काश्मीर करते भी देशाधिकार कर न सकते थे। शेषको प्रक उभय पक्ष एक दूसरे के उद्देश नानाविध कुत्सित खेल वरके अधिकार करने पर जहांगीरने परामर्श कर पुरु खेलते हैं। वह भले प्रादमीयों के देखने योग्य नहीं होता। पोको बस्तपूर्वक स्त्रीवेश धारण कराया। प्रथम प्रथम झगड़ेको कथा वा अङ्गभङ्गी भी कोई भला आदमी वह उल वेश विना युद्ध धारण करने पर स्वीकृत हुये | देख या सुम नहीं सकता। साधारणत: काश्मीरी न थे। किन्तु शेषको उन्होंने उसे स्वीकार किया। प्रत विनयो, मिष्टभाषी और परोपकारी होते हैं। एव पुरुष परिच्छेदके साथ उन्होंने पुरुषोचित-साइस यह दोनों वैसा पाहार करते हैं । अन्न और मसा भी खो दिया है। उनका नित्य खाध है । उत्तप्त अन्नको अपेक्षा कड़ा पाचार-व्यवहार-काश्मीरी बहुत पपरिष्कार रहते हैं। सूखा भात, नमक मिर्च मिला चरपरा कड़म शाक, उनका वस्त्रादि, गात्र और वासगह साक्षात् नरक कुछ मछली और एक प्याला चाय काश्मीरियों के लिये जैसा देख पड़ना है । शौसको छोड़ देते भी अन्य पति उत्तम भोजन है। इसलिये जो महीने में दो किसी समय वह वस्त्रादि नहीं धोते। क्या स्त्री क्या रुपये कमाता, उसका भी समय मुख से कट जाता है। पुरुष सभी प्रकाश्य स्थलमें नग्न हो नान करते है। चाय वह नित्य पीते हैं। नस्य और चाय भागन्तु सुतरां स्नानक समय भी गावावरणको जल स्पर्श नहों कके लिये अभ्यर्थनाको सामग्री है। चाय बनाने कराते। इससे उसपर इतना ल जम जाता कि यन्त्रको “समावाट कहते हैं। वह देखनमें टीनके यथार्थ चुटको वेनेसे मैन निकलना और झाड़नेसे चोग जैसा होता है। समावाटकी उच्चता १४ इन्च पिश तथा चिलरका ढेर स्वगता है । वह पथ, गहा- होती है उसका व्यास ढाई व बैठता है। अभ्यन्सर भ्यन्तर और प्राणायामें मलमूत्र त्याग करते हैं। गौत. दोहरा होता है। मध्य स्थलमें अग्नि लगाना पड़ता कालमें घरसे बाहर निकलना दुसाध्य होने पर वह है। उसके बाहर चाय ढालने के लिये टोटी-जैसा ऐसा करते हैं। किन्तु अभ्यासक्रमसे अन्य समय भी मल लगा रहता है। पग्निकी चारो ओर खाली जगह- वह उस व्यवहार छोड़ नहीं सकते। लोकालय उससे में पानी भर देते हैं। पानी गर्म होनेसे चाय डाली नरक बन जाता है। श्रीनगर, जम्बु प्रभृति गजधानी जाती है। वह मोठी पौर नमकीन चाय पीते है। में भी ऐसा ही हाल था। फिर भी पाजकन्न राज फखनासक तिब्बतीय क्षार लवणखरूप व्यवहार नियमसे बहुत कुछ परिष्क त हुवा है। राजकर्मचारी, करते हैं। उन्हें दो प्रकारको चाय पच्छी है-पखाथ विदेशी और पर्यटक ( अर्थात् शाश्मीरौ भिन्न दूसरे की “सुरती पौर लादाखको “सम । कहीं जानेपर सभी) इसीसे लोकान्य छोड़ नदीतीर वृक्षवाटिकामें वह समावट कमी नहीं छोड़ते। रहता है। शिस्त काश्मीरी शिल्पविधामें निपुण हैं। काश्मी- काश्मीरी बड़े झगड़ाल होते हैं। किसी के साथ रका दुशान्ता जगत् विख्यात है। श्रीनगरके निकट किसीका विवाद उपस्थित होनेपर समस्त दिनअवि मौजरा नामक स्थानमें कागज बनता है। वह सुत्रि- श्रान्त रूपसे कसह करते हैं। फिर सन्ध्या पड़नसे क्वण पार पार्चमेण्टको भांति होता है। राजकीय उभय पक्ष अपने अपने चबूतरे पर टोकरी औधासो व्यवहारके लिये सुवर्णमण्डित कारकार्यविशिष्ट एक रहते हैं। दूसरे दिन. प्रत्यूषके समय वही' टोकरी प्रकारका प्रति मनोहर. कागज तैयार होता है। खोल नये सास मागड़ा किया करते हैं। इसी प्रकार काश्मीरके जमा हुवे कागनके कारकार्यविशिष्ट एक दिन नहीं कई दिन झगड़ा चलता है। श्रोमगरके फलमदान, सन्दूक, पिटारा,, रकावी प्रभूति भुवन- नीचे वितस्ता कुप्रशस्त है। जिस समय इस पार विख्यात हैं। सोने चांदीका काम भी वह खूब करते के लोग उस पारके लोगों से भगड़ते, उस समय बड़ा हैं। गहनेका लेसा पेचदार नमूना दिया जाता, वह कौतूहल मातम होता है। इस प्रकार का झगड़ा लगनेस! वैसाही ( पहले कभी न, बनाते भी या बनाने का
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६४
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