पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७५३

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कौटरिपु-कौन कोटरिपु, कौटशव देखो। कोतनिका (सं० स्त्री० ) यष्टिमंधु, मुलहटी, मौरेठी। कौटशत्रु, (सं• पु०) काटानां शत्रु, ६-तत् । १ वृक्षवि- | कोडक् (सं० वि०) क ष दृश्यतेऽसौ, किम्-दृश्-क्किन् शेष, कोई पेड़ । २ गन्धक । ३ विडङ्ग। (वि.) क्यादेशः इदं किमोरीश कौ । पाद । ३।१०। किस प्रकार, ४ कीटनाशक, कोडे मारनेवाला। किस तरह, क्योंकर। कोटसंच (सं० पु०) कोरः संज्ञा यस्य, बहुव्री० । वृश्चिक- "यद्येतानि नयन्ति इस परितः शस्त्रास्मोचानि मे । राशि, विच्छूका झुण्ड। तद्भोः कोहगसौ विवेकविभव: कोहक प्रयोधीदयः ॥" कोटारि, कोटथव देखो। (प्रबोधचन्द्रोदय, 010). कोटाणु ( सं० पु० ) कोटेषु अणुः सूक्ष्मः, ७-तत्। कोट | कोटच ( सं० वि० ) कस्येव दर्शनं अस्य, किम्-दृश समूह मध्य प्रति सूक्ष्म कीट, पांखसे न देख पड़नेवाला कोश (or) क व दृश्यते असो, किम्-दृश्कङ् । क्स क्यादेशच । किस प्रकारका, कैसा। कौड़ा। कीटाणुकोट (सं० पु०) काटादपि अणुः सूक्ष्मः कोटः । किस प्रकारका, कैसा। कोटको अपेक्षा भी पति सूक्ष्म कोट, बारीक बारीक "कौमाः साधषो विप्राः कभ्यो दत्त महाफलम् । कौड़ा। कौटशानास भोतम्यं तन्मे हि पितामह ॥" कौटाद (सं० वि०) कोटान् अत्ति कीट-अदभण । कोट- (भारत, अनुशासन) कोन (H० ली.) मांसधात, गोश्त । भक्षक, कोड़े खानेवाला। कोटारि (सं० पु०) कोटानां परिः शत्र:, ६-तत् । कौनखाब (हिं० स्त्री०) कमखाब, एक बढ़िया कपड़ा। कोटशवु देखी। कीमना (हिं. क्रि०) क्रय करना, मोस लेना । कीटारिरस (सं० पु०) कमिन्न पौषधविशेष, कीड़े मारने- कीनराजवंश-रानविशेष, एक शाही खान्दान। वाली एक दवा। शूधपारद, इन्द्रयव. अजमोदा, मन: हृष्टीय ध्म शताब्दके मध्य उक्त गजवंश पूर्वांचुरिया, कोरिया और चीनका उत्तरभाग अधिकार कर राजल शिला, पलाशवीज और गन्धक समपरिमाणसे ले देव- करता था। उस समय वह प्रबल पराक्रमी हो गया। दानीके रससे समस्त दिन सान कर रत्ती रत्तीको वटी बनाना चाहिये । अनुपान चीनी और वनमुदगका रस आधुनिक पाचात्य पण्डितोंके मतमें कोन राजवंशसे है। ही मच रियाके वर्तमान राजवंशको उत्पत्ति है। कोना कौटारिष्ट (सं.ली.) अश्व का कोटवेधरोग, घोड़ेके तातार जातीय है। उनके गानया वर्ण ईषत् हरिट्राभ पेट में कीड़े पड़ने की बीमारी । शरद, निदाघ और होता है । उसीसे उन्हें 'स्त्र वर्ण तातार जाति धर्म के सेवनसे निरूपचार वश वाजियोंके कोटवध कहते हैं । पाचात्य पण्डितोंने मात्र रियाके प्रवाद एवं (कोटारिष्ट) रोग हो जाता है। फिर घनकाल तीय इतिहासादिके अनुसार नानाविध अनुसन्धानसे स्थिर पोनेसे उनके जठरमें कोट काण्ड पड़ते हैं। ज्येष्ठ किया है कि वर्तमान मात्र कोन-तातार जातिसे ही उत्पन्न हुवे हैं। कोना-तासारोंका पादिमिवास सुङ्गारि शक्ल द्वितीयाको उनसे कोड़ें निकलते हैं। (जयदव ) और पामूर नदीका तीर है । वहांको नावों को कोड़ा (हिं० पु०) १ उड़ने या रेंगनेवाला लघु कोट, मकोड़ा, पतङ्गा। २ कमि, बारीक कीट।। सर्प, जुचि कहते हैं। निस समय ताङ्ग राजवंश उक्त सकस प्रदेश में राजत्व सांप । ४ उत्पा ण मत्कुण प्रभति, जू खटमल वगैरह । ५ छोटा बच्चा। करता था, सुजारितौरस्य अर्चियों ने प्रबल हो कोड़ी (हिं० स्त्री०) १ सधुकोट, छोटा कोड़ा। २ पिपी.. पोहाइ नामक तातार राजवंशका प्रभुत्व जमाया और लिका, चौंटी। पामूरतोरस्य जुचियों को नीचा दिखाया। खितान कोड़ेर (सं० पु०) कोर-एसच् लस्य डः। तण्ड लीय शने पांघाइयों का रानव उत्सव किया था। फिर शाक, एक सब्जी वह खितानवंशके अधीन हो सभ्य वा वशीभूत अर्चि-