कपृथ-कपोत । विशेष। 1 पीपल । 1 उपयोगो खाब हैं। फिर पनेक स्थलमें यह खाद्य- पुरुष नपुंसक हो जाता है। (स्त्री०) ५ पोषधि- इसका पत्र दीर्घ होता है। पत्रके मध्य रूपसे प्रचुर व्यवहंत होती हैं। भागमें एक खेत रेखा पड़ी रहती है। मूल कपूरको कपोतोंके. मध्य दाम्पत्य प्रेम अति सुन्दर है। भांति सुगन्ध देता है। एक बार जो जोड़ी मिल जातो. वह जीवन रहते कपथ् (वै. पु०) कुत्सित प्रथयति, कु-प्रथि-क्विम्, कभी छूटते नहीं देखातो। इनके इस प्रविच्छिन्न वैदिकत्वात् नियातेन सिद्धम्। १ पुरुषत्व, मर्दानगी। प्रेमको कथा सकल देशोंके काव्यमें विशेष प्रसिद्ध है। (वि.)२ कुत्सित प्रकाशक । कपोत और कपोती दोनों घर बना लेने, अण्डे कपोत (सं० पु.) को वायुः पोत: नौरिवास्य, कब देने और बच्चे सेनेमें एक दूसरेको साहाय्य करते हैं। श्रोत बस्य पः। कयेरीतच् पर। उप १।६। १ पक्षी, यह किसी स्थानको तोड़ फोड़ अपना घोंसला बना चिड़िया। २ हाथोंकी एक अनोखी स्थिति। नहीं सकते। वृक्षके पर,पर्वतके गवरमें,इष्टकालयको ३ पक्षिविशेष, घुग्घू । ४ मूषिकभेद, एक चूहा। बानिसके नीचे या देवालयके गात्रपर गतेको निकाल ५ कपोतसमूह, कबूतरोंका मुण्ड। ६ पारद, पारा। कपोत अलग घोसला तैयार करता है। एकबार ७ सनिधार, सज्जीखार। ८ पारीहक्ष, पलाश दो खेतवर्ण डिम्ब होते हैं। कोई कोई श्रेणी २ भूरा रङ्ग। १० सुरमेकी सफेदी। एकमात्र डिम्ब देती है। किन्तु दोसे अधिक किसौके ११ पारावतपक्षी, कुमरी, कबूतर। लाटिन भाषामें नहीं रहते। कपोत प्रति मास डिम्ब दिया करते हैं। कपोतजातिका नास कोलम्बिडी (Columbida) है। फिर डिम्ब फटनेमें १५ दिन लगते हैं। यह १५ इसका संस्कृतपर्याय-गृहकपोत, पारावत, दिन ताप पहुंचानेके हैं। कंपोतो डिम्ब दे प्रथम पारापत, कलरव, छेद्य और गृहकुक्कट है। जङ्गली ३ दिनं एकाक्रम दिवारान बराबर ताप लगाती, कबूतरको वनकपोत, चित्रकण्ठ, कोकदेव, दहन, केवल एक बार खानको उठ जाती है। प्रथम ३ दिन धूसर, भीषण, धूम्रलोचन, अम्निसहाय पौर गृह पधिक क्षण वह कयोतको ताप पहुंचानेसे रोकती नाशन साइते हैं। अथवा क्षणमात्र भी डिम्बको खाली नहीं छोड़ती। पृथिवीपर सर्वत्र कपोत देख पड़ता है। किन्तु | कपोती जब खानको जाती, तब ताप पहुंचानको अष्ट्रेलिया और भारत-महासागरके उपकूलवर्ती | कपोतको बारी पाती है। कपोतको निकट न देख प्रदेश में इसकी संख्या अधिक है। अमेरिकामें यथेष्ट वह अत्यन्त क्षुधातुर होते भी डिम्बको पनाहत छोड़ कपोत होते भी विभिन्न प्रकारका नहीं मिलता। कैसे उठेगी! कपोत निकट न रहनेसे क्षुधा चंगने भारतवर्ष एवं मलयहीपमें जसे इसकी संख्या अधिक पर कपोती उसे बुलानको गम्भौर शब्द ,करती है। पाती, वैसे ही विभिन्न प्रकारको श्रेणी देखाती है। कपोत दूर होते भी उक्त शब्द सुनते ही घोंसलेमें युरोप और उत्तर-एशियामें इसको संख्या सर्वापेक्षा श्रा पहुंचता है। प्रथम तीन दिन बीत जानेसे वह अल्प है। डिम्बको छोड़ उठ जाती है। दिनको अधिक 'क्षण खगतत्ववेत्तावाने आजतक प्रायः तीन सौसे भी कपोत ताप पहुंचाता और रातको कपोतीके कार्य अधिक कपोतको आविष्कार की हैं। उन सकल करनिका समय प्राता है। १५ दिन पौछे डिम्ब विभिन्न श्रेणियों में अधिकांश अति सुन्दर देख पड़ता | फटनेसे शावक निकलता है। यह शावक धर्माच्छादित है। अनेक कपोतोंका गान भिन्न भिन्न वर्णमें चित्रित मांसपिण्डमान होता है। इसके गावमें पालकका कोई रहनेसे बहुत ही मनोहर मालूम देता है। प्रायः चिइ देख नहीं पड़ता. और चक्षुइय बन्द रहता है। सकल श्रेणियोंका अङ्गसौष्ठव सम्यक् सुगठित और डिम्ब फूटनेसे कपोतो फिर ३ दिन ताप देनको सदृश्य है। कपोतको अधिकांश श्रेणियां मनुष्यका बैठती है। प्रथम दिनकी भांति इस बार भी वह IV Vol. 3
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