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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७५

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-काश्मोर नयकाल जानन्धर और लोहर प्रदेश सैन्यको पुरस्कार दिया। ललितादित्यने उनसे कहा कि श्रीपरिहासकेशवके उनने नितने देश जीते थे, उनके प्रत्येक राज्य में जय अनुग्रहसे उनने उनका प्राणमाव बचा दिया रूम्भ स्थापित किया। उनने सुनिश्चितपुर, दर्पितपुर, था। उसके पीछे त्रिगामी नामक स्थानपर किसी परिहासपुर पौर फलपुर नगर निर्माण करा नाना नरहन्ता दाग उनने उनको मरवा डाना । उस समय प्रकार वासभवन और प्रमोदभवन सजाये थे। दिग्वि- गौड़राज अति पराक्रान्त था। गौड़के कितने ही राज- रानप्रतिनिधिने नलितादित्यके मामानु भक्त वीर काश्मीरराजके उप्ता दुष्कार्यका प्रतिशोध नुसार 'ललितादित्यपुर'* नगर स्थापन कराया। लेनेको आशामें सरस्वती दर्शनके छन्नसे काश्मीर पहुंच किन्तु उससे ललितादित्य उन पर मप्रसन्न हुवे । मालि किमो दिन श्रीपरिहासकेशवका मन्दिर लूटनेको अग्र- तादित्वने अनेक देवमन्दिर, देवमूर्ति और बौदस्त प सर हुवे । ललितादित्य उस समय वहां न रहे। गौड़- बनाये थे । उनने लसितापुरमें सूर्यमुर्ति', हुप्कपुर में वागे के.मन्दिर आक्रमण करने का सन्धान पा ब्राह्म- मुशास्वामी, परिहासपुरमें परिहासकेशव नाम्नी (८४ णों ने मोम कवाट बन्द कर दिये । विदेशियों ने पार्श्व- ताले ) सोनको विष्णुमति, पाषाणमय वर्णनख वर्ती रामखामोके रौप्यमय मन्दिरको हो योपरिहास- शोभित महावाराहमूर्ति, गोवर्धनधर और बुद्धमूर्ति केशवका मन्दिर समझ ध्वंस पौर देवमूर्ति को को प्रतिष्ठा किया। उनकी महिषी कमलावतीने कमला विचूर्ण किया था। उसी समय काश्मीरी सैन्य पहुंच केशव, प्रधान मन्त्री मित्रशर्माने मित्रे खर नामक गया और उस मुष्टिमय गोपीय सेनासे युद्ध होने लगा। शिवलिङ्ग और सामन्तराज कय्यने बोकय्यस्वामी नानी सभी राजभक्त गौड़वासियों ने एक एक कर प्राणदान विष्णुमूर्ति तथा कयविहार' नामक एक विहारको किया। धन्य राजभक्ति ! गौड़ीयोका किसी समय खापना की। उसो विहार में रह सर्वजमिन नामक उतना साहस, उतना अध्यवसाय था | रामखामोके किसी बौउने योगबलसे वुद्धपद पाया था। उनके मन्दिरका भग्नावशेष मूमण्डलमें गोड़वासियों को चङ्गुन नामक किसी दूसरे मन्त्रीने चङ्गुनविहार तथा विपुन्त यथोराशिकी घोषणा करता है ।* स्तूप और मोनेको बोध प्रतिमाको प्रतिष्ठा किया । सम्हितादित्यने शेष अवस्थामें फिर उत्तरापथको चक्रमर्दिका नानी ललितादत्य की एक प्रियतमाने युदयात्रा की थी। उसी युद्धयात्रामें उनको मृत्यु हुवा । चक्रपुर नामक नगर बसाया था। ललितादित्यके दो पुत्र थे-कुवलयापोड़ (कुष- ललितादित्य परिहासपुरमें अनाथाश्रम स्थापन लयादित्य ) और वजापोड़ (वजादित्य ), महिषी कर, नित्य लाख लोगोंके भोजनोपयोगी पाव और कमलादेवीके गर्भजात ज्येष्ठ कुवलयादित्य को राज्य खाद्यका संस्थान कर देते थे। फिर उनने मरुभूमिमें मिला। वह अतिशय दानशील थे। कुछदिन भाट एक नगर बना श्रान्त पिपासितों के जलपानको विद्रोहसे उनके राज्यमें महा विशृङ्खला रही। शेषको सुविधा लगायो। कुवलयापोड़का जय हुवा.और वजापोड़की ज्येष्ठका ललितादित्य ने परिहासकेशव मन्दिरके पार्श्व पर भधोनत्व स्वीकार करना पड़ा। कुछ दिन पीछे. कोर्ट स्वतन्त्र रौप्यमन्दिरमें रामस्खामा नामक विष्णुमूति मंत्री विद्रोही हो उनके प्राण लेने पर उद्यत हुवे ।महा. और महिषी चक्रमर्दिकाने एक खरक पार्श्व पर लक्ष्मण राज कुवजयादित्यने उक्त विषयका संवाद पा मंत्रीको खामी नामक दूसरी.विष्णुमूर्ति को स्थापित किया। दलबलके साथ मारनेके लिये संकल्प किया था। कवणने निखा है-किसो समय गौड़राज | किन्तु शेषको वह यह सोच राज्य परित्याग कर प्रव्रज्या ललिमादित्य के निकट उपस्थित प्रवालम्बनपूर्वक लक्षपस्रवण नामक स्थानमें रहने - ललिसादिन्यपुरका वर्तमान नाम लतापुर है। आजकल वह सामान्य "बद्यापि दृश्यते शून्य रामस्वामिपुराम्पदम् । बाममान है ।लमापुर स्लुदहोरी रेट कोस दक्षिण-पूर्वपस्थित है। बामासं गौड़योराणां सनाथ' ययसा पुनः।" (सनतरक्रियो। १२५)