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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७३९

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२४२ किलंवांक-किलास किस्मकी दारुहन्दी । किनमोराको झाड़ियां हिमालय | किलाना, किखवाना देखो। पर कोसों फैल जाती हैं। किलावन्दी (फा• स्त्रा.) १ दुर्गनिर्माण, किनेको किलवांक (हिं० पु०) अश्वविशेष, एक कावुलो घोड़ा। बंधाई । २ व्यूहरचना, फौजको तरतीबसे खड़ा कर किलवा (हिं. पु०) बड़ा फावड़ा। छोटे किलवेको नेका काम। ३शतरंजमें बादशाहको किन्ना बांधकर किलैया कहते हैं। उसके भीतर रखने की चाल। किलवाई (हिं. स्त्री०) पांचा, लकड़ीको फरूई। किलाल ( सं० क्लो०) गोमुत्र, गायका पेशाब। किन्तवाई से सूखी घास या पयाल बटोरते हैं। कि लावा (हिं० पु.) १ यन्त्र विशेष, एक भौजार । किलवान (हिं० क्रि०) १ कोल लगवाना । २ अभि- किलावा सोनारों के काम पाता है। हाथोके गलेका मन्त्रित कराना, जादूसे बंधाना । एक रस्सा किलावेमें पैर डाल महावत हाथोकी किलवारी (हिं० स्त्री०) कन्ना, पतवार । हांकता है। किन्त विष (हिं० पु.) किल्विष, पाप, इजाब । किनास (सं० लो०) किलं वर्ण पस्यति चिपति विक्क- किलहा (हिं. पु०) फाक, आमका तेलमें रखा हुवा तिं कराति पति यावत्. किल-प्रस-अण् । क्षुद्रकुष्ठरोग. भेद, किसी किसका हलका कोढ़। मिथ्या वचन, अचार। किला (प० पु०) दुर्ग, गड़, बचावको जगह। कृतघ्नता, देवनिन्दा, गुरुजनके अपमान, पापकार्य, किचाट (सं० पु.) शोषित क्षीरपिण्ड, छेना। किलाट पूर्वजन्मके कर्मफल और विरुह अन्नपानादिके सेवनसे गुरु, टप्तिकारक, शुक्रवर्धक, पुष्टिकारक. वायुनाशक उक्त रोग उत्पन्न होता है। (चरक) वात, पित्त और ग्लेमभेदसे किन्लास रोग भी सीन और दौप्ताग्नि एवं निद्राशून्य व्यक्ति के लिये हितकारक प्रकारका होता है। उसमें वायुजन्य किन्नास अरुणवर्ण, है। फिर वह श्लेषजनक, रुचिकारक और पित्त, कर्कश और स्थान स्थान पर गालाकार होता है। विद्रधि, मुखशोष, कृष्णा, दाह, रक्तपित्त तथा ज्वर- पित्तजन्य किलास तामवणे, पद्मपत्र तुल्य और दाह. नाशक भी होता है। (चरक) उसके बनाने की प्रणाली विशिष्ट होता है। लेमज किलास खेतवर्ण, निग्ध, धन इसप्रकार कही है-दधि वा घोलके संयोगसे दुग्धको और । उक्त विदोषजन्च किलास विक्कतकर गर्म करते हैं। फिर वस्त्रसे निचोड़ उसका यथाक्रम रक्त, मांस और मैदमें उत्पन होता है। पानी निकालना पड़ता है। किनाट कई प्रकारका किन्तु सुश्रुत ऋषिने उसे केवलमात्र त्वग्गत बताया होता है-पीयूष, मोरट पोर शोरयाक । है। वायुजन्य किलासको अपेक्षा नेमजन्य किलास किलाटक (सं० पु०) किलाट एव स्वार्थ कन्। केना, कष्टसाध्य है। इसके उपरिस्थ लाम रक्तवर्ण वा खेत. फटे हुये दूधका मावा । नष्ट पक्कदुग्ध के पिण्डको किला- वर्ण न होने, परस्पर पृथक् रहने, अल्पदिनजात ठह. टंक कहते हैं। नी दुग्ध अपक्क रहते ही फट जाता, रने और अग्निमें न जमनेसे किलास प्रारोग्य हो वही चीरशाक कहाता है। (भावप्रकाश ) जाता, नतुवा असाध्य देखाता है। (वामट ) किलाटी (सं० पु०) किलचासौ पाटी चेति, कर्मधा । चिकित्सा-कुछ, तमालपत्र, मरिच, मनःशिला पौर यहा किलं अटति, किल-पट-णिनि। १ वंश, बांस । हरिकाशीशको समभाग तेल के साथ ताम्रपानमें ७ २ एरण्डवृक्ष, रेडका पेड़। दिन धूपसे उत्तप्त करते हैं। फिर उक्त तेल किलासके किलाटी ( सं० स्त्री० ) किलाट डाए । दुग्धविकृति, स्थान पर लगाने से भारोगालाभ होता है। कूचिका, छेना। मूतोके बोज, सोमराजीवीज, लाक्षा, गोरोचना, किलात (सं० पु.) किलं पलति, किल-अत्-अण् । सौवीराजन, रसायन, पिप्पत्ती और काललौहचूर्ण १ ऋषिविशेष । २ राक्षसविशेष। (त्रि.) ३ वामन, एकत्र पीसकर प्रलेप चढ़ानेसे किसास रोग दूर इख, बोना, छोटा। कण्डूयुक्त रहता जाता है।