पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७४१

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७४४ किल्विष-किशोर किल्विष ( सं० लो० ) किल्-टिषच्-वुक भागमश्च । किशल (सं० पु० क्लो०) किञ्चित् शलति चलति, किम् १ पाप, गुनाह । २ अपराध, जुर्म । ३ रोग, बीमारी। शन्न-प्रच् ममोप: पल्लव, नया पत्ता । किल्विषो (स. स्त्रि०) किल्विषं अत्यस्य, किल्विष- | किशलय (सं० पु. लो.) किञ्चित् शन्तति, किम्-शल पूनि । पापी, गुनाहगार । बाहुलकात् कयन् मन्नोप: पृषोदरादित्वात् साधुः। विल्ली (सं० पु०) किल् भावे क्लिप ; किल अस्त्यस्य, कोमल पक्षध; मुन्तायम नया पत्ता। किल्-विनि । घोटक, घोड़ा। "अधरः किमखयरागः कोमलविटपामुकारिणी वाहा" किवांच (हिं० पु०) केवांच। (शकन्तल, १०) शिवाड़ (हिं० पु. ) कपाट, दरवाजा बन्द करनेके किशत्तयतल्प ( सं० पु०- क्लो०) किशलयनिर्मितं तल्पम् लिये लगनेवाले लकड़ीके दो तख्ते । मध्यपदलो० । पल्लवनिर्मित शय्या, पत्तेका बिछौना। किशलयशयन, किमलयतप देखी। शिशटा (हिं० पु०) किसी किस्म का शफताल । किश- किशुनगर, टेका मुरब्बा बनाते हैं। और गुठलोसे चांदी चमकाते कृष्णगड़ देखो। हैं। उक्त शब्द फारसीके 'किता' से निकलता है। किशुनचन्द-दिल्लीवाले प्रचलदास खत्रोके पुत्र। इनका उपनाम इखलास रहा। अचलदासके निकट पच्छे किशनतालू (हिं० पु. ) इस्तिविशेष, किसी किस्म का हाथो । उसका मालू काला रहता है। किशानतालूको अच्छे विद्वान् पाते थे। अपने पिताके मरने पर वह बहुत शुभ समझते हैं। कविता बनाने में लगे। १७५३ ई० को इमेशबहार नामक एक जीवन-वृत्तान्त इन्होंने लिखा था। इस पुस्त- किशमिश ( फा० पु०) सुखाया दुवा अंगूर, सूखी कमें २०० कवियों का वर्णन है। वह भारतवर्ष में जहां- दाख। अंगूर देखो। गोरके समयसे मुहम्मद शाहके समय तक हुये थे। विशमिशी (फा० वि० ) १ किशमिशवाला, जिसमें किशनसिंह-किशनगढ़के एक राजा। किशमिश रहें । २ किशमिशका रंग रखनेवाला । किशुनसिंह-जोधपुर महाराज उदयसिंहके २य पुत्र । (पु.) किसी किस्मका रंग । प्रथम वस्त्रको धोकर इनका जन्म १५७५ई० को हुवा था । यह १५८६ई. तक इतकीके जलमें बोर देते हैं। फिर गैरिक डाल कर अपनी माळभूमिमें ही रहे, पोछे जोधपुर महाराज हरिद्रामें उसे रंगते हैं। अन्तको अनारको छालमें शूरसिंह अपने बड़े भाईसे कुछ अनबन होने पर रंगनेसे वस्त्रपर किशमिश रंग चढ़ जाता हैं। दूसरी अजमेर में जा बसे । अकवरसे परिचय होने पर इन्होंने रोतिपर प्रथम वस्त्रको ईगुरमें रंगकर सुखा लेते हैं। हिन्ददौनका जिना पाया जो अब जयपुर में लगता है। फिर कटहलकी छाल, कुसुम, हरसिंगार और तुनके फिर मेरे से सरकारी खजाना छुड़ाने पर इन्हें मेघोस्ताव फूलमें रंगनेसे उसपर किशमियो रंग चढ़ता है। और कुछ दूसरे जिले माफी मिले। १६११ ई०को किशर (सं० पु.ली.) किम्-य-अच्-पृषोदरादित्वात् इन्होंने कृष्णगढ़ बसाया था। अकबरके समय इनका साधुः । सुगन्धद्रव्यविशेष, एक खुशबूदार चीज । उपाधि राजा रहा, परन्तु जहांगोराने इन्हें महाराजका किशरा (सं० स्त्री०) किञ्चित् शृणाति हिनस्ति, किम्- उपाधि प्रदान किया । १६१५ ई० को यह स्वर्गवासी हुए। श-अच्-टाए पृषोदरादित्वात् साधुः । वागरा, खिचड़ी। किशोर (स'• पु० ) किञ्चित् शृणाति, किम्-शृ-मोरन् । किशरादि ( स० पु.) पाणिनिव्याकरणोक्त शब्दगण- किशोरादयय। उ ।।६६। १ अश्वशिशु, बछेड़ा । २ तेल- विशेष । किशरादिमें किशर, नरद, नलद, स्थागत, पणों, एक बूटी। ३ सूर्य, सूरज । ४ तरुणावस्था, तगर, गुग्गुल्ल, शौर, हरिट्रा, इरिट्र और पर्णा शब्द जवानी । एकादशसे पञ्चदश वर्ष पर्यन्त किशोर अवस्था सम्मिलित हैं। उक्त शब्दों के उत्तर छन् प्रत्यय होता है। रहती है। "वय किशोर सय भाति सुहाये।" ( सुलसो) ५ शिशु, किशरोमा (सं० स्त्री०) शुकशिम्बी, खजोहरा। लड़का। (दि.)६ किशोरयुक्त, छोटी उम्रवाना। -