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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६३२

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काशी स्वयं उत्पन्द्र और विलीन होता ब्रह्मादि स्तम्ब पर्यन्त "नवस्तु सौगतं रूपं विवाय थोपक्षिः सयम् । अतीय सुन्दरतर लोकायापि मोहनम् । २ । जितने देही है, एक अद्वितीय पाया ही उन सबका सौ परिवानिधानासा निसरी सममाति...... रखर है। उससे खतन्त्र अन्य किसी सशक्षा अस्तिल सवः प्रीवाच पुस्यामा पृष्णकोतिःस सौगतः।। समझ नहीं पड़ता। हमाग यह देश जैसे कालवा शिष्यं विनयकौति महाविनयभूषणम् ॥१॥ विन्तीन होता, वैसे ही ब्रह्मादि देवगणसे मशक पर्यंत खया विनयको यो धरः परः सनातनः । सकन्त माणियोंका देह वस्त्र निर्दिष्ट कानके अनुसार : बधाम्यहमभेषक पवद तं महामते ।। पनादिसिद्ध सारः क कमविवर्जितः । विलय पाता है । विचारपूर्वक देखनेसे जीवगायके खरं पादर्भवेदप स्वयमेव विजयते ॥८॥ देहमें परस्पर किसी प्रकार न्यूनाधिश्य नहीं पाता । बधादिप्तम्बपर्यन्न यार मिश्चमम् । कारण सर्वच सर्वदेहमें बाहर निद्रा और भय सम पात्मकपरस्तव न रितीयस्तदीगिता भावसे विद्यमान है। मैं जिस प्रकार मरण भय हो यथाबादादीमा खकारीन विलीयते । रहता, उसी प्रकार ब्रह्मादि कोट पर्यन्त सकल देह बह्मादिमकालामा नकाशाजीयते तथा विचाईमाणे भिन्न किश्चिदधि कचित् । धारीको मरना ण्ड़ता है। बुद्धिपूर्वक विचार करने से यह पाहारी मेधुन निद्रा मर्थ सच यत् समम् ।। स्थिर होता, कि मकल प्राणी समान है। सुसरा वही प्रमादिकोटकाला तथा भरपती मयम् ॥२६॥ करना चाहिये, जिसमें किसी प्रकार प्राणिहिंसा न सर्व तनुतस्तुभ्या यदि बुध्या विचारत। हो। पूर्वतन पण्डितोंने कहा है-"पहिंसा परम धर्म मिचिस्प कैनापि मी हिंसः कोऽपि कृषि, है।" इसी कारण नरकमीत पुरुषों को कभी प्राणि- अहिंसा परमो धर्म रसील: पूर्वरिभिः । हिंसा करना चाहिये । हिंसाकारी भौषण नरक सध्यान रिमा कर्तब्ण भरमरकमौकमि BER सिको भर के गत बगं बच्छंदस्मिक गमन करते हैं। पहिंसक व्यक्ति स्वर्ग पाते हैं। सुख भुषु अन्यमानेषु यत्या विसर्जनम् । भोग करते करते देश विसर्जनका नाम ही परम मोहे पयमैव परो मेयो म मोधोऽन्यः कचित् पुनः ॥१०॥ । एतद्भिब अन्य कोई मोक्ष नहीं होता । वासना बामनासचिसोशसमुच्छ ६ मति भुवम् । साथ पञ्चविध ले का समुच्छेद होने पर विज्ञानका विधानो परमी मोची विशेयस्तत्वचिनकः॥१॥ नाम ही यथार्थ मोक्ष है। तत्त्वज्ञानी व्यक्ति ऐसा ही प्रामाथिको अतिरिय प्रौद्यते पैदवादिभिः । निश्चय करते हैं। वेदवादी यह प्रामाणिक श्रुति कीर्तन महिंसात् सर्व तानि नान्या हिंमा प्रतिक्षा॥१८॥ करते हैं-'समस्त भूतगगकी हिंसा करना न चाहिये पनियोमीयमिति या यामिका साऽसवामिड हिंसाप्रवर्तक कोई श्रुति प्रामाणिक नहीं। 'अग्निषो. नसा प्रमाणे चातयाँ पश्चालम्भनकारिका ॥ १४॥" (कायोक्षण ५.) मीयमें पशुहत्या करना चाहिये' इत्यादि जो श्रुति हैं, व कैवक प्रभावोंको धान्ति बढ़ानेको है । विहान भगवान् श्रीपतिने परममोहन सौगत (वह) रूप परिस उसको प्रमाणकी भांति खोकार नहीं करते।" और लक्ष्मी देवीने भी उसी समय परम मनोहर इत्यादि। परिबालिका रूप धारण किया ...पुण्यकीर्ति नामक काशीखण्इमें कायावासियाँको मोहित करनेके बौद्ध परिधाजपधारी भगवान् अपने प्रिय शिष लिये विष्णुकै बौहरूप परियडको कथा लिखी रहते विनयभूषण विनयकोति को सम्बोधन कर इस प्रकार वस्तुतः इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह रूप क वर्ग ना निज धर्म व्याख्या करने लगे-'हे विनयकोर्ते ! तुमने मात्र है। उक्त प्रस्तावने इसना ही अनुमित होता सनातन धर्म. विषयक को सकल प्रश्न किये, हम किसी समयमै कायो में बोहधर्माववियों ने प्रबल हो पशेष प्रकार से उनका उत्तर देते हैं। तुम सुनो। यह हिन्दूधर्मको अवमानना को यो। सम्भवतः रिपुक्षय संसार अनादि है। इसका कोई कर्ता नहौं । यह दिवोदास भी प्रथम बौह रहे। काशीष में लिखा है,