हालत। कपिखर-कपूरी १ वानरोंके निवासका स्थान, बन्दरोंके रहनेका । कयुच्छल (वै० को०) कस्य शिरसः पुच्छमिव लाति, मुकाम। २ पञ्जाबका एक प्राचीन जनपद । वर्तमान क-पुच्छ ला-क। १ केथचूड़ा। २ श्रुकका अग्रभाग। नाम कैथल है। यहां अलनाका मन्दिर विदामान है। "इदमेव वापुच्छध्वमयं दयः स्वाहाकार" (शतपनामण 1. ) कपिखर (सं०नि०) कपीनां स्वर इव स्वरो यस्य, वायुष्टिका (सं० स्त्री०) कस्य शिरसः युष्ठौ योषणाय बहुबी०। वारनकी भांति स्वरविशिष्ट, जो बन्दरको काति, क-पुष्टि-को-क-टाप, कस्य शिरसः पुष्टी सर आवाज रखता हो। पोषणाय हितं, क-पुष्टि-कान-टाप वा। केशकी धड़ाके कपिहस्तक (स.पु.) कपिकच्छ, केवांच । संस्कारका कार्य। क्यो (हिं. स्त्री०) घिरनी, घरखी, रस्सी चपेटनेका “पथावस्त पौर्य व धड़ाकरणं कष्ठिकार" (गौमिल ) चौलार। कापूत (दि० पु०) कुपुत्र, खराव लड़का, ना पुत्र कपोकच्छ (स. खो०) कपिकच्छ, संज्ञायां वा अपने कुलका धर्म छोड़ असदाचरण करता हो। दोषः। कपिकच्छ लता, केवांच । कपूती (हि.बी.) पुत्रका असदाचरण, बुरे लड़केको कपीन्य (सं० पु०') कपिभिर्वानररिज्यते पूज्यते, कपि-यज्-क्यप। १ रामचन्द्र। २क्षीरिकाहक्ष, कपूय (सं० वि०) कुत्सितं पूयत्तो, कु-घूय अच् पृषो- खिरनी। ३ सुग्रोव। ४ इनूमान् । दरादित्वात् उलोपः। दुर्गन्धि, बदबूदार, खराब । फपौत (म० पु.) कपिभिरितः प्राप्तः प्रियत्वेनेति- | कपूर (हिं० पु. ) कपूर, काफ। यह एक जमा शेषः। श्खेतबुझाक्ष, एक वेल । हुवा खुशबूदार मसाला है। कपूर इवा लगमेसे क्रपौतक (स.पु.) प्लवहन, पाकुर, सहोरा। उड़ता और प्रागको लपट छु जानेसे नलता है। कपोतन (सं० पु०) कपोना ई लक्ष्मी तनोति, कपि- कपूर देखो। ई-तन् पचायच। १ पानातक, प्रामड़ा। २ गर्द कपूरकचरी (हिं० स्त्री०) गन्धपलाशी, गंधौली माण्डवक्ष, पाकर, सहीरा। ३ शिरीष, सरसों। यह एक प्रकारको लता है। इसके मूलसे सुगन्ध ४ अखत्य, पीपल। ५ गुवाकष्टक्ष, सुपारीका पेड़। निकलता है। प्रासाम हाड़ी इसके पत्रसे पायोश विवहक्ष, वैसका पेड़। ७ मण्डमुण्ड । ८ उदुम्बर निर्माण करते हैं। गमपलाशी देखो। स, गूलर। कपूरकाट (हिं• पु०) धान्यविशेष, किसी किसका कपीन्द्र (सपु०) कपिरिन्द्र इव कपिषु इन्द्रः ही जड़हन यान। यह सूक्ष्म होता है। इसका तण्डर वा। १ नूमान। २ वालि ! ३ सुग्रीव । ४ विष्णु !! सुगन्ध और स्वादु है। "शरीरभूतभदौला कपोन्दो रिदक्षिणा" (भारद १V१UR) कपूरा (हिं. पु. ) भेष छाग प्रमृति पशका पह- कोष, भेड़ बकर वर्ग रह चौपायोंके बेजोंका थैला। ५ जाम्बवान्। कपौवह ( सलो०) कपिवह दी। वो यह पोखो। कपूरी (हि.नि.) १ कपूरविषिष्ट, काफरी, जो पा दाश१२९॥ सरोवर विशेष, एक तालाब। कपूरसे तैयार किया गया हो। २ कपूरवर्णविशिष्ट; कपौवान् (संयु०) वशिष्ठ ऋषिक एक पुत्र। यह काफ रका रण रखनेवाला, इसका पोला। (पु.). चतुर्थ मन्वन्तरकै सप्तर्षि यौन रहे। ३ वर्ण विशेष, एका रङ्ग। यह कुछ-कुछ पीतवर्ष कपोवान् (२० पु०) वशिष्ठ ऋषिकै एक पुव । (रिदम) रहता है। कैसर, फिटकरी पौर हरसिंगारके फलसे कपोश (सं• पु०) कपियों के राजा, बन्दरोंके मानिक । इसे तैयार करते हैं। ४ ताम्बूलविशेष, किसी किस्मका. बालि, सुग्रीष, हनुमान ममृतिको कपोश कहते हैं। पान। यह अति दोध एवं कटु होता है। इसका कपोष्ठ (पु.) कोनां इ: प्रियः, ६-तत्। प्रान्त मगर रहता है। इसको बम्बईको भोर लोग (राजादनौवच, पिरनौ। २ कपित्यक्ष, कथा। अधिक खावे हैं। सुनर्नमें पाता कपूरी पान खाने
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८
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