर्मित होने के समय भारतवर्ष, सिंहल और मन्नाकामें वह सब जगह वह कालीघाट में स्थानान्तरित हुयी। पायी जाती है। कालीघाट आजकल कलकत्ता म्युनिसप्लीटीके बीजसे एक प्रकारका तेम्न निकलता, जो नवामें अधीन एक गण्य नगर बन गया है। वहां बहुत लोग पड़ता है । वेचनेके लिये कालोजोरीका तेल नहीं बाजार, थाना, डावाघर, विद्यालय प्रभृति निकाला जाता। विद्यमान है। वह श्वेतकुष्ठ और चर्मरोगका अव्यर्थ प्रोषध है। कालीचरण-हिन्दीके एक सुकवि। यह कान्यकुम कालोजीरी खाने और लगाने दोनों काममें पाती है। माला गोवर्धन के तेवारी थे। इनके पितामहका नाम उसके खानेसे मंतका कोड़ा मर जाता है। सांपके पण्डित रामवर श और पिताका नाम पण्डित दुर्गा काटे घाव पर कालीजोरीका पुलटिस चढ़ता है। प्रसाद था। जन्म १९३२ श्रावण कृष्ण सप्तमीको कालोजीरीके सेवनसे वार्धक्य दूर हो जाता है। हुश्रा था। सं० १८७३ माघ शुक्ल चतुर्दशीको यह किन्तु उसको बहुत थोड़ी मात्राम खाना चाहिये । खर्ग सिधारे। कविताका सपनाम 'नवकच या वृक्षको घरमें जलाने या उसको बुकनी फर्श पर "कच्च' रहा। कानपुर जिले का मसवानपुर ग्राम फैलानसे मच्छड़ भागते हैं। इनका जन्मस्थान था। इनको कविता बहुत अच्छी कालीजोरीका घ८ हाथ बढ़ता है । पत्र बनती थी। यथा- गाढ़ हरितवय ५ । ६ अङ्ग लो प्रशस्त और तीक्ष्याम "सहर' वम सौरसमीरनी नव मौरनसौहार नहरें रहते हैं । उनका प्रान्तभाग दन्तुर होता है। काली- गय कम पिक कोकिल भी मीरवा धुरवा धुनिमें कार जीरो प्रायः वर्षाकालमें उपजती है। पाखिन कार्तिक हरियारी भर वर यागनम लख लीमी लवगालता लारें। मास उसके अग्रभाग पर जो गोलाकारद्वन्तके गुच्छ चई पोरगते चपला कहर, घनघोर घटा नममें घारें।" निकलते हैं उनमें क्षुद्र क्षुद्र नौलोवर्ष के पुष्प पाते हैं। क्षालीची (म० वी०) काल्या यमभगिम्या चीयते ऽत्र, पुष्य पतित होनेपर वृन्त बढ़ने लगते हैं । वृन्त कालीचि बाहुलकात् ड डोष, । यमविचारभूमि, यम स्फुटित होनेसे धूसरवर्ण रोम निकलते हैं। काली. राजक इनसाफ करने की जगह । जोरी कटु एवं तिता होती है। क्षाक्षीजभान (हिं० स्त्री०) प्रशभ भाषा, खराव वयान्। | कालीतनय (सं० पु० ) काल्याः यमुनाया यमभगिन्या:- जिस जिद्वासे उच्चारित प्रशभ विषय सत्य निकलते, तनय एव, यमवाहनत्वात् इति भावः । यहा काली उसे 'कालीजबान' कहते हैं। कान्तिकादेदों इतः जातः सन् वलिदानाय आत्मदान क्षालोजीरी (हिं. स्त्री०) क्षुद्रजीरक, छोटा जीरा । नयति प्रापयति, कालो-इस प्रतः काली तनी अच् । (Vernonia anthelmintica ) sawit हिन्दी महिष, भैसा । पर्याय सोसराज, बाकची, बुकशी और वपची कालीदह (हिं. पु.) दविशेष, एक कुण्ड । बन्दावन है। कालोजीरोको बङ्गालमें हाकुच, उड़ीसा, सोम में यमुनाके जिस इदमें कालियानाग रहता, उसोको शराज, पंजाबमें कड़वी नौरी, बबई में कलेन जौरी, हिन्दीभाषाभाषो कालीदह कहते हैं। खारवाड़में रानाचजीर, गुजरातमें कण्डवोजोरी, | कालीन (सं० त्रि.) काले भवः, शाल-ख। कालजात तामोसमें काह, शिरेगम, तेलगुमै विषकण्टवालु, उपपद व्यतीत कालीन शब्द प्रयुक्त नहीं होता । जैसे झानारसे काडु जिरेग, मन्नयों काह निरकम, पूर्व कालीन, उत्तरकालीन प्रति। सिंहलामें सबिनायगम, परवमें इविलास और फारसमें कालीन (अं• पु. ) कुथ, पास्तरण, फर्श, गलीचा। अतरवाल कहते हैं। वह जन या सतसे बुनकर तैयार किया जाता कालोजोरी लंबी, मजबूत और पत्तेदार होती है। कालीन पर रंग रंगके बेलबूटे रहते हैं। उसका ताना.
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