काशी उक्त स्थान पर पिण्डदान करनेसे पिटगणको ब्रह्मापद सिलेवार भनेक मन्दिर देख पड़ते हैं। वहीं ललिता मिलता है। (काशीख ३१०) दिवोदासेश्वरमन्दिरको देवोके मन्दिर-निकट जलशायी विष्णुमन्दिर और राज- छोड़ कुछ पागे बढ़ने पर पार्श्व में विशालाक्षी देवी वलम देवान्तय है। गङ्गापक्षसे उन सकल मन्दिरका का मन्दिर नयनगोचर होता है। (कायोखण्ड ३३ ॥ १०५) दृश्य पति सुन्दर सगता है। विशालाक्षी मन्दिरके पीछे मोरघाट पर सिल. वाराणसीके उत्तर-पश्चिम कोणमें भागकूप नामक पड़ता है। असायी विष्णुमन्दिर । सोध । पानकर वह स्थान नागकुवा महमा का कोषमें अमेठी राजमदत्त पत्थरको एक सिंहमति है। माता है। वह पंश वाराणसीका प्राचीन भाग समझ एतशिव राम, लक्ष्मण, सीता प्रति और नवपकी प्रायः १३५ वर्ष पूर्व किसी रागाने सक्त मूर्ति भी है। कूपको विस्तर व्ययम पुनः संस्कार करा पत्थर से बंधा वागोखरीमन्दिरके निकट ज्वरहरखरका दिया था। उसको सिट्टी पर एक स्थानमें ३ नागमूर्ति और सिद्धेसरका मन्दिर है। अनेक लोगों के विश्वासानु- पौर अपर खाममें एक शिवलिङ्ग देखते हैं। यहां नाग और भागबरशिवकी सार ज्वरहरेश्वर महादेवको पूजा करने से सर्वप्रकार पूजा होती है। ब्बर निवारित होता है। उसी प्रकार सिद्देखर मागकूपसे थोड़ी दूर वागोखरी देवीका मन्दिर है। मानवको मनकामना सिद्ध करते हैं। उसको देवो मूर्ति अष्टधातुनिर्मित है। शिर पर हरत मुकुट शोभित है। वागीश्वरी देवी सिंझोपरि अवस्थित उक्त मन्दिरों में शिल्पनैपुण्य तथा कारकार्य अच्छा है। हैं। मन्दिर भी देखने योग्य है। उसके बरामटेंमें वाराणसी में दशाश्वमेधघाट भी एक महातीर्थ नानावणं देवदेवीको मूर्ति चितई । मन्दिरके एक यहां शत शत मन्दिर बने हैं। Vol. IV 162
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