पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६३१

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एक शिव- काशी दिवोदासका कोई छिद्र निकाल न सके । वहां वह जय दिवोदासको मंसार-वैराग्य उपस्थित हुवा। वह बायीको मायामें विमुग्ध हो रहने लगे। योगिनीगण उस व्राह्मणको प्रतीक्षा करने नगे। अष्टादए दिवस की भांति सूर्य भी लोटे न थे। उस समय महादेवने विष्णु ब्राह्मणके वेशमें दिवोदासके ममोप उपस्थित अपने गणधरको पूर्वको भांति उपदेश देकर काशी हुये । महारान दिवोदामने अभिप्रेत ब्राह्मणके दर्शनसे मेना। वह भी वहां जाकर काशीको विमोहिनी शक्ति- परम प्रानन्द नाम किया था। उन्होंने ब्राह्मणवरको से विमुग्ध हो गये पार योगिनीगणको भांति दिवोदा सम्बोधन कर कहा-'हे द्विजोत्तम! वहुदिन राज्य- सका अनिष्ट साधन कर न सके। इधर महादेवने भारके वहनमे हम लान्त.हो गये हैं। हमारे मन में उनका कोई संवाद न पा विशेषतः काशीके विरहसे संमाग्वैराग्य उपस्थिन हवा है। प्राज पाप हमसे जो अस्थिर हो गणेशको प्रेरण किया। गणपतिने काशी जा कहेंगे, हम वही करेंगे। ब्राह्मणरूपी विष्णुने राजा. वृह दैवज्ञका वैश बनाया था। फिर वह काशीवासी. की नाना प्रकार उपदेश दे कहा-महाराज! यही को भाग्यलिपि गणनाकर सबको विस्मयाभिभूत करने एक बड़ा दोष है कि प्रापने विश्वनाथको भागोसे और यह कहते धूमने लगे कि काशीमें रहने से लोगों दूर कर दिया है। यदि इस महापापको शान्ति चाहैं, को घोर अनिष्ट झेलना पड़ेगा। वृह दैवज्ञको वातमे तो आप काशी में शिवलिङ्ग प्रतिष्ठा करें। 'काशीवासियोंको भय हुवा । फिर बहुतसे लोग काशी निङ्गको प्रतिष्ठासे सहस्त्र अपराध विनष्ट होते हैं।' छोड़ने लगे । क्रमशः वृद्ध दैवज्ञको सद्भत गणना कथा महाराज दिवोदासने ज्येष्ठ पुत्र ममनयको राज्य में दिवोदासके अन्त:पुरमें पहुंची थी। इसी प्रकार गण. अभिषिक्त कर संसारका संसब छोड़ा था । उन्होंने पतिने राजाके अन्तःपुरमें प्रवेश लाभ किया। फिर विष्णु के पाद भानुमार गङ्गाके पचिम तटपर एक वह भाग्यगणना द्वारा गजमहिनाके हृदय में विश्वास शिवालय बनवा उसमें दिवोदासेश्वर नामक शिवलित उपनाने लगे। कपटी दैवन्नने राजीगणके मध्य क्रमशः प्रतिष्ठा किया । सप्तम दिवस शिवमपरिवेष्टित ज्योति- महासम्मान लाम किया था । रानमहिना प्रमानात्में | मैय रथ जाकर उपस्थित हुवा । महाराज रिपुत्रय राजासे उनके गुणको वहुविध प्रशंसा करने लगी। उस पर बैठ स्वर्गको चले गये। हमी प्रकार महात्मा किंसी दिन राजाने हा देवनको बोना बहुतसी बाते' दिवोदास का निर्वाण हुवा । उसके पीछे महादेव पूछी थीं। देवनरूपी गणपतिने नानाप्रकारसे राजा. देवी पार्वतीके माय फिर अपने प्रियदेव कागो की मनोमुग्ध कर कहा-'महाराज ! उत्तर देशसे एक धाममें पहुंच गये।" काशीखण्डक विवरण पाठसे ऐसा अनुमान किया मायण भापके निकट भावेंगे। वह जो कहें, पाप उसे सर्वतोभावसे पालन करें। इससे पापके सकस जाता है कि प्रथमतः वहां ब्राह्माण्य धर्म प्रबलथा। उस- विषय सिहोंगे। के पीछे बुद्धदेवके अभ्युदय और वौद राजाओं के .: "इधर मंदरासीन महादेवने गणनाथका विलम्ब पाधिपत्वप्रभावमें वाराणसीसे हिन्दूधर्म एक बारगी ही विलुप्त हो गया, यहां तक कि वाराणसी धाम वौह- देख विष्णुके प्रति साग्रह दृष्टिनिक्षेप किया था। फिर तीर्थ कहलाने लगा। अवशेषको राजा रिपुञ्जयके उन्होंने अनेक कथा उपदेश कर उनसे कहा- राजत्वकाल शाक्त, व, मोर, गाणपत्य और वैष्णव विष्णो ! देखो अन्यान्य व्यक्ति की भांति तुम भी काशी में क्रमश: प्रबल पड़ गये। वैष्णव द्वारा काशोमे चौडधर्म भांचरण न करना। विष्णु यथोचित उत्तर दे.कृष्ट अथवा बोइ-प्राधिपत्य तिरोहित हुआ था। यह विषय मनसे काशीको चलते हुये । प्रसङ्ग क्रमसे कागोखण्ड में लिखा कि काशिराज विष्णुने लक्ष्मीके साथ काशी जा काशिवासियों को रिपुनय दिवोदास के # समय काशीमें बौद्धधर्म प्रवस मायासे विमुग्ध किया था। उससे अधिकांश लोग है। यथा- खधर्मच्युत होने लगे। दूसरे दैवके उपदेशसे रिपु * या दिवोदाम महामारत पीर पुरायोक प्रतर्दनके पिता रिबोदाम सिंघ