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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७५६

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1 ७५८ कौरिचोदन-कौर्तिचन्द्र "कोरिया देवान्नमसौपशिचन् । (ऋक् ५। 8010) कीर्तनीय (स० वि०) कृत्-णिच्-अनीयर् यहा कीर्तने 'कोरिणा स्तोवे । (सायथ) गुगएकघने साधुः, कीर्तन-छ। १ वर्णनीय, वयानके (वि.) २ स्तवादिमें पासक्त, तारीफ करने में काविस । २ गणनीय, गिना जानेवामा । गा हुवा। कीर्तन्य (दे० वि०) कीर्तनाय साधुः, कीर्तन-यत् । “यस्ता दा कोरिषा मन्यमानः।" (फा ५४१." कीर्तनके उपयुक्त, जो गाये जाने के नायक हो। 'कोरिणा स्तुत्यादिषु विधिम इदा।' (सायण) कोति ( सं० स्त्रो०) कृत्-इन् इरादिश्च । पिपिडितिविदि ३ स्तोता, तारीफ करनेवाला। शिदिकोतिभाय । उए.४।११८६ १ पुख, सवाव । २ यशः, कोरिचोदन ( सं. वि. ) कोरोन् घोदयति प्रेरयति, शोहरत । कीर्तिका संस्कृत पर्याय-यशः, समजा, कोरि चुद-णि-बु । स्तवकारकोंका प्रेरक । समाज्ञा, समाख्या, समन्या, पभिख्या, श्लोक, वर्ण "सद्धार्थ कौरिचोदनम्।" (ऋक्, 8५।१८) और कीर्तना है। कोई कोई यशः और कीर्तिमें यह 'कोरोणं सोतृणां चोदन प्रेरयितारम् । (सायण) भेद बताते हैं-"दानादिममवा कीर्ति: शौर्यादिप्रमय यशः।" कोरी (हिं० स्त्री.) १ कोटविशेष, एक महीन कोड़ा। कौरा गेह, जौ वगैरहको बान्त में घुस दूध पो जाती है। दानादि कार्यसे नो मुख्याति होती. व कीर्ति कहाती है। फिर वीरत्वादिके प्रकाशसे होनेवाली २ पिपीलिका, चोटी। ३ बहलियेकी स्त्री । ४ सूक्ष्म कोट, बहुत बारीक कोड़ा। मुख्यातिको यथः कहते हैं। किसीके मतमें जीवित व्यक्तिको प्रशंसाका नाम कोरेष्ट (सं० पु०) कोरस्य शुकस्य इष्टः, ६-तत् । १ यशः और मृत व्यक्तिको प्रशंसाका नाम कीर्ति है। भाम्रवृक्ष, भामका पेड़ । २ आखोटवृक्ष, अखरोटका दरखत। ३ जखमधूक ! 8 निम्बंधक्ष, नीमका पेड़। किन्तु उक्त मत ठीक समझ नहीं पड़ता। अनेक कोणे (सं० वि० ) कोयते स्मेति, कृ कर्मणि त। स्थलपर नीवित व्यतिकी भी कोतिका वर्णन मिलता १ पाच्छन्न, ढका दुवा। २ विक्षिप्त, फैला हुवा। है- " कोविमवाप्नोवि में स्य चानुनम सुखम्।" (मनु. रास) ३ निहित, छिपा हुवा। ४ हिंसित, मारा हुवा। ३ प्रसाद, खुयो। 8 शब्ह, प्रधाज। ५ दाप्ति, ५ पूर्ण, भरा हुवा चमक । माळकाविशेष । ७ विस्तार, फैसाव । कीर्ण पुष्य (सं० पु. ) चीरमोरट, एक लता। ८ कर्दम, कीचड़।। सोताको सखीविशेष, जानकीका कोथि (सं० स्त्री०) क भावे तिन् निपातनात् साधुः । एक सईली। १. भार्याछन्दभेद । उसमें १४ गुरु और १८ लघुवर्ण लगते हैं। १५ दमाक्षरी वृत्तविशेष। १ पाच्छादन, ढक्कन, प्रोदना । २ विक्षेप, फैलाव । उसके प्रत्येक चरणमें ३ सगण और १ गुरु वर्ण रखते ३ हिंसाकार्य, मार पीट । ४ व्याप्ति, भराव । हैं। १२ एकादशाक्षरी वृत्तविशेष। वह इन्द्रवष्वाके कीर्तक (सं० वि०) कोतयति, कृत्-णिच्-खुल। संयोगसे उत्पन्न होता है। उसके प्रथम चरणका पहला कीर्तन-कारक, बयान करनेवाला । अक्षर लघु रहता है। शेष तीन चरणों में पहले गुरु कीर्तन (सं० क्ली० ) कृत् भावे ल्य ट् । १ वर्णन, बयान् । अक्षर ही लगाते हैं। १३ तासविशेष । १४ दक्षकन्या- "रचा करीति मूतेभ्यो कन्मना कौतनं मम ।" (मार्कणेय-पुराण, ८२/२२) विशेष । वह धर्मको प्रती रहीं। २ यशःप्रकाश, शोहरतका इजहार । ३ गुणकथन, | कीर्तिकर (सं० वि.) कीति करोति जनयति, कीर्ति - तारीफका क्यान्। । कृष्णलोलाविषयक सङ्गोतविशेष । क्त ट। कीतिकारक, शोहरत पैदा करनेवाला, जिससे नामवरी रहे। की निया (हिं. पु.) कीर्तनकारक, कृष्णलीला | कीर्ति कूट-किसी पर्वतका नाम, एक पहाड़। सम्बन्धी भजन गानेवाला। (जैनहरिवंश, II) कीर्तनी (मस्त्री.) नीलोवृक्ष, नौसका पेड़ । कीर्ति चन्द्र-१ वर्धमानके कोई राजा । (देशावलौ । ) सोतन देखी।