७६० कौतित-कीर्तिपुर २ कुमायूको २ राजावों का नाम । ताम्रशासन द्वारा थे। उन्होंने अनेक कष्ट और छलबन्नसे ३ वर्ष पीछे समझते कि उस राजावों में एक १४२२ शक और कीर्तिपुरवासी दुर्धर्ष नेवार नोगोंको हरा नगर अधि- दूसरा ९७२७ थकको राजत्व करते थे। कार किया। तदवधि कोतिपुर उन्ना राजवंशके ही कोतित (सं• चि०) धात्-त । १ कथित, कहा हुवा । अधिकारमें चन्ना आता है। २ ख्यात, मशहर । ३ निर्दिष्ट, ठहरा। कीर्तिपुर अधिक्कत होनेके पीछे पृथ्वीनारायणके कोतितव्य (सं० त्रि०) क-णिच्-तव्य । कतं न करने के अधीनस्थ गोर्खा सिपाहियोंने माकोड़स्य शिशु उपयुक्ता, जिसकी तारीफ गायी जा सके। और वाद्य कार व्यतीत नेवार जातीय बालक, युवक, कोति देव-श्म वाराणसीके कोई कादम्बराजा, उनका वृह प्रभात सबकी नाक काट डाली थी। उमी दिनमें प्रपर नाम कीर्तिवर्मा (श्य)था । तेलके पुत्र । शिलान्नि- कीर्तिपुरका दूसरा नाम 'नकटापुर' पड़ गया है। पिसे समझ पड़ता कि उन्होंने १०६८से १०७७ ई. कीर्तिपुरमें अब वह पुर्वयी नहीं चमकती। किन्तु तक राजत्व किया था। वह चौलुक्यराज (पठ) विक्र आज भी उस पूर्व गौरवका इास नहीं हुवा है। उक्त मादित्यके मिवराज रहे। वीरजन्मभूमिमें देखने योग्य अनेक प्राचीन मन्दिर २य कीर्ति देव चामलादेवीके गर्भजात तथा हैं। उनमें कई भग्न और कई सम्पू ण हैं। नगरके तैलके पुत्र और दिग्विजयो कामदेवके भ्राता थे। उत्तरांशमें बाघभैरवका चौतना मन्दिर प्रधान है। कोतिधर (सं० वि० ) कोर्ति धरति धारयति वा, १५१३ ई० को कीर्तिपुरके किसी राजकुमारने उसे कौति- अच् । १ वीर्तिमान्, मथइर । ( पु० ) बनाया था। मन्दिर के मध्य वाधको एक रही हुयी २ कोई सङ्गीत-शास्त्ररचयिता । शाङ्गधरने उनके श्लोक | मूर्ति है। प्रदक्षिणाके निकट भैरवका एक स्वतन्त्र एछ त किये हैं। मन्दिर भी बना है। नेपालके पनेक तीर्थ वाघ भैरव कोतिपाल-राजपूतानेके नादीलवाले एक चौहान दर्शन करने जाते हैं। नगरके उत्तर प्रान्तमें एक मुष्ट- गव । गत १२ वीं शताब्दीके अन्तमें इन्होंने योधपुरके हत गणेश मन्दिर है। नोपोवंशीय शेरिस्ता नेवारने जालोर नगरको, परमारों से जीत अपनी राजधानी १६६५ ई० को वना उसे प्रतिष्ठित किया था। उसके बनाया था, सम्मुख तोरण और मध्यस्थता गणनाथ का पाराम है। -पार्वतीय प्राचीन नगरविशेष, एक पुराना उसको दक्षिणदिक् मयूरोपरि कुमारी और वाम दिक पहाड़ी शहर । कीर्तिपुर नेपालके अन्तर्गत पाटनसे गरुड़ीपरि वैष्णवी हैं। कुमारोके पीछे वराह पर डढ़ कोस पश्चिम क्षुद्र गोलाकार पर्वत पर अवस्थित वाराही, वाराहौके पीछे शवोपरि चामुण्डा, वैष्णवी के है। वह चतुःपार्श्वस्थ समतल भूमिसे २०० फीट ऊंचा पाचमें ऐरावत पर इन्द्राणी और इन्द्राणोके पीछे सिंह है। कीर्तिपुर प्राचीर द्वारा इस प्रकार दुर्भद्यभावसे पर महालक्ष्मो विराजमान हैं। उल अष्ट नायिकाको वेष्टित है, कि महसा शव, पाक्रमण कर नहीं मूर्ति शोभा दे रही है। एतद्भिन्न सर्वोपरि भैरवनाथ और कार्तिकेयको मूर्ति है। नगरके दक्षिण पूर्वा शमें प्राज कन वह सामान्य नगर होते भी पूर्व कान्नको 'चिलनदेव' नामक एक बौद्ध मंन्दिर विद्यमान है। एक खाधीन राज्यको राजधानी गिना जाता था। यह भी देखनेयोगा समझा जाता है। वहां प्रायः उसके पीछे कीर्तिपुर पाटन राज्यके अधिकारसें पाया सकल घौच देवमूर्ति, वौषधर्मके मकन्न चिह्न और था। पाटन राज्याधिकारंसे पहले ही वह चारो ओर यन्त्रादिको प्रतिकृति देखने में पाती है। कीर्तिपुरमें दुर्गादि द्वारा सुरक्षित था । भग्न नगर-प्राचीरके स्थान पहले नो प्रमित राजसभाश्वन था। आज कल उसका स्थान पर उता प्राचीन दुर्गका भग्नावशेष देख पड़ता है ध्वंसावशेष पड़ा है। उससे थोड़ी दूर पर १५५५ ई० १७६५ ई० को राजा पृथ्वीनारायण प्रबल हो गये को इष्टक द्वारा निर्मितं किसी मन्दिरका भी ध्व'मा: कीर्तिपुर- सकता।
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