पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२६

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- । ७२६ कितना-किन्दत किनवर-एक नाति । युक्तप्रदेशमें इस जातिके लोगोको कितना (हिं० वि०) कियत्, किस कदर । २ पधिक, संख्या अधिक पाई जाती है। ये पपनको क्षत्रिय कैसा । यह शब्द क्रियाविशेषणकी भांति भी अवकृत बतलाते हैं, परंतु और लंग इन्हें क्षत्रिय नहीं होता है। मानते। कितव ( सं० पु. ) कितं वायति कितन वाति वा, कित-वा-क।१ पाशाकोड़क, किमारवाज, जुवारो। किनाट (सं० ली.) वृक्षका पभ्यंतरस्थ वल्कल, पेड़- की भीतरी छाल । २ धुस्सूरवृक्ष, धतूर का पेड़। ३ मत्त, मतवाला प्रादमी। ४ वचक, धोकेवाज । ५ धूर्त, ठग । ६ खल, नामाकून्त । किनाती ( हिं० स्व. ) पक्षीविशेष, एक चिड़िया। ७ गोरोचना नामक गन्धद्रव्य । ८ ग्रन्थिपणं, गण्टि उक्ल पक्षी सरोवरके निकट रहता है। उसका चयू हरियां और शिर तथा कण्ठ खेतवर्ण होता है । वन खुगबूदार चीज । कितवराज (सं० पु०) धुस्त रक्ष, धतूगका पेड़। अण्डा देने का समय मई और सितम्बर मासका मध्य भाग है। किता (अ.पु.)१ काट छांट, कसर ब्योंत । २ ढङ्ग, चाल | ३ संख्या, अदद । ४ विस्तारभाग, सतहका | किनार, किनारा देखो। हिस्सा । ५ प्राङ्गण भूभाग, जमोन्का टुकड़ा किनारदार (हिं. वि.) किनारेवाला, जिसमें कोर रहे। किताब (अ. स्त्री.) १ पुस्तक, ग्रन्थ । २ बहीखाता,./ किनारपेच (हिं. पु०) एक डोर । वह दरीके तानेको रमिष्टर । दोनों तरफ लगता है। किनारपेच दरीके ताने-बानेसे किताबी ( प० वि० ) पुस्तकाकार, किताब जैसा । कुछ ज्यादा मोटा रहता और तानेको बचाने के लिये लगता है। सदा पुस्तक पाठ करनेवालेको 'किताबी कीड़ा' करते हैं। किनारा ( फा० पु.) तीर, कूल, प्रान्तभाग । क्षितिक, कितना देखो। किनारी (हि. स्त्री०) १ गोट, हासिया ! २ सुनहला कितेक, कितमा देखो। या रुपहला गोटा। कितो, कितना देखो। किनी (सं० स्त्री०) इन सहती, छोटी कटैया। कित्ता, कितमा देखो। किन्तनु (सं० पु०) किं कुत्सिता तनुरस्य, बहुव्री० । कित्ति (हिं. स्त्री.) कीर्ति, नामवरी। ऊपानाम, मकड़ा। कित्तूर-वेलगाम जिलेका पुराना शहर । यह अक्षा १५ | किन्नमाम् (सं० अव्य०) इदमेषामतिशयेन किं कुत्सित ३६“उ० देशा० ७४४८ पू० पर सामगांवसे दक्षिण इत्यर्थः, किम्-तमप्-मामुः। दो कुत्सित द्रव्यों के मध्य १४ मील चलकर अवस्थित है। लोकसंख्या ७५००के पतिथय कुमित, बदतर। लग भग है। यहां स्कूल, पोष्ट आफिस और सोमवार | किन्तु (सं० अव्य० ) किञ्च तु च इयोइन्दः । परन्तु, तथा वृहस्पतिवारको बाजार लगता हैं। लेकिन, पूर्ववाक्यका सोचवोधक । २ पूर्ववाक्यका किदारा, केदारा देखो। विकल्पबोधक, वरन्, बल्कि । ३ फिर क्या । किधर (हिं. क्रि.वि.) कुत्र, कहां, किस पीर । किन्तुन्न (सपु०) ज्योतिषशास्त्रोक्त ववादि एकादश किधौं (हिं अव्य.) अथवा, यो तो। करणों के अन्तर्गत एक करण । किन्तुन्न करणमें किन (हिं० सर्व०) १ 'किस' का बहुवचन। (. कि. जन्म लेनेसे मनुष्य को मित्र एवं अमिन और धर्म वि०) २ क्यों नहीं। ३ अवश्य, वेशक । (पु.) तथा अधर्ममें कोई भेदज्ञान नहीं रहता। फिर ४ घर्षणचिन्ह, रगड़का दाग । • वह स्तव और विचारकार्य प्रिय होता है। (कोष्ठोमदीप) किनका (हिं. पु०) कणिक, अनाजका टकड़ा । किन्दत (स'० पु० ) महाभारतोक्त तीर्थविशेष । किन्दत- किनहा (हिं० वि०) कमियुक्त, किरहा। Vol. VI. 183 1 तीर्थम तिसप्रस्व प्रदान करनेसे मनुष्य समस्त ऋण-