पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७०१

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काश्मौर .:. उसी समय काश्मीरमें तुषारपात प्रारम्भ हुवा । दे देते रहे। उन्हें कुछ भी अभिमान न था । प्रवाद है याकूबने ससैन्य काष्ठवाटमे निकल मुगलसेनाको श्रा कि उन्होंने प्रत्येक ब्राह्मणके घर सौ सौ रुपये और पाक्रमण किया था| ३मास तक लड़ाई चली । एक एक अशरफी बांटी थी। अकवर भी काश्मीरी कासिमवानको पगजितप्राय सुन पक्रवरने यमुफखान् ब्राह्मणों को विशेष रूपसे परिप्स रखते थे । किसी को काश्मीर जीतने के लिये पादेश किया था। यूसुफ दिन उन्होंने सहन स्वर्णमुद्रा दरिद्र ब्राह्मणों को दे खान्ने जाकर याकूचका पराजय किया । बह फिर डाली। अकबरके निकट लौट गये । १८५६ ई. को काश्मोन अकबरने यूसुफखान्को पुनर्वार काश्मौरका शासन अकबरके हाथ लगा। उस समय अकबर काश्मोर कत्वभार सौंप लौटाया था । वह प्रनाका कोई देखने लाहोरसे चले थे। काश्मोग्में उपस्थित होने अनिष्ट न कर राज्यशासन चलाने लगे । कुछ दिन पर याकूब उनके शरणागत हवे। प्रकवरने उन्हे राजा पोछे यूसुफग्वान्के अकवरके काय साधनार्थं चले जाने- मानसिके अधीन सेनाध्यक्ष बनाया था। फिर वह से उनके पुत्र मिलिश्कर काश्मौरके शासनकर्ता हुवे। यूसुफखानको काश्मौरका शामनकार्य सौंप देशान्तर उन्होंने निम्नलिखित आदेश निकाला था-"जो को चले गये। यूसुफ काश्मौरगन्यका शासन करने व्यक्ति काश्मीर निवासियों को सतायेगा, वह तत्क्षण लगे। किसी कारण यूसुफ अकबरके विरागभाजन अपने अपराधका फल पायेगा।" मिर्जालश्करके हुवे थे। पकवरने यूसुफके प्रति क्र. हो काजी अला वर्ष शासन करने पर अकबरने पहले प्रशारखान् पौर को काश्मीर के शासन कार्य में नियुक्त किया । काजी उसके पीछे प्रहलादखान तथा सुलतान मुहम्मद कुन्दी मला काश्मीरकोषका समस्त धन व्यय कर डानने खान्की काश्मीरका शासनभार प्रदान किया । उनने से मुगलोंमें परस्पर विरोध उपस्थित हुवा । उसमें काश्मीर जा दुर्नीतिको पकड़ा था। उसी समय पक- मिर्ना यादगारने काश्मीरियोसे मिल काजी अलाके बरके पादेशसे उक्त दोनो शासनकर्ताओं ने प्रवरपुरके साथ लड़ाई को। काजी अला हार कर पर्वत पर भाग निकट एक अग नामकादुर्ग और पारिका पर्वतके पास गये और वहीं चल वसे । नग नामक नगर निर्माण कराया । वर्तमान श्रीनगर अनन्तर मिर्ना यादगारने काश्मीरके शासनकर्ता जैन-उल-श्राब्दीन निर्मित पुरातन नगरीके सन्निधानमें हो अकवरको अधीनता मानी न थी । अकबरने शेख ही बना था। किसी दिन मध्याहू कानको पुरातन फरीदको ससैना काश्मीर भेज दिया । शूरपुरमै मिर्जा नगरी अकस्मात् जनने लगी । दो सहन गइसम्ब- यादगार अपने अनुचरोंके ही हाथों मारे गये । शेख. लित उक्त नगरी अल्प आपके मध्य ही भस्मावशेष फरीदके शासनकाल अकबर फिर काश्मीर पहुंचे हुयो । उस समय नवोम नगरी सपनो विनाशसे प्रिय थे। उस बार उन्होंने अनेक सत्कार्य किये । उन्होंने तमा रमणीको भांति फन कर पानन्द प्रकाश करने लगी। - सुना कि ब्राह्मण म्लेच्छराजासे देशान्तरको जाते थे । उसीसे प्रथम अवावग्ने चकवंशियो से वार्षिक कर काश्मौर अकवरके पुत्र जहांगीरका अतिप्रिय लेना निषेध किया। फिर उन्होंने ढिंढोरा पिटाया था स्थान था । वह प्रियतमा नूरजहान के साथ सर्वदा वहां "काश्मीरका जो व्यक्ति ब्राह्मणों की पूजा करेगा उसको वसन्तलोला करते थे। काश्मीरमें अद्यापि न रनहान्- तत्क्षण पारितोषिक मिलेगा। यहां जो प्रामोंसे के लौना-उद्यान और मनोरम प्रासादका भग्नावशेष कर लेगा, उसका घर उसो समय गिरा दिया जावेगा। देख पड़ता है। फिर ब्राहण उन्हें आशीर्वाद देने लगे। अकबरके कोई जबतक दिल्लीके मुगल बादशाहोंका प्रभाव अनुस रामदास कर्मचारी काश्मीरवासी बामणोंका नियत था, तबतक काश्मीरराजा उनके अधीन रहा । उस उपकार करते थे। वह ब्राह्मणोंको देखते ही स्वर्णरौप्य समय कोई शासनकर्ता दिल्ली अधीन राजकार्य ..