सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काश्मोर } युधिष्ठिरके प्रधान मन्त्री रहे । उनकी महिषीका नाम एक विहार निर्माण किया। विक्रमादित्वका राजत्व- पद्मावती था। काल ४२ वर्ष रहा। युधिष्ठिर (श्य )-के मरने पर उनके पुत्र लक्ष्मण विक्रमादित्वके पीछे उनके कनिष्ठ माता वाला- या नरेन्द्रादित्य सिंहासन पर बैठे। उनकी महिपोका दित्य राजा बने । उन्होंने पूर्वसागर पर्यन्त राज्य नाम विमलप्रभा था। वजेन्द्र के दो पुत्र वज और फैलाया और वहां जयस्तम्भ जमाया था। फिर उन्हों. कनक राजमन्त्री रहे। नरेन्द्राटित्वने नरेन्द्रस्वामी ने वाला (बङ्गाला १) प्रदेश जीत वहां काश्मोरियोंके नामक शिवमन्दिर प्रतिष्ठा किया। उनका राज्यकाल रहनेको कानम्वा नगर स्थापन किया । बानादित्य- १३ वत्सर था । उनने पुस्तकादि रक्षा करनेके लिये ने सहर राज्य वदर नामक ग्राम वमाया ब्राधणे को घएने नामपर एक भवन बना दिया । रहने के लिये दिया था। उनकी नियनमा महिपौने नरेन्द्रादित्य के मरनेपर उनके कनिष्ठ भ्राता रणा- सर्व प्रमङ्गलहर विश्वेश्वर नामक शिवको स्थापन दित्य वा तुजीनको राज्य मिला। उनके कपान पर किया। वान्नादित्य के खङ्ग, शत्रुघ्न और मानव नामक शङ्कचिङ्ग रहा । रणादित्य की पटरानीशा नाम रमरम्मा तीन मन्त्री रहे। उन्होंने भी अनेक प्रासाद, मन्दिर था ।.कसने लिखा है-देवी भ्रमरवामिनी मनुष्य पार सेतु निर्माण कराये थे । देह धारण कर महारानी रणरम्भा बनी थी। वानादित्य के अनङ्ग लेखा नाम्नी एक कन्या यौ। महाराजने दो मन्दिरों में हरि पौर हर सूर्तिको स्थापन वान्नादित्य ने उसे अश्वघोषवंशीय दुर्लभवन नामक किया। एतद्भिन्न उनने "रणस्वामी" और प्रद्युम्न पर्वत एवं एक सुपुरुष कायस्थ युवाके हाथ सम्प्रदान किया ।* सिंहरोसिका नामक स्थान पर पाशुपतमठ, रगापुर ग्वामी दुर्लभवर्धन स्त्रीय वुहिमक्षा और नम्रतासे अल्पदिन. नामक सूर्यमूर्ति तथा सेनमुखी देवीमूत और उनकी मध्य ही राज्यमें सब लोगों के प्रिय बन गये । बुद्धिका पनी रणरम्भान रणरम्भदेव नामक शिवलिङ्गकी प्रतिष्ठा पाखर्य देव वालादित्यने उनका नाम 'प्रजादित्य रखा को उनकी दूसरी महिपी अमृतप्रभाने रऐशके था । अनङ्गलेखा किन्तु मातापिताके पादरसे गवित पार्श्व में अमृतेश्वर नामक शिवलिङ्ग और मेधवाइन ही स्वामीको अनादर करती। पत्नीके नामानुसार निर्मित विहारमें वुइको ३७ वर्ष ४ मास राजत्व कर वाचादित्य के स्वर्ग- स्थापन किया। महिषी रणरम्भाने रणादित्वको हाट लाभ करने पर सौय गोनन्दका वंश भी लोप हो केश्वर विका मन्त्र सिखाया था। गया। मन्त्री खनने उस समय मुदिहान् देख कायस्थ रणादित्य के समय ब्रह्म नामक किसी सिह पुरुषने | दुर्लभवर्धनको राज्याभिषिक्त किया। रणरम्भादेवीके नियोगानुसार “ब्रह्मसत्तम" नामक अनलेखाने अनङ्गभवन नामक एक विहार बनाया था। किसी ज्योतिषने महप नामक राजकुमारको देवताको स्थापन किया। रणादित्यके पीछे उनके पुत्र विक्रमादित्यको राज्य अल्पायु वताया । उसोसे महाराज दुर्चमवर्धनने विशोक- कोट पर्वत पर पुत्र कल्याण-उद्देश चन्द्रग्राम नामक मिन्ना। उन्हीं ने विक्रमेश्वर नामक शिवको स्थापन गांव ब्राह्मणोंको दान कर पुत्र द्वारा महणवामी किया था। उनके दो मन्त्री रहे-ब्रह्मा और गलून । नामक शिक्षको स्थापन कराया था। फिर उन्होंने ग्रीन- ब्रह्माने ब्रह्ममठ स्थापन और गुलूनको पत्नी रत्नावतीने गरमें दुरभस्वामो नाम विष्णु मूर्तिको प्रतिष्ठा किया ।

  • वर्तमान पार्यच्छ ग्राममें नरेन्द्रस्वामीका सुन्दर मन्दिर देख पड़ता।

३६ वत्सर राजत्वके पीछे दुर्लभवर्धनको स्वर्ग लाम हुवा। + बर्तमान इसलामावादके पूर्व २ कोस दूर मावन नामक स्थानके उत्तर प्रान्तमें मान नामक सूर्य-मन्दिर है। उसे रणादिव्यने हौ प्रतिष्ठा किया था उक्त सूट.मन्दिरकै दोनो पार्थ रणखामो पीर अमृतेशर शिवलिङ्ग + कापने दुभवर्धन चौर उनके उत्तर पुरुष कर्कोटनागवंशोम दिखा। कायम्य देखो। पान मी विजान। .