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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६५

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का मौर कौशल न जानते भी) अविकल काश्मीरियों के हाथ से दिनका तिलक छोड़ा केसरका दोघं और स्थून्त नया बनकर निकल पाता है। तिलक लगा लेते हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल कैवल भाषा-काश्मीरको प्रकृत भाषाका नाम "कासुर" एक बार तिलक धारण करते हैं। तिलक लगानेमे है । वह संस्कृतका कुछ कुछ प्रपञ्चश है । उस भाषा उनके कपाल में एक चिह्न पड़ जाता है। ब्राह्मण रीत्य- में अक्षर नहीं । सुतरां उसमें लिखित पुस्तकादिका भी नुसार वेदपाठ करते हैं। अभाव है । देवनागरके टूटे फटे थारदा अक्षर संस्कृत किसी समय काश्मीरमें भी बौद्धधर्म विशेष प्रबन पुस्तकादि लिखने में व्यवद्वत होते हैं उनमें कासुर था। आज भी नाना स्थानों में बौर-मठ और विहा- भाषाके उच्चारणानुसार सकल कथा लिखी नहीं ना रादिका भग्नावशेष दृष्ट होता है। काश्मीरमें अनेक सकती । उनका "बूझव" (बूझा ) और "वूझकिन्ना" बौद्ध पण्डितो'ने जन्म ग्रहण किया है। स्थान स्थानमें (बूझ ले कि ना) प्रयोग देख कासुर भाषा हठात् हिन्दी आज भो बौइधर्म प्रबल है। जैसी समझ पड़ती है। वह प्रत्येक कथामें "दापाच" मुसलमानों में सुन्नी और शीया दो विभाग हैं। (कहते हैं ) शब्द व्यवहार करते हैं। फिर प्रत्येक सुनियों की संख्या अधिक है । १८७२६० के शेषको क्रियाक अन्तम "च" लगा देते हैं। कासुर भाषामें एकाधार किसो मसजिदके प्राचीर पर दोनों दलो में सैकड़े पीछे २५ संस्कृत, ४० फारसी, १५ हिन्दी, १० विवाद बढा था । सुत्रियों ने शियावो का गृहादि जन्ना, परवी और काई पहाड़ी वा तिब्बती शब्द रहते हैं। द्रव्यादि लूट और रमणी कुलका सतीत्व मिटा राज्य- काश्मोरके नाना स्थानों में प्रायः १२ विभिन्न भाषा के मध्य महाविप्लव मचा दिया। शेषको महारानके प्रचलित है। पुच्च और जम्ब जिलेमें डोग तथा चिव्व कौशलसे सब शान्त हो गया। ली भाषा व्यवहृत होती है । वह हिन्दी भाषासे अधिक पुराहत्व-पाचात्य पुराविदके मतमें "कश्यपमोर". पृथक् नहीं। पार्वत्य प्रदेश में ५ विभिन्न भाषा चलती से 'कश्मीर' नाम बना है। राजतरङ्गिपोम लिखा हैं । काश्मीर उपत्यकामें कासुर भाषाका प्रचार है। लदाख, वलतीस्तान, चम्पा प्रसूति स्थानों में दो प्रका- "पुरा सतीसरः कपारम्भात् प्रभवि मरमत । कुची हिमाद्रेभिः पूर्ण मन्वन्तराणि पट् । रको तिब्बतीय भाषा और उत्तर-पश्चिममें चार प्रकार पथ वैवस्वतीय मिन् प्राप्त मन्वन्तरे सरान् । की दरद भाषा बोली जाती है। पलवेरुनीको वर्णनासे गुडियोपेट्ररुद्रारौलवतार्य प्रभासमा । समझ पड़ता कि ई० एकादश शताब्दको कामोरमें कानपैन तदन्तःस्थ घातयित्वा नलीकवम् । "सिधमाटका" नामक अक्षरों का प्रचार था। निर्ममे सत् सरी भूमौ कश्मीरा इति मणलम् ॥" (९।२५-२०) शिक्षा-राजकीय और वैषयिक समुदाय कार्य पुराकाल सतीसरः कल्पारम्भसे भूमिमें परिणत फारसो भाषामें सम्पन्न होते हैं। इससे प्रायः अनेक हुवा। हिमाट्रिगर्भमें छह मन्वन्तर पर्यन्त नसपूर्ण रहा लोग फारसी पढ़ते हैं। काश्मीरी पण्डित संस्कृतको [ उसौं सतोसरम' जलोद्भवका (प्रसरका) वास शिक्षा ग्रहण करते हैं उसमें पनेक पण्डित विशेष था। वखत मन्वन्तर उपस्थित होने पर प्रजापति- व्य त्यत्र हैं। ज्योतिषशास्त्र में भी बहुतसे लोगों को ने कश्यप, हृहिण, उपेन्द्र और रुद्र प्रभृति देवगण प्रव- अधिक अभिन्नता है। काश्मीर महाराज यत्नसे तारित कर उनके द्वारा जनोद्भवको विनाच किया था। अनेक संस्हात पाठशाना स्थापित हैं। उसी सरोवर-भूमिमें कश्मीर मण्डल स्थापित हुमा । धर्म-काश्मीर के प्रायः सकल हिन्दू शाक्त है। सब नीलमतपुराणके मतम प्रजापति कश्यप की ब्रह्मा लोग रोतके अनुसार पूजा और स्तवादि पाठ करते हैं। थे । उन्होंने विष्णु और शिवके सहायतासे जलोद्भवको जो स्नान वा पूजादि नहीं करते, वह भी ( हिन्दू मार सतीसरमें काश्मीर राज्य स्थापन किया। प्रथम बालक, स्त्री सब ) प्रातःकाल उठते ही कपालसे पूर्व ।. नागराज नोल काश्मीरका पालन करते थे ।