सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजा। पलाको। चौधाई। ७२७ किचनक. किंटिदंष्ट्रा पन्नाश, बड़ा ढाक । ( पश्य ) २ कोई पनिर्दिष्ट वस्तु | किस्लप्य (सं० लो०) किञ्चित् अप्यं यत्र, बहुव्री० । या चीज । ३ अला, थोड़ा । ४ असाकल्य, । तीर्थ विशेष । उक्त तीर्थमे मान करनेसे अपरिमित जपका फल मिलता है। (भारत, वन, ८३१०) किञ्चनक (सं. पु.) नागराजविशेष, नागों के एक किचल (सं०.पु.) किञ्चित् जलं यत्र, बहुव्री. । किविचौरितपत्रिका (सं० बी० ) शाकक्षविशेष, १ पकेयर, कमल का रेशा । किस्मल्लामात्र । किनरल (सं० पु०-लो०) किञ्चित् जति अपवारयति, किश्चित् (सं० अव्य.) किम् च चितु च योहन्दः । किम्-जन्न बाहुलकात् कः। १ नागकेशरपुष्प । २ नाग. १ पल्प, कम, थोड़ा । इसका संस्कृत पर्याय-ईषत्, केशरच । ३ पद्मकेशर, कमलका रेया । वह वीन मनाक् और प्रमाकल्प है। कोषको चारो और वैष्ठित रहता है। इसका संस्कृत "पावनिता किपिदिय स्तनाभ्याम् ।" (कुमारसम्भव) पर्याय-मकरन्द, केशर, पाकघर, किन्न, पोतपराग, २ कोई भनिदिष्ट वस्तु । (वि० ) ३ चतुर्थाश, तुङ्ग पौर चाम्मेयक हैं । राजनिघण्ट के मतमें वह मधुर एवं कटरस, रुक्ष, शीतन्त, रुचिकारक और किश्चित्कर (सं० वि०) किञ्चिदपि करोति, किश्चित्-क वित्त, तृष्णा, दाह तथा मुखवणनाशक है फिर ट। अल्पकार्यकारक, थोड़ा काम करनेवाला । भावप्रकाशमैं किनलकको कफ. रक्ता, विष और किश्चित्याणि (सं० पु०) वर्षमितमान, दो तोलेको शोथरोगनाशक कहा है। तौल। किल्लल्की (सं० वि०) किचल्लोऽस्यास्ति, किन्नल्क- किश्चिदुष्ण (सं० वि०) किश्चित् ईषत् ष्णम, कर्मधा । इनि । केशरयुक्त, रेशेदार । ईषत् उष्ण, थोड़ा गर्म । उसका संस्कृत पर्याय-कोष्ण "किनकिमी ददौ चाम्धिर्मालामझामपङजाम् ।" (देवीमाहात्मा ३१५१) और कवोष्ण है। किन्नधालुक (सं० लो०) कंकुष्ठ, एक पहाड़ी महो । किञ्चिदून ( सं त्रि. ) किञ्चित् अल्पपरिमाणं जन न्यून | किटकिट ( हिं• पु० ) वादविवाद, झगड़ा, मंझट । यस्य, बहुव्री० । अल्प न्यून, कुछ कम । किटकिटाना (हिं. क्रि० ) १ दन्तघर्षण करना, किञ्चिन्मात्र (सं. वि.) किञ्चित् प्रख्या मात्रा यस्य, दांत पौसना, किचकिचाना।२ दांतों के नीचे कझाड़ बहुप्री० । अल्पपरिमित, घोड़ासा।. पड़मा। किञ्चिलिक (सं० पु.) किश्चित् चुलुम्पति, किम्-बुलुप किटकिना (हिं० पु.) १ कोई दस्तावेज-। उसके द्वारा (सौवधातः ) हा संसायां कन् पृषोदरादित्वात् साधुः । ठीकेदार अपना ठेका अपनी पोरसे दूसरे असामियों के गडूपद, केचुवा। नाम कर देता है। २ यन्त्रविशेष, एक ठप्पा । किट- किचिलुक (सं• पु०) किञ्चित् चुलुम्मसि, किम्-उलुम्य किने पर सोनार सोना चांदोके पत्रों या सारों को सु-संज्ञायां कन् । गण्डूपद, केचुवा । उसका संस्कृत पोट कर वेलबूटे बनाते हैं। पर्याय-महीलता, गण्डूपद, गण्डूपदी, भूतता और किटकिनादार (हिं• पु०) ठेकेदारसे ठेके पर कोई चीज लेनेवाला प्रादमी। किञ्चुलुक, किक्षु लिक देखो। किटकिरा, किटकिना देखो। किच्छन्दम् (वै० त्रि०) किस वेदका अवलम्बन करने- किटि (सं० पु. ) केटति शव न् प्रतिवेगेन गच्छति, मलादीन् उद्दिश्य गच्छति वा, किट् गतौ इन् इगुप- किन्न (स'• ली.) किञ्चित् जलं यत्र, पृषोदरादित्वात् धात् किश्च । १ वनशूकर, जङ्गलो सूबर । २ वाराहो. सनीपः। १ किल्क, कक्षका रेगा । २ मृणाल, कन्द। कमलको डण्डो । ३ नागकेशरपुष्यं । किटिदंष्ट्रा (सं• स्त्री०) शूकरदंष्ट्रा, सूबर को डाढ़। कुसू है। वाला।