सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काश्मीर दुर्लभवर्धनके राजत्वकाल चौन-परिवानक युअम प्रतापादित्यके मरने पर उनके पुत्र ववादित्य(चंद्रा- चुयाङ्ग काश्मीर गये थे । उनको वर्णनासे समझ पौड़) राजा हुवे । उन्होंने त्रिभुवनखामी नामसे पड़ता कि उस समय काश्मीरराज्य ५०० कोस (७००० नारायणमूर्ति को स्थापन किया। उनकी पत्नी प्रकाशा- ने 'प्रकाशिका' विहार, राजगुरु मिहिरदत्तने गम्भोर- लि) से भी अधिक विस्तृत था । वह जयेन्द्रविहार में राजमातुल कटक आइत हुवे थे। . स्वामी नामक विष्णु और नगराध्यक्ष छलितकने छति- दुर्लभवर्धनके पीछे उनके पुत्र दुलभकने काश्मीरका तस्वामी नामक देवताको प्रतिष्ठा को । बच्चादित्य राजत्व पाया। उन्होंने मातामहके नामानुसार प्रतापा सारापोड़कटक नियुक्त किसी ब्राह्मणके अभिचार दित्य नाम ग्रहण किया था। कार्यहारा मृत्युमुखमें पतित हुवे । उन महानुभव प्रतापादित्यके प्रतापपुर स्थापन करने पर अनेक मृपतिने ८ वर्ष ८ मास रानव किया । 'धनी वणिक् जाकर वहां रहने लगे। उनमें गहितक उनके पीछे कोपनस्वभाव तारापोड़ (उदयादित्य) वासी नोण नामक बणिकने नोग्णमठस्थापन कर सिंहासन पर बैठे। वह शव दमन कर इतने गर्वित रोहितक प्रदेशवासी बाझोंको वासार्थ दान किया हुवे कि पन्तको देवतावों के साथ भी स्पर्धा करने था। उस दामसे सन्तुष्ट हो महाराज प्रसापादित्यने लगे। देवमहिमा प्रचार करनेवाले ब्राह्मणों को राजा वणिक्को निमन्त्रण दे अपने घर बुनाया । पामोद शास्ति देते थे। वह ४. वन्सर २४ दिन राजत्व कर पाडादसे वणिक् एक रात राजभवनमें रहे । प्रात:- किसी ब्राणको अभिचारक्रिया द्वारा पञ्चत्वको प्राप्त कान महाराजने पूछा-"क्यों, रात सुखसे तो कटी?" हुवे। वणिक्ने उत्तर दिया-"जो पालोक जनता था, उसने तारापीड़के पीछे उनका कनिष्ठ सहोदर प्रविमु. मंत्था पकड़ लिया। फिर प्रतापदित्य भी निमन्त्रित | तापोड़ ( ललितादित्य) गजा हुये । वह प्रतिपराक्रांत हुये। उन्होंने वणिक के घर जाकर देखा कि एक मणि नरपति रहे । उनका राजत्वकाल केवल देश जीतने में के पालोकसे वणिक का भवन पालोकित था। महा- ही बीत गया। राज वह देख विस्मित हो गये और वणिकके आग्रह पहले १८ मन्त्री राज्यके प्रधान प्रधान कार्य से २३ दिन वहां रहे। चलाते थे । सखितादित्यने उता .१८ पदोंको घटा इधर वणिक को एक नतको नरेन्द्रप्रभाको देख केवल ५ पद रख छोड़े-प्रधान यान्तिरक्षक, प्रधान राजा मोहित हुये । नरेन्द्रप्रभा भी राजा पर मुग्ध सेनाध्यक्ष, प्रधान अखाध्यक्ष, प्रधान कोषाध्यच' और हुयी थी। प्रतापादित्य घर गये, किन्तु नर्तकीको भून प्रधान विचारपति । युद्ध में ललितादित्यने कबोलके न सके । परम्परामें वणिक ने उभय का वृत्तान्त सुन राजाको हराया था। (कानाकुन राज्य उस समय वणिक ने नरेन्द्रप्रभाको राजाके निकट भेना और उन्होंने | यमुनातीरसे कालिका नदी तक विस्तृत था।) उस भी उसे रख लिया। उसके गर्भसे चन्द्रापोड़, तारा. समय यशोवर्माको सभामें कविवर वाक पति पौर पौड़ और अविमुक्तापोड़ नामक तीन महानुभव सद भवभूति विद्यमान थे । वह ललितादित्यके साथ गुणशाली पुत्रों ने जन्म ग्रहण किया था । वह पिट- काश्मौर चले गये । उसके पीछे सलितादित्यने कलिक मातामह वंशको रौतिके अनुसार यथाक्रम वनादित्य गौड़, दक्षिणाभिमुख कर्णाट प्रभृति स्थान जय किये । उदयादित्य और ललितादित्य नामसे विख्यात हुये। ५० रहा नानो एक कर्णाटी सुन्दरी उस समय दाक्षिणात्यमें वर्ष रामत्व कर प्रतापादित्यने स्वर्गको गमन किया। साम्राज्य चम्चाती थीं। वह भी वशीभूत हो गयौं । Beal's Records of Western Countries, Vol. I. 148. भारतके समस्त प्रधान स्थान जीत ललितादित्यने.. + La Vie de Hiouon Thşang par Stanislas Julien, P. कम्बोन, अनवदना रमणीसमाकुल भूखार, भोट और दरद प्रभृति देव जय किये। फिर काश्मीर में पहुंच Vol. IV. 170 . 92. ":