पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६०२

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कालौनत्व-कालौयक खड़े बह रहता यानी अपरसे मोचेको लटकता है | काशीप्रसाद-१ कोई अन्यकार । उन्होंने . काली- तत्त्वसुधासिन्ध और भबिदूतो नामक दो संस्कृत रंग बिरंगकै तागे बानमें जोड़ दिये जाते हैं । तागोंके -ग्रन्य बनाये थे। सारसंग्रह नामक वैद्यक अन्यकार। किनारे कट जानसे कालीन रुयेदार मालम पडसा है। हमका काशीन प्रसिद्ध है। भारतर्ष के झांसौ नगर- कालौफुलिया-पक्षिविशेष, किसी किसका बुलबुल में भी अच्छे अच्छे कालीन बनते हैं। बादशाह अक- कालीवावड़ी-मध्यभारतके धाराप्रदेशका एक क्षुद्र बरने उत्तर-भारतमें इसके व्यवसाय को उत्तेजना दी थी। गन्य । कोई भूइयां उसके अधिकारी हैं । धर्मपुर पर- कासीनत्व (सं० क्ली) कालीनस्य मात्र, कातीन-त्व । गनेके रक्षणावेक्षणको उन्हें धारा-दरबारसे १५००) कालत्तित्व, वक्त पर हाजिरी। मिलता है। इस परगर्नमें ५ गांव मौसी हैं। काली नदी-युक्त प्रान्तकी एक नही । वह सुनकर राजस्व भांति उन्हें प्रति वर्ष ५०० रु० देना पड़ता नगरस्थ गङ्गाकी नहरके पूर्वभाग सराय नामक स्थान है। वोकानिरके भी १७ ग्राम उनके तत्वावधानमें है। उसके लिये उन्हें से धिया महाराजले १५९).रु. के वालुका स्तूपके निकट निकाली है । सत्यचिस्थानसे कुछ दूर तक उसे नागन कहते हैं। नागन अलक्षित मिलता है । भुश्यों के साथ उक्त सकल विषयों को जो भावसे वह बुलन्दगहरकी पास जा बड़ी नदी बन गयो लिखा पढ़ी हुयी, उसमें अंगरेज जामिन है। है। फिर काली नदी खुरजाके निकट दक्षिण-पूर्वाभि- | कालीवेक्ष (हिं. स्त्री०) साविशेष, एक बेल । वह मुख चल काबीज में गङ्गासे जा मिली है। वुलन्दशहरमें एक वृहत् लता है। इसके पत्र २ । ३ इन्च दोघे उस पर एक पक्का पुल बना है । सिवा उसके गढ़ होते हैं। काला न-चैत्र मास पोंमें ईषत् हरितवर्ण मुक्तकहर जानकी राह एक गुलावटीमें और तीनोपली. क्षुद्र क्षुद्र पुष्प निकलते हैं। वैशाख-ज्येष्ठ मास फल गढ़ जिलेमें भी उसके पुल देख पड़ते हैं। इसे पूर्व लगनेका समय है । कालीवेल उत्तर--भारत, मध्य. काली नदी कहते हैं। वह देय में १५५ कोस है भारत और पासाम प्रभृति देशमें उत्पन्न होती है । 'उसको छोड़ एक पश्चिम कामो नदी भी है। वह कालीमिट्टी (हिं. स्त्रौं० ) चिकणमृत्तिका-विशेष, शिवालिक पर्वतसे निकल सहारनपुर और मुजफर चिकनी महो। वह बाल धोने के काम पाती है। नगरसे वहती हुयो हिन्दन नदीमें जा गिरी है। कालीमिर्च (हि.स्त्री.) मरिच, गोलमिर्च । वह. खट्टे सङ्गमकास्थान पक्षा. २६° १८:१० और देशा. ७७० मोठे दोनों प्रकारके मसाले में पड़ती है । मरिच देखी। ४.पू. पर अवस्थित है । पश्चिम काली नदीका काचीमिर्जा-एक हिन्दुस्थानी वैष्णव कवि । ष्णानन्द देय ३५ कोस होगा। व्यासके बनाये रोगसागरोजव . रागकपद्म नामक कालीपुराण (सं• लो०) एक उपपुराण। उसमें कालो अन्वमें उनकी कविता उहत हुयी है। विषयक विवरणादि वर्णित है। - कालीमुझा-दाक्षिणात्यवाले कालीप्रसन्न कलकत्ता जोडासांकोके अहमदाबाद. बिदरके .एक विख्यात ब्राह्मणवंशीय शेष राना। १५२७ ई. को उनके जमीन्दार । उनका जन्म सिंहवंशमें हुवा था। उनके मन्त्री अमीर बरीदने में दूरीभूत कर स्वयं राज्य प्रपितामह मान्तिराम मुरशिदाबाद और पटनाके अधिकार किया था। दीवान् थे । कालीप्रसन्नके पिताका नाम प्राणशष्य था। कालीय (सं० क्लो) कालस्य ववर्ष स्येदम्, काच- 'वह संस्कृत, बंगला और अंगरेजी भाषामें बहुत स्थाने भर्व वा, काल-छ । इहाछः । पाप १४४ ११वष्णः निपुण थे। उन्होंने मूल संस्कृत महाभारतको बंगलामें चन्दन ।२ नागविशेष, एक सर्प। कालिम देखो। अनुवाद कग विनामूल्य वितरण किया, जिससे बड़ा कालीयक (सं० लो०) कालीय स्वार्थ-कन्, कालीय मिव यश हुवा । इसमें अपरिमित अर्थ लगा और बम पड़ा कायति वा, कालोय-कैक ! १ पीतषण सुगन्धि काष्ठ- था। उनमें दानशीलताका भी बड़ा गुण रहा । . विशेष, किसी किस्म का खुशबूदार पोन्ला मुसब्बर । Vol. IV. 1 । .. . 152