सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विजयी होनेपर सरकारने उन्हें ३०००१) रु० पुरस्कार दिया। वीर थे। -- ६०६ कालोयका-कालय इसका संस्क त पर्याय-नायक, कालानुसार्य, कालेय, रोधके समय अंगरेनोंको फौज बहुत मारी जाने पर वर्णक और कान्तिदायक है। २ कृष्णचन्दन, कान्ता जेनरलकी पोशाक पहन युह किया था। समरमें सन्दल । उसे संस्क तमें कानोय, कालिक और हरि- प्रिय भी कहते हैं। (पु०) ३ दारुहरिद्राविशेष, एक दार वह अति धार्मिक, दयालु, उदार और सदी। ४ शैलन नामक गन्धद्रव्य । ५ कालिय नाग । कालीयका (सं० स्त्री०) दार हरिद्रा, दार हलदी। कालुराय-बङ्गालके एक ग्राम्य देवता । बङ्गाल में कालीयकक्षोद (सं० पु० ) कुमुम, रोरो। कालुगय और दक्षिणगय दो गाम्यदेवता पूजे जाते हैं। कानीयागुरु (सं० क्लो०) कृष्णाशुरु-क्षान्ना अगर । वह वनदेवता है। बनके निकट राह किनारे पेड़को कालौरसा (सं० स्त्री०) कदली वृक्ष. केले का पेड़ । जड़में मृण्मय देहशून्य मनुष्य मातक प्रतिष्ठिन कर. कालीनर (Eि स्त्री० ) लताविशेष, एक बेल । उनकी प्रति कल्पना की नाती । उस प्रतिमा सिकिम, पासाम, ब्रह्म पादि देशों में उत्पन्न होती है निकट मृण्मय व्यान और कुम्भीर की मूर्ति भी रहती पत्रकसे नीलवर्णक निकन्नता है। है। पूजामें छाग पोर इस वलि देते है। कालीशहर भट्टाचार्य-एक प्रसिद्द नैयायिक । उन्होंने रायमान और दहियराय देखो। जगदीश एवं मथुरामाथविरचित नव्य न्यायग्रन्थसमूह | कालुष्य (सं• लो०) कलुषम्य भावः, कलुष या । पर क्रीड़पत्र तथा टोकाको लिखा है। आजकल १ कलुषता, मैल । २ असम्मति, निफाक । कालीशङ्करके निम्नलिखित ग्रंथ मिलते हैं, -प्रनुमान- | कालू (हिं. स्त्री० ) मन्ताविशेष, मोपको मछली, जागदीशीकोड़, अनुमितिकोड़, अनुमानमाथीकोड, नोना कोड़ा। अवच्छेदकत्वनिरुतिकोड़, अमिसिद्वान्तग्रन्थकोड़, | काल्हु-बङ्गालको तेलो जाति । एम जातिमें कुछ लोग पसिधपूर्वपक्षकोड़, उदाहरणलक्षणक्रोड़, उपनयनकोड़. विद्वान भी हैं। साधु, सेठ पादि जातिके उपाधि उपाधिपूर्वक्रोड़, उपाधिसिहान्तग्रंबक्रोड़, कूटघटितन. होते हैं। कोई इन्हें चत्रिय, कोई वैश्य और कोई क्षणक्रोड़, कूटाघटितलक्षणकोड़, ढतीयमिक्षण होन शूद्र कहता है। आचार विचार अच्छा है। कोड़, पक्षतापूर्वपक्षग्रन्थकोड़, पक्षतासिद्धान्तग्रन्थकोड़, कालूतर (सं० वि० ) कलतरे तबामकटेशवियेपे भवः, पक्षलक्षणोकोड़, परामर्श पूर्वपक्षग्रंथ क्रोड़, पुच्छलक्षण कलूतर-प्रण। कच्छादिभ्यय । पा ४ । २।१३॥ कन्नतर ‘ोड़, परामर्थ सिद्धान्तयक्रोड़, प्रतिज्ञालक्षणक्रोड़, देश जात, कलूतरकै मुतालिक । प्रथमचक्रवर्तिलक्षणक्रोड़, प्रथमनिययलक्षणकोड़, कानपन्थी -एक धार्मिक सम्प्रदाय। एक समय काल बादसिहान्तग्रंथकोड़, विशेषनिरुक्तिक्रोड़, सत्पतिप. नामक कोई कहार रहा। उसने अपना पन्ध चम्नाया घसिद्धान्तकोड़, सव्य भिचारपूर्वपक्षग्रंथक्रीड़, सामान्य था, जिसका नाम कालुप पड़ा । कालूपये निरुक्तिकोड़, सिंहव्याघ्रकोड़, जागदीशीको टीका, अनुयायी हो कालपंथी कहाते हैं। इस पंथमें प्रायः तर्वांगंथटीका, चमार, सैनी, गंड रिये प्रादि पाये जाते हैं। युत कालीशीतला (हिं. स्त्री०) शीतला रोगविशेष, किसी प्रदेशके मेरठ जिलेमें ३ लाख कालूपयो रहते हैं । किस्माकी चेचक | उसमें कृष्णवर्णद्रण निकलने, जो कालेन (म०वि.) नियत समय पर उत्पन वा उत्या. रोगीको बहुत खुजलाते हैं। दित, ठीक वक्त पर पैदा होने या किया जानेवाला । कालीसिन्धु-मध्यप्रदेशको एक नदी । वह विन्धर | कालेन (अं० पु०) कास्टिज देखो। , पर्वतसे निकल कांदगांव के निकट चम्बलम गिरी है। कालेय (सं० ली.) के मुखं पालेयं पादेयं यस्मात, कालीहरं (हिं. स्त्री०) क्षुद्र हरीतको, छोटी हरे। बहुव्री०। १ कानीयक काठ, एक पोनी खुमदार कालुंधोष-एक बङ्गाली वीर, उन्होंने भरतपुर भव लकड़ी । २ कुडुम, रोरी । कन्नायै रहनाधारिखे हितम् स, माथु रोटोका।