पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१२

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कासन्दीवटिका- कासान्तकरस ७१५ कासन्दीपटिका (सं० स्त्री० ) १ कासन्न औषध, खांसी एक पलके हिसाबसे एकत्र मिशाना चाहिये। फिर .मिटानेवाली दवा । २ एक अचार, कसौंदौ । राजवल्लभी केशराजके रस तथा कुलत्य कलायके साथ तीन दिन के मतानुसार वह रुचिकारक, पग्निवर्धक, वायु एवं भावना दे उसमें नायचो, जायफन, तेजपात, लौंग, मन नुस्खोमक और वासश्लेष्मज रोगनाशक होती है। अजवाइन, जोरा, त्रिकटु, त्रिफला, तगरपादुका, गुड़- कासपीड़ित (सं० वि०) कासेन कासरोगण पौड़ितः, त्वक् पौर वंशलोचन प्रत्येक दो दो सोना डालते हैं। अंत ३.तत् । कासरोगी, खांसौका धीमार, जिसको खांसी को केशराजके रस और कुलस्य कलायके क्वाथमें लपेट पाती हो। चणक प्रमाण वटिका बना ली जाती हैं। अनुपान शीतल कासभनम (सं० पु.) पटोल, परवल । जल है। मसा, मांस, दुग्ध और निग्ध पाहार पथ्य कासमद (सं.पु.) कास' मृनाति, काम-मृटु-पण् । होता है। शाकान्नको छोड़ देना चाहिये । उक्त औषध कर्मण्याण। पास। खनामख्यात पत्रथाकविशेष, सेवन करने से कास, यक्ष्मा, खास. न्यर, पाण्डुरोग, शोथ, कसौंदा। शूल, अर्श प्रभृति रोग शान्त होते हैं। फिर कास- कासमदका प्रक्षनरसमें प्रयोग करते हैं, वह अग्नि समीविलास बसवर्धक और तृष्णा तथा अरुचि. दीपन और स्वादु होता है । (राजवलम) कासमद तिक्त, नाशक भी है । (मेषज्वरबावशी) उष्ण, मधुर, कफवातघ्न, अजीर्णन, कासपित्तन और कामलनाड-तैनल ब्राह्मण जातिका ६ ठो भेद । ऐले- कण्डपोधन है। (राजनिघण्टु) कासमद का पर्ण-पाकमें खरोपाध्याय ने यह भेद डाले थे। • कटु, कृष्थ, उष्ण, लघु और खास, कास तथा प्राचिन कालमहारभैरव ( स० पु०) वैद्य कोत कासरोगका है। पुष्प-खास कामन तथा वातविनाशन होता है। पौषधविशेष, खांसीको एक दवा। पारद, गन्धक, (एकनिघण्ट) तान, शलभस्म, सोडागको फूलो, लौह, मरिच, २.वेश वार विशेष, कसौंदी। ३ पटोल, परवल । कुष्ठ, तालोशपत्र, जातोफल, लवङ्ग प्रत्येकका चूर्ण ४ कासन्न औषध, खांसीको मिटानेवाली दवा। दो दो तोले एकत्र मिसा मेकपर्णी, केशराज, निर्गण्डो, कासमदक, कासमर्द देखो कासमदंकपत्र ( ० नो० ) कासमकदस, कसौंदेका हरीतकी तथा वासाके रससे घोंटना चाहिये ! पक्ष- काकमाचिका, द्रोणपुष्पी, शालची, मौमसुन्दर, भार्गो, गुच्चाके समान वटिका सेवन करनेसे कासरोग दूर कासमदंदल, कासमदंशपत्र देखो। होता है। (सरवाकर कासमदन (स• पु०) का मुनाति, कास मृट् कर्तरि कामहरवर्ग (सं• पु०) काथरोगनाशक दश द्रव्य स्यु । पटोन, परवक्ष। कासमा का ( स. स्त्री० ) कासमदै, कसौंदा। समूह, खांसीको वीमारी दूर करनेवाली दश चीजोंका जखीरा। इसमें द्राक्षा, अभया, पामलक, पिप्पयो, कासर (सं० पु.) के जले त्रासरति, क-प्रा-स-पच् । महिष, भैसा; उसे अधिक समय तक जसमें रहमा टुरातमा, शृङ्गी, कण्टकारी, चोर, पुनर्नवा पौर समान्तका डालते हैं। (घरक) अच्छा लगता है। (हिं. स्त्री०)२ काली मेड़ । इसके कासहाक्वाथ (स• पु०) १ कण्टकारीकत पिप्पचीचूर्ण- पटके रोय नाम होते हैं। युक्त कासहर काध, खांसीका कोई काढ़ा। वह कण्ट- कासरोग (स पु०) रोगविशेष, खांमौकी बीमारी । कारोसे बनता और उसमें पिप्पनीपूर्ण पड़ता है। २ कास देखी। कासलक्ष्मीविलास-वैद्यकोक्त औषधविशेष, खांसोको धूमपान विशेष । उसमें धूमको माड़ो १६ अङ्गालो रहती है । धूम द्रव्यको रुटू कीषण में जलाना चाहिये। कोई दवा । बङ्ग, लोह, अव, नाम, कांस्य, पारद. कासन्तकरस (स'• पु०) कामाधिकारका रसविशेष, गन्धक, हरिताम्न मनःशिमा और खपर प्रत्येक एक खांसीको एक दवा । पारद, गन्धक, शइविष, शाल. पत्ता। .