पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१०

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ख ल । घुणकोट, घुन । काष्ठरजनौ-काठोडुम्बरिका D1R 'काष्ठरजनी (सं-स्त्री०) दारहरिद्रा । कट, उष्ण, लयमें कक्ष और कैफन्न होना है राजनियर) काष्ठामलको (सं० स्त्री) काष्ठधातो, छोटा भावना । काष्ठरस्नु (सं० स्त्री०) नकड़ी बांधनेको रसी। काष्ठलेखक (सं• पु०) काष्ठ लिखति, काष्ठ-लिख - | काठाम्व वाहिनी (स' स्त्री०) अम्ब ना जम्नानां वाहिनी, काष्ठनिर्मिता पम्ब वाहिनी, मध्यपदन्नो । जलसेचन. के लिये काष्ठनिर्मित पात्रविशेष, द्राणी। काठनोही (सं० पु०) काठेन युक्त लोहं विद्यते यत्र. यहा काठच्च नाहच ते स्तोऽत्र, काष्ठकोह-इनि । काष्ठालु, काष्ठानुस देखी। वातर्टि, लोहयुक्त सुगर। काठालु (म० लो०) काहमिव कठिनं पालकम काठबल्लिका, (स. स्त्री०) काष्ठवत शुष्का वल्लिकी, मध्य मध्यपदनो। काठवत् कठिन कन्दविशेष, लकड़ो पटनो०।१ क का, कुटनी। २ कटकवली. एक नता नैसी कडी एक आलू । वह मधुररस, शोतन्न. गु शक एवं स्तन्यवर्धक और रमपित्तनाशक होता है । (सव) काठबाट (स'• पु०) काश्मीर देशस्थ स्थानविशेष कामोरकी एक जगह। काष्ठाशन (मं० पु.) घुगण, घुन। कावान् (२० वि०) माष्ठ अस्याप्ति, काठ•मतु-ए , काष्ठासन (स'• क्ली• ) काहनिर्मितं प्रासनम्, मध्य- पटनो । काष्ठ मा बामन, नाडोको चौ वगरें । मस्य वः । काठविशिष्ट, लकी रखनेवाग। काठगस्तक (सं० पु. ) वास्तु शाकभेद, किसी काठिक (सत्रि०) काठमस्याम्ति, काठठन् । बहु किस्म का वधुवा। काष्ठयुक्त, वहुन नझंडी रखनेवान्ता । (पु.)२काष्ठ- काष्ठविवर (सं० को०) काष्ठस्य विवरम्, मध्यपदलो। वाहक, लकड़िहारा। 'तरकोटर, पेड़की खोह। काठिका (सं-स्त्री०) काष्ठ-अल्पार्ये डोप, बाठो खार्थे काठशारिवा (सं० स्त्री०) काष्ठमिव शेष्का शारिवा, कन्-टाए इवच । १ जुट् काठखगड, लकड़ो का छोटा उपमिः । अनन्ता, अनन्तमून । : टुकड़ा । २ काठ कदमोक्ष, कण्डोलेका पेड़ ।- काठशालि (सं० पु०) रक्तशालि, लालधान । काष्ठरसा ( म स्त्रो०) कदम्तो वृक्ष केले का पेड़ा। . काष्ठसारिवा (स्त्रोखेतशारिवा, सफेद सतावर । काठिचा (सं० स्त्रो०) १ कदनोरक्ष, केलेका पेड़ । काष्ठसम्म ( स० पु.) काष्ठेन निर्मितः स्तम्भः । - राजार्क, बड़ा मदार काष्ठका स्तम्भ, कड़ीका खंभी। 'काठी (सं. नि:) काठं अस्यास्ति, काष्ठ इनि-1-बहु काष्ठा (स. स्त्री०) काथवे प्रकारते, काश धन व्रति काठयुक्त, लकड़ीवाला। वत्वम्-टाप् । १ दिक्. जोनिव, तर्फ । ३ स्थिति, हानत । काष्ठोल (म० पु० ) काठिना, इत्यते क्षिप्यते, काष्ठि-इल सीमा, हद । । उत्कर्ष, बंडाई। , कर्मणि धन् । राजाकवर, वड़ा मदार । २- कुलिश- "पुरुषान पर किञ्चित् साकाष्ठा सा परा गतिः ।" (कठ युति): - मत्स्य, एक मछली।.. -५ समयविशेष, कोई वक्त । सुश्रुतसंहिता ,और | काठीला (सं०. स्त्री० ) कुत्सिता ईषत्. वा अष्ठीलेव, विष्णुपुराणके मतसे १५ चक्षुनिमेषमें, १ काष्ठा होती . को: कादेशः । १.राजार्क, बड़ा मदार । २कदनो, । है। किन्तु मनुने १८ निमेषको को १ काष्ठा मानी है। "निमेपो दर चाटी च काष्ठा विश का कटा" (मनु ।) काठोनिका, पाठीला देखो। । कश्यपको कोई पनी । (मागवक ६ ॥ ६॥२४) ७ दारु- | काष्ठेनु (सं० पु० )-काष्ठवत् कठिनकाण्ड इतुः, उप- मि । तेक्षु मुफेट जख। वह कान्तारके समान काठागार ( स० क्ली• ) काष्ठनिर्मित भागारम, मध्य गुणयुथ और वानकोपन होता है। - पदन्ती । काठमड, लकडोका मकान । काठोडुवरिका ( सं० स्त्री०) काष्ठप्रधाना उदुखरिका, काष्ठागुरु (म • को०) पोनव प्रगुरु. पोला-अगर । वह | -मध्यपदलो० । काकोदुम्परिका, कठगूनर । Vol. IT, वेले का पेड़। . -इन्ट्रिा। 171