पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२८

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की जगह। किन्नामा-किमिच्छक ०३१ किन्नामा (स' त्रि.) किं नाम अस्य, बहुव्री० । कपड़ा । किमरिक चिक्कए, खेत तथा सूक्ष्म रहता किन्नामधेय देखी। और सनसे बनता है । किन्तु आज कल लोग उसे कई किनिमित्त (स.वि.) किं निमित्त कार पस्य, से भी बना लेते हैं। उक्त शब्द अंगरेजीके स्विक वधुवी। किस कारण, किस लिये। (Cambrick) का अपभ्रंश है। किन्नु (सं० अव्य०) किं च नु च योइन्दः । १ प्रश्न क्यों, किमर्थं (सं० अव्य० ) किं अधै प्रयोजनं अन, वहुव्रौ । क्या। २ वितर्क, शायद । ३ सादृश्य, जैसे। ४ स्थान. किस कारण, किस लिये, क्यों। जहां, कहां। ५ करण, क्योंकर, कैसे । किमाझार (सं० त्रि.) किं कौशः आकारोऽस्य, बहु- किप्य (सं० पु०) मनज मिविशेष, मैले का एक ब्री० । किस प्रकार आकार विशिष्ट, केसी सूरत शक्ला- कोडा । कृमि देखो। वाला। किफ़ायत (प्र. स्त्री०) १ अलम होने का भाव, काफी किमाख्य ( सं० त्रि०) का श्राख्या अस्य, बहुव्री० । होनेकी हालत । २ मितव्ययिता, कमखौं । क्या नामविशिष्ट, किस नामवाला । किफायती (अ० वि०) मितव्ययो, कमखचे, संभन्न कर किमाछु (हिं. पु०) केवांच । चलनेवाला। किमास (हि. पु.) किवाम, खसौर, एक शर्वत । किवनई (हिं॰ स्त्रो०) पश्चिमदिक्. मगरिबको सिम्त । किमाम शहदकी तरह गाढ़ा बनाया जाता है। किवला ( ० पु०) १ पश्चिमदिक, मगरिवको सिम्त । किमारखाना (फा• पु०) द्यूतक्रीड़ाग्रह, जुवा खेलने- मुसलमान् उसी ओर मुख रख नमाज पढ़ते हैं । २मका। कि.मारचाज (फा• वि. ) द्यूतक्रीड़क, जुवारी, नुवा कि यस्ता पालम (प० पु०)१ ईश्वर, सबका मालिक । खलनेवाला। २ सम्राट, बादशाह। किमारोबाजी (फा• स्त्री० ) य तकौड़ा, जुवेका खेल । कि बन्नागाह (१० पु०) पिता, वालिद, बाय । किमाथ (अ० पु०.) १ रीति, ढंग। २ गंजीफेका ताजा किबलागाही, किवलागाह देखो। रंग। कि बन्लानुमा (फा० पु०) यन्त्र विशेष, एक औजार । किब- किसि (हिं० कि० वि० ) किस रीतिसे, क्योंकर, कैंसे । लानुमा पश्चिमदिक् को बहता है । अरब माविक उक्त "किमि पठवा तुम सबकरनायक" ( तुलसीदास) यन्त्रको व्यवहार करते थे। उसमें एक सूई ऐसी लगती | किमिच्छक (सं० पु०) किमिच्छतौति प्रश्नेन दानार्थ जो पश्चिम पोरको ही अपना मुख रखती है। कायति शब्दायतेऽत्र पृषोदरादित्वात् साधुः । १ व्रत- किम् (सं० भव्य०) कु वाहुलकात् डिमु । १ कुत्मा, निन्दा, विशेष। उन व्रत करनेके समय प्रार्थियोंसे छो छो। २ वितर्क, कौनसा। ३ निषेध, नहीं। ४ प्रश्न, पूछना पड़ता है वह क्या चाहते हैं। फिर वह जो मांगते, वहो व्रत. क्यों, क्या। कारी उन्हें देते हैं । मार्कण्डेयपुराणमें लिखा है- किम (सं० वि० ) १ त्याग । २ वितक। ३ निन्दा । महाराज करन्धमके पुत्र अवीक्षित् किसी स्वयम्वरमें 8 प्रश्न। उपस्थित हो राजकन्याको बलपूर्वक ग्रहण करने पर किमपि (स.पव्य०) किं च अपि च योहन्दः । उद्यत हुवे। उस समय समाके समस्त राजाओंने उनके १ कोई भी। २ अनिर्वचनीय, कह कर बताया न जाने विरुद्ध अस्त्र धारण किया। महावीर अवीक्षितने अपने बाहुबलसे अकेले ही उन समस्त रानावोंको हरा दिया “सनन्धतीशीर प्रशिथिचमृणालेकवलयं प्रियायाः था। परंतु राजावाने निरस्त न हो युद्दमें अन्याय ग्रहण

सावा किमपि रमणीय वपुरिदम्"। (शकुन्तला. ३०) कर अवीक्षित् को पराजित कर दिया । अवौक्षित्ने

किमरिक (हिं० पु०) वस्नविशेष, किसी किस्म का उस पकार अपमानित हो कभी विवाह न करने का वान्ना।