पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७०७

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1 काश्मौर्य-काश्यप प्राणभूमि कोते भी प्राचीन ग्रन्थमें इसका उल्लेख । काश्मीर में पञ्च धर्माधिकार पर नियुक्त होते है। मिलताकि भारतके नाना स्थानों में जा कर ब्राझगा काश्मीरी ब्राह्मण सभी वेद पाठ किया करते हैं। काश्मीरमें बसे थे कतनको राजतरङ्गिणीमें नान्धार, कोई कोई अपनेको चतुर्वेदी बतलाते हैं। किन्तु वह कान्यकुल, तैलङ्ग, गौड़ प्रभृति स्थानों से ब्राह्मणों के काठकशाखामुक्त हैं जानकी कथा कही हैं। गोय-१म पण्डितशेणोके मध्य १ कापिष्ठल, - आजकल सब काश्मीरी ब्राह्मगा एक समाजभुक २ कौशिक, ३ भारद्वाज, ४. उपमन्यु, ५ दत्तात्रेय, हैं। सभी परस्पर अन्न ग्रहण और प्रध्यापनादि किया ६ गाय और ७ भार्गव गोत्र है। करते हैं। किन्तु उनके समाजमें सबके साथ योनि २य राजधानीमै गौतम, नौगाक्षि और दत्तात्रेय सम्बन्ध नहीं चलता। आचार-व्यवहार भारतके अपर गोत्र होता है ब्राह्मणों की भांति है। फिर भी देशभेदने कुछ पार्थ क्य श्य-वाचभट्टोंमें विश्वामित्र और काश्यपगोत्र प्रचलित पड़ गया हैं । वह यथाकाल उपनयन ग्रहण करते हैं। समय उत्तीर्ण होने पर यथानियम प्रायश्चित्त भी किया शैव प्रत्यह वेदोक्त विधि और समय समय पर सोमशम्भ के क्रियाकाण्डानुसार तान्त्रिक पूजादि सम्पन्न जाता है। प्रायश्चित्त न करनेसे राजहारमें दण्डनीय करते हैं। होते हैं। हिन्दुस्थान में ब्राह्मणसन्तान जैसे उपनयनकै | काश्मीर्य ( सं० वि०) काश्मीर-ण्य । १ काश्मीरदेशीय, ५१७ दिन पीछे मेम्वना खोन रखते, काश्मीरमें वैसे काश्मीरवाना । (लो)२ कुङ्कुम, जाफरान्, केसरं । नहीं करते । वह दीक्षाके पछि पानौवन वामस्कन्ध काश्य ( सं० लो ) कुत्सित प्रश्य यस्मात्, बहुबी० । पर यज्ञोपवीत और दक्षिणहस्तमें कुगको मेखला १ मद्य. शराब । (पु.)२ काशिराजविशेष, कापीका रखते हैं। उनके द्वारा देदीत कर्मकान तथा नियम कोई राजा । (भारत ११०९।४८1) पालन किये जाते हैं। फिर भी बहुतोंने शास्त्रचर्चा काश्यक (सं० पु. ) काश्य स्वार्थे संज्ञायां. वा कन् । छोड़ दी है। कितने ही अंगरेजी फारमो पढ़ नाना राजविशेष, कोई राजा । उपायोंसे जीविका चलाते हैं । काश्मीरी वामम कुछ | काश्यप (सं० पु०) कश्यपस्य गोत्रापत्यम्, कम्वर अण् । व्यतिक्रम देख पड़ता है। १ कणाद सुनि, । २ मृगविशेष, कोई हिरन । ३.मल्य वह प्रायः सभी शव हैं। वामाचार शाक्त बहुत अल्प विशेष, एक महन्ती। ४ गोवविशेष । ५ काश्यप प्रव. दृष्ट होते हैं। पहले अनेक शैव, बौद्ध और भागवत रान्तर्गत एक मुनि अरुणका नामान्तर । ७ ब्राह्मण- वैष्णव थे । आजकल प्रायः तीन प्रकारके काश्मीरी विशेष । काश्यप ब्राह्मण विषविद्यामें पारदर्थी रहे। ब्राह्मण देख पड़ते हैं-१म श्रेणीके ब्राह्मण ‘पण्डित' महाभारतमें उनका विवरण इस प्रकार लिखा गया नामसे प्रसिद्ध हैं। वह केवल शास्त्र चर्चा में अग्निष्टोम है-"जिस समय रामा परीक्षित सप्ताह मध्य सपैदष्ट याग तथा बाहादि कर्मकाण्ड हारा ए राजत्ति होने को ऋषिक अभिशप्त हुवे, उसी समय काश्यप भीगसे कालको निकालते हैं। श्य 'गजवान हैं। ब्राह्मण उनको बचाने के लिये गये । पथिमध्य तक्षकको वही प्रधान राजकर्मचारी और व्यवसायी होते हैं। वह मिले थे । तक्षकने चिकित्साशक्ति देखने को सम्म वे संस्कृत भाषा छोड़ फारसी पढ़ते हैं। श्य वाच खस्थ कोई वटवक्ष देशन द्वारा भस्मोमूत कर उन्हें भट्ट होते हैं। वह लेखक, पुजारी और तीर्थ स्थल में जीवित करने को कहा। उन्होंने स्वीय विद्याबनसे तत्: पण्डेका काम करते हैं। १म अंगीके वाधण श्वश्रेणी क्षण व वृक्ष पुनर्जीवित कर दिया । उसको देख तक्ष- वालो से मन ही मन घृणा करते और न दान करना कने सोचा, वह लोग अवश्य परीक्षितको फिर जिला ठीक नहीं समझते । पण्डित और वाचभट्ट हो वारव. सकेंगे। सुतरां उन्होंने बालों को प्रचुर धनादि दे तादि पालन करते हैं। श्म श्रेणीके ब्राह्मण भाज भी राजाके पास जाने.रोक लिया।"(भारव आदि पध्याय)