पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१४

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2 999 सिम-कासिम कादो.मौलाना "मैं आपके अयोग्य हूं । कासिमने मेरा धर्म बिगाड़ सब मिनाकर १५० अंगरेज रहे। ५वों प्रोवरको सोम्बर नामक किसी जर्मनको पानासे सबके सब डाना है।" यह बात सुनते ही खलीफाने भादेश निकान्ता था,- शीघ्र ही उस दुहत कासिमको मारे गये । अलोवर मासमें हो अंगरेजो ने मुझेर खान खींच कर यहां ले भावो। आदेश पालित हुवा। घंधिकार किया था। फिर ६ नवम्बरको पटने पर कामिमका देह रानसभामें लाया गया था। राज आक्रमण पड़ा । मौरकासिम अपनी फौज और कन्याने हंसकर कहा-"मेरी ममस्कामना सिइ हुयी दौलत ले नखनको भागे थे। १७६४ ई० को ३ौं मैंने जो दोष लगाग, प्रकृत पक्षमें कासिम उसका पात्र अनोवरको बक्सर में जो युद्ध हुवा, उसमें सुजा-उद-दौला म था। जिसने मेरा पिय नाश किया, उससे मैंने को फौजको मेजर कारनाकने पूर्वरूपसे हरा दिया। बदला चुका लिया।" दूसरे ही दिन मुगल-बादशाह शाह पालम अंगरेजों से पा मिले। फिर अंगरेजी फौज प्रवधको अाक्रमण ७१४ ई. को मुहम्मद कासिम मर गये । करने के लिये चणे थो । मोरकासिमको लूट लेते भी कासिम-१ जाफानामा-प्रकवरी नामक ग्रन्थके रच- लखनसके नवाबने अंगरेजों के हाथ सौंपना न चाहा। यिता । इस पुस्तक में दोस्त मुहम्मद खान के पुत्र प्रक मोरकासिम फिर कहेलखण्ड का भगे और वहां घर खानके विजयका वर्णन है । इसे कासिमने १८४४ आनन्दसे रहने लगे। इनके पास कुछ बहुमूल्य रख ६० को सम्पूर्ण किया था। पुस्तक पद्यात्मक है। अंग- और मित्र बच गये थे। किन्तु अपने कपट-प्रबन्धके रेजो के काबुल-युध का विषय भी इसमें सब्रिविष्ट है। कारण इन्हें वहांसे भी भाग गोहादक रानाके पास प्रागरमें रहने लोग इन्हें कासिम अकबराबादी कहते हैं। २ कोम मौर कुदरत-उला का उपनाम । जाकर रहना पड़ा। कुछ वर्ष पोछे फिर यह योधपुर गये और वहम दिल्लो पहुंच १७७४ ई० को शाह उन्हा'ने एक सजकिरा ( कवियों का जीवनष्कृत्तान्त ) प्रान्तमके नौकर बने । १७७७ ई० को इनका मृत्यु लिखा था। हुवा। उनो के साथ बङ्गालको सुवेदारों मिटों थी। कासिम अलीखान ( मोर )-सङ्गालवाले नवाब मोर- | कासिम अलीखान् नवाब-गमपुरवाले नधारक जाफर प्रलोखान्के जामाता । साधारणतः इन्हें लोग चाचा। १८६८ ई० को यह बरेली में रहते थे। १८६८ मोरंकासिम कहते थे। १७६० ई० को अगरेजों ने ई. की २२ धौं दिसम्बरको हो रनको दुहिताका बध इन्हें श्वशुर के पदपर प्रतिष्ठित किया। कारण इन्हें हुवा। बङ्गालको आर्थिक अवस्था भली भांति विदित रही। किन्तु थोड़े दिन पीछे ही इन्होंने मुझेर में जा निवास | कासिम कादिरी शेख-एक मुसलमान साधु । इन्हें किया और अंगरेजों को बङ्गालसे निकालने का बीड़ा लोग शाह कासिम सुलेमानो भी कहते थे । कम चुनार उठा लिया। मौरकासिमको अंगरेजों के राजनीतिक में बनी है। इनके पुत्र शेख कबीर १६४४ ई. को अधिकार और व्यवसायिक प्रसारको सहि अच्छी लगती कनौजमें मरे और गडे थे । साधारणतः लोग उन्हें थो । १९५३ ई० को री अगस्तको उदयनाले पर बालापीर कहते रहे। शाह कासिम सुलेमानी के मक. युद्ध हुवा । उसमें इनकी सेना हारो थो । फिर यह बरेका व्यय कररहित भूमि और माग रोजोना पेन- बङ्गालके सिंहासनसे उतारे गये। नवाब नाफर मकी- शनसे चलता है। को पुनः अपना पद प्राप्त हुवा। मोरकासिम यह कासिम कादी मौलाना-एक सैयद । इनका यथोचित 'हाल देख पागन बन गये थे। इन्हा ने मुङ्गरसे- भाग नाम नजम-उद-दोन और उपाधि प्रवुन कासिम रहा। पटनम मा पाश्रय सिया और वहां समस्त अंगरेजों यह अबदुल रहमान् जामोके शिष्य थे। इन्होंने हिरात. को वध करनेका भादग दिया। उस समय छोटे बड़े से बादशाह हुमायूंके माता भिर्ना कामरान के साथ Vol. IV. 180 1