६२ करवीरक-करवोटौ कषाय, कटु और उष्णवीय होता है। व्रय, चक्षुरोग, | करवीरतैल, करवीराद्यतेल देखो। कुष्ठ, चत, कृमि और कण्डु प्रति रोगपर इसका | करवीरपुर (सं. लो०) करवीर देखो। मूल लगाया जाता है। करवीरका मूल विषाक्त है। करवीरभुजा (सं. स्त्री०) करवीरभुजः शाखा एक (चक्रदत्त, भावप्रकाय, गाधर ) इकोमो किताबमें इसका भुजः शाखा यस्याः, बहुव्री। पादको वृक्ष, अड़- नाम खरजहरा लिखा है यह प्रदाह और स्फोटक हरका पेड़। निवारक होता है। यह लगाने ही पाता, खानेसे करवीरभूषा (सं० स्त्री०) करवीरस्य भूपेव भूषा क्या आदमी क्या जानवर सबके लिये जहरका काम अस्याः । पालकी, प्रहर कर जाता है। मौर मुहम्मद हुसेन नामक मुसलः करवीराक्ष (० पु.) खर राक्षसका मेनायति । मान् इकोमने कहा,-कि कनेरका मूल अपर सकल करवीराद्यतेल (को०) करवीर पाद्य प्रधान स्थलमें विषमय पड़ते भी सर्पके काटनेपर विष यत्र, बहुव्री । तैल विशेष, कनेरका तेल । खेतकर. निवारक ठहरा है। कोड़ामकोड़ा मारनेको इसका वोरके मूलका रस, गोमूत्र, चित्रक और विङ्ग डाल मूल प्रयोग में पाता है। यथाविधि तेल पकानेसे यह औषध प्रस्तुत होता है। स्त्रियां निक समय करवीरका मूल खा आत्म इसमें तिलतल शरावक, करवीरादिकाका १ थरा- इत्या करती हैं। इसीसे दक्षिणदेशमै स्त्रियों के मध्य वक और जल १६ शरावक पड़ता है। करवीराद्य तेल विवाद उपस्थित होनेपर कहा जाता है कनेरके पास कुष्ठरोग और भगन्दरको दूर करता है। जावो। डाकर डामकके कथनानुसार करवीरके खेत करवीरका मूल और विष समभाग कूटपोम- मूलमें तीन हदविध होता है। इसका ०००१६ ग्रेन मात्र गोमुत्र एवं तैलमें यथाविधि पाक करनये खेत करवी- एक मेंड़वाको खिलाया गया था। १४ मिनट पीले हो राद्यतेल प्रस्तुत होता है। इसके लगानेसे चमैदल, उसकी हदगति रुक गयी। इसका मूल खानेसे दिलका सिधा, पामा, विस्फोट प्रभृति रोग मिटते हैं। चलना और पसानिका निकलना बन्द हो जाता है। रत करवीर, जाती, पोतयाल एवं मक्षिकाका करवीपुष्प हिन्दू देवतापोंको पति प्रिय है। पुष्प समभाग और सबके बरावर तेल यथाविधि फिर इसका पत्र एवं वल्कल सुखा बांटकर चगान डालकर पकानेसे जो तेल बनता, वह नासारोगको सर्वप्रकार चर्मरोगको उपकार पहुंचाता है। दूर करता है। कारवीरक (सं० लो० ) करवीरवत् कायति प्रकाशते, करवीरानुजा (सं० स्त्री० ) पादकी, अड़हर । कैक वा कर वीरयति,वीर विक्रान्तो गतु ल । १ अर्जुन | करीबोरिका (सं० स्त्री. ) मनःशिला। वृक्ष । २ करवीर, कनेर । ३ खड्ग, तलवार । कर करवौरी (स' स्त्री०) किरति विक्षिपति दानवराच- वीर मूलरूप विष, जहरीली कनिरकी जड़। सादौन, मी-अच् करः वीरः पुत्रो ऽस्याः। १ अदिति । करवीरकन्दसंच (सं० पु०) करवीर कन्द इति संज्ञा २ पुत्रवती, जिस ओरतके वहादुर लड़का रहे। यस्य । तेलकन्द । ३ श्रेष्ठगवी, अच्छी गाय। करवीरका (स. स्त्री० ) मनः शिला। करवीर्य (सं० १०) करवीरपुरे भवः, करवीर-यत् । करवीरणी (सं० स्त्री०) पुष्यवक्ष विशेष, एका फूलदार १ धन्वन्तरिके प्रति आयुर्वेद प्रश्नकर्ता ऋषि विशेष, एक पेड़। कोकण देशमें इसे 'ककर खिरनी' करते हैं। पुराने इकोम। २ वाहुबल, हाथका जोर। यह ग्रीम ऋतमें होती है। पुष्य रक्त लगते हैं। कर-करवील (हिं. पु.) करोल, करौर, कचड़ा। वोरणी तित, उष्ण एवं कट रहती और कफ, वात, करवैया (हि. वि. ) कर्ता, करनेवाला। विष, प्राध्यानवात, छदि, जय खास तथा कमिको दूर करवोठी (हिं० स्त्री०) पचिविशेष, एक चिड़िया । इसे करचोटिया भी कहते है। करती है। (वैद्यकनिषट) }
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/९१
दिखावट