सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

किलासन-किलिकेतर हरीतकीकी एक बत्ती बना पामवृक्षक पत्र और । किलोवा (हिं० पु०) वंशविशेष, किसी किसाका बांस। . वल्कलके रसको भावना देते हैं। फिर वटके दूधसे किलोवा ब्रह्मदेशमें पेगू और मतं वानके वनमध्य उत्पन्न दूसरी भावना दे उसे ताम्रप्रदीपमें अलाना पड़ता है। होता है । वह ६० से १२० फीट तक.मम्बा और ५से उसको मसीको ग्रहण कर पुनार हरीतकीके क्वाथको सच तक मोटा रहता है। उसका वर्ण धूसर होता भावना लगाते हैं। पन्तको उक्त मसी कटुते लमें मिला है। उससे नायके मस्त ल बनाये जाते हैं। अधिकतर मदन करनेसे किनास रोग प्रारोगा | किलोल (हिं०) कल्लोल देखो। होता है। (सश्त) किलौनी, किलनी देखो। किलासन (सं० पु०) किलासं इन्ति, किलास हन्टक् । झिल्को (स'• पु० ) घोटक, घोड़ा। कर्कोटक, कांकरोल। किलासनका संस्कृत पर्याय- | किरसी-खानदेश जिलेका एक गांव । यहांके राना कर्कोट, तिक्षपत्र और सुगन्धक है ।.कर्कोटक देखो। मौन हैं, जिन्हें दत्तकपुत्र लेने का अधिकार नहीं। किलासनाशन ( म०वि०) किलास माशयति किलास. किल्लत (अ० स्त्री० ) १ न्यूमता, कमो। २ सङ्कोच, तंगी।३ अड़चन। नश्-णिच-स्य । किलासरोगनाशक । किलासी (सं० त्रि०) किलासं अस्यास्ति, किलास्-इनि । किल्ला (हिं० पु.) १ मेख, खंटा, कोस । २ जातको मेख । किश्मा जतिके बीच में गाड़ा जाता है। ३ नवीन किलासरोगयुक्त, कोदो। शाखा, अङ्गुर,। किलि (सं० पव्य०) कण्ठकूलित, किलकार। किमाना, किलकिलामा देखो। -किलिक (फा० स्त्रो०) किलक देखो। किलिञ्च ( सं० लो० ) किल्यते अनेन, किल-इनि, किलि | किलो ( हिं० स्त्री.) १ कोल, मेख, खूटी । २ विल्ली, सिटकिनी । ३ मुठिया या दस्ता। किमी घुमानेसे चिनोति, किति-चि-ड पृषोदरादित्वात् साधुः। सूक्ष्म कल या पेंच चलने लगता है। ४ कुहनी। काष्ठ, पतला तख्ता। किल्लिकेतर (कताबू) वेलगांवजिले की पश रखने और चित्र किलिञ्चन (स० पु०) १ राल, धूना। २ मीनभेद, एक दिखानेवाली जाति । यह सांपगांव, चिकोदो, पारस- मछली गोकाक और प्रथनोमें मिलते हैं। किलिकेतर किलिष्ठ (स'० पु.) किन्तितं जायते, किलि जन्-ड. मराठों जैसे ही होते और कोल्हापुर या सतारेसे आये नुम् पृषोदरादित्वात् साधुः । १. सूक्ष्मकाठ, पतसा समझ एढ़ते हैं। प्रत्येक परिवार में १ कुत्ता, २ या तखता। २ वोरणादि कट, चटाई। ३ परदा । किसी ४ मैंस, २ या ३ गाय और ४ या ५ बकरे रहते किसी स्थान पर किलिन कोवलिङ्ग भी देख पड़ता है। हैं। पुरुष स्वच्छ, सुथरे, भले, मितव्ययो और शान्त किलिनक (सं० पु.) किलिन स्वार्थ कन् । १ कट, होते हैं। यह मृगछालापर बने पाण्डवों और कौर- चटाई । २ काशादि निर्मित रज्जु, एक रस्सी । किलि. वोंके चित्र रातको दिखा जीविका निर्वाह करते हैं। अकसे धान्यादि रखने के मरार ( कोठी) को वेष्टन करते हैं। एक मनुष्य चिवके पीछे दीपक लेकर बैठता और किलिन (हिं. पु०) नौस्थानविशेष, केदासको मोड़, दूसरा भागे उसकी घटना समझाता है। स्त्रियां बाजा बजाया करती हैं। यह प्रदर्शन रातको या १० जहाजकी एक जगह। किलिन जहाजका वह पिछन्ता बजेसे पारम्भ हो५ या ७ घण्टे चलता है। स्त्रियां हिस्सा है, जहां बाहरी तख्त मुड़कर मिलते हैं। गोदने का काम अच्छा करती हैं। कन्यायों का विवाह किलिनकिल ( स. पु० क्लो० ) नगरविशेष, किसी ४ या ५ और बालकों का १० और १२ वर्ष के बीच -शहरका नाम। होता है। इनमें विधवा-विवाह प्रचलित है। शवको किलिम (सं० लो०) किल-मन् । १ देवदारु वृक्ष । समाधि दिया जाता है। निधन होते भी यह किसीके २धूनक। ऋणी नहीं। . गढ़,