पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१३

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म कासार कासिमः पर्णी और धान्यक प्रत्येकका चूर्ण समभाग तथा संव मण किया था । उक्त घटनाका समाचार खनौंफाको चूर्ण सम मरीचचूर्ण डान्न चार गुनाके तुल्य मधुके मिला। आरवोंकी मानरक्षा के लिये विंगनिवर्षीय सुर- साथ सेवन करने से कासरोग प्रारोग्य होता है। म्मद कासिम ३०० अश्वारोही और १००० पदातिके (रसेन्द्रसारसगड) साथ भेजे गये। युवकने विपुल साहस देवम्तचन्दर कासार (म• ० ) कास-पारन्, कस्य जन्नस्य पासांगे प्राक्रमण किया। उस समय समस्त मिन्धुपदेशं मन- यत्र । तुषागदयर । ६३ । १६ । १ हहत् सरोवर, बड़ा मान सह हिन्दू गजा डाहिर पनि था। महाराज तालाब । २ दंगड जातीय छन्दोविशेष । उक्त छन्दमें डाहिर राज्यको रक्षाके लिये कासिममे बहुम लड़े। २० रगण रहते हैं। ३ खनामख्यान एक्वानं विशेष, वह स्वयं हाथों पर चढ़ रणमें गये । घटनाक्रम एक मिठाई । माषक ल्यागौ ( उडद ), शृङ्गाट नोंके फेंके अग्निगोनक द्वारा उनका इस्ती (सिधाड़ा), केसर, शालूम प्रभृति द्रव्य पेषण कर पाहत हुवा और प्रबन्न वेगमें अश्वारोही साथ नदीके चतुष्कोण खण्ड बनाना पड़ते हैं । उसके पीछे उक्त वासोतमें गिर पड़ा। हिन्दुनों का सैन्य राजाकी वह खण्डोंको तप्त तमें भून चीनीकों चाशनी में डालते है : वस्था देख भागा था । वोर कासिम उस समय कासार-रुचिकारक और अंधिक रूक्ष तथा पिच्छिन्न सुविधा देख अपने मुष्टिय मन्यमे डाहिरको मागर न होनेवाला है। वह वमनच्छा, कफ और वित्तको सदृशं विपुल वाहिनको विदलित करने लगे। न त नाश करता है। (भावप्रकाश) ब्राह्मण और राजपुत मुगम्तमानों के हाथ निहत वे। कामारि ( स० पु.) कासस्य अरिः नाशकः, ६-तत् ।। दुर्भाग्य क्रमसे हिन्दूराजने वाइनसह कालका प्रातिथ्य कासमद, कसौंदा। स्वीकार किया था। कासालु ( स पु०) कासजनक पालु, मध्यपदलो० । कासिम देवलक्षेत्र परित्याग कर ब्राह्मणावादके कोण देशप्रसिद्ध पालुविशेष, । उसका संस्कृत अभिमुख अग्रसर हुवे । राजभत्ता ब्राह्मण और राजपूत पर्याय-कासकन्द, कन्दाल, पालुंक, पालु, विद्याल. डाहिरको प्राकस्मिक विपद देख घबरा गये थें। पत्र पौर पत्राण है । राजनिघण्ट के मतसे वह मधुर मुप्तरां सामर्थ रहते भी किसीने राजधानीको रक्षा- रस, उपर्णवीर्य, शिगसंशोधक, अग्निकारक और कण्ड, के लिये विशेष यत्नं न किया। वायु, श्लेष्मरोग तथा अरुचिनार्थक होता है। मुहम्मद कासिमने ब्राह्मणावाद नगरमें जाकर कासिका (स० स्त्री०) १ कफ, खांसी । विनमुह, जङ्गली एक ..ओर गगनस्पर्शी प्रज्वलित चिता "मोठ। सज्जित रही और दूसरी ओर महाराज डाहिरकी कामिद (अ.पु.) पत्रवाहक, हरकारा । वोर महिषी ससैन्य विपक्ष के गतिरोधार्थ उपस्थित कासिप-राजपूतों को एक जाति। कॉसिप लोग युती थीं ! हिन्दू वीरवाला अनेक चेष्टा करने पर भी राज्य प्रदेश में रहते हैं। अपने गोवसे वह कशपवंशीय बचा न सकौं। उन्होंने देखा कि भीरु ब्राह्मणों को देखा चत्रिय है। परन्तु बहुतसे लोग उन्हें क्षत्रिय नहीं देखी उनका राजपूत सैन्य भी पृष्ठ प्रदर्शन करता था। मानते। उस समय पतिके मानको रक्षाको सतीने सपत्नी और कासिम:-बसराके, शासनकर्ता हज़ाजके भ्रातृष्य व । पुरमहिलावर्गके साथ..उसी ज्वलत् चितापर प्रारोहण खुष्टीय अष्टम शताब्दको भारतलस्तनाके रूपको कथा किया । कासिम अनेक उपायों के पीछे दो राजकन्यावा. रुष्कराज खलौकाके अन्तःपुरमें निकली थी । खलीफा को बन्दी बना स्वदेश लोट गये । तुरुष्कराज खनोफाने को नोभ लग गया। शस्त्रधारी परब उनको मनस्तुष्टि डामसकांसको सभामें उन दोनों राजकन्याओंको बुलाया के लिये अवपातमें चल दिये । सिन्धुपदेशक देवल था । ज्येष्ठा कन्या सभामें जाकर रोने लगी। खलीफाने नामक बन्दरमें भारतवासियों ने परबी पोतको पाक रोनेका कारण पूछा था। राजबालाने उत्तर दिया- देखा