पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१४९

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लखनऊ १५० सलीम शाह ( जहांगीर ) ने वर्तमान दुर्गसे पश्चिम उसका दामाद और उत्तराधिकारी नबाद सफदर जन मिर्जमण्डि' की स्थापना की थी। अनन्तर अयोध्या । (१७४३६०मे ) दिलोमे यजीर पद पर नियुक्त था । उसने राजवंश पहले और किसी भी,मुगल-बादशाहने प्रासा- वाइमबाड़ायी दुईप वाई जानिको भयभीत रचने के लिये दादि बना कर इस नगरको शोभाको नहीं बढ़ाया। नगरन ३ मील दक्षिण जलालाबादमे दुर्ग बनवाया तथा नशापुरका सुप्रसिद्ध पारसिक चणिक सेयत् खां लक्ष मणपुरके प्राचीन टुर्गका पुनः संस्कार कर उसका वाणिज्य करनेके लिये यहा आया था । किन्तु यहा। मच्छिमवन नाम रता। उस दुर्गके शिष्वर पर एक युद्ध-व्यवसाय द्वारा उसका भाग्य चमक उठा। वह | मछलो स्थापित रहनेसे उसका यह नाम दुआ था । उन्न- मगल वादशाहकी कृपासे १७३२ ईमें अयोध्याका ने नगरमें यहनेवाली नदीके ऊपर दो पुल बनवानेकी शासनकर्ता हुआ। लखनऊ नगरमें उसने राजधानी ! कोशिश की थी। पीछे यासफ उहीलाके यलने उसका घसाई। तभीसे अयोध्यामे इस स्वाधीन राजवंशकी आरम्भ किया गुआ कार्य शेष मुआ था। क्योंनि उमका प्रतिष्ठा हुई है। यह वश पीछे अयोध्याका वजीरवश हो लडका सुजाउद्दौला (१७५३६०में ) घसर-युद्धके याद गया था। फैजाबादमे दी रहता था। उसके लखनऊ नगरमें न रहने- सैयत् साके वंशधरों ने राज्यममृद्धिसे गौरवान्वित । के कारण नगरको कोई श्रीवृद्धि न हुई। हो लखनऊ नगरको बडे बडे सुन्दर महलों से मुशो- अयोध्या के इस नवायचंशके प्रथम तीन राजे हो योद्धा मित कर दिया था। स्वयं सवेदार सैयत् प्रां मच्छि और प्रसिद्ध राजनैनिक थे। उन्होंने अंगरेज, महाराष्ट्र भवनके पश्चाद्भागमें एक छोरा-सा महलमें रहता था। यौर रोहिला तथा दिल्लीके प्रधान प्रधान अमात्योंके दुर्गके दक्षिण पश्चिम जहा अंगरेजो का अस्त्रागार विरुद्ध युद्ध कर अच्छा नाम कमाया था । लगातार युद्ध. ( Ordnance Stores ) है उस स्थान पर यहां के शेष विग्रहमे लिप्त रहने के कारण वे राज्यशासनके सिया राजाओं द्वारा निर्मित दो सुत्राचीन अट्टालिकाका | राज्यके स्थापत्य-शिल्पको कोई उन्नति न कर सके। निदर्शन पाया जाता है। सैयत् खां जव सूवेदार हो कंवल सामरिक विभागकी उपयोगी दुर्गमाला, कृप गौर कर यहाँ आया तव उनमेंसे एकमें भाडा दे कर रहता सेतु मादि बजानेमें उन लोगोंका चित्त आशष्ट धा। था। वह तीन तीन महीने में भाड़ा चुकाता जाता था, चौथे नवाव आसक उहीलासे लपनऊका राजनैतिक किन्तु उसके वंशधरों ने भाडा देना बंद कर दिया। चित्र परिवर्तित हुआ। उसने अङ्करेजोंसे मेल कर लिया। आखिर नवाब आसफ उद्दौलाने उस अट्टालिकाको अंगरेजी सेनाको सहायतासे उसने रोहिलखएडको जीत राजसम्पत्ति बतला कर जब्त कर लिया। र वाराणसी तक अपना अधिकार फैलानेको चेटा की। संयत् सा जव पहले पहल यहा आया था, तब इस प्रकार धीरे धीरे उसने अपना दल मजबूत कर लिया। शेख लोग कई वार उसके विरुद्ध खडे हो गये थे, पर बहुत रुपये खर्च करके उसने पुल और मसजिद वनवाई कुछ कर न सके। आखिर वे उस वीरवरका बलवीर्या तथा लखनऊ शहरकी गौरवकीर्ति और स्थापत्यविद्या- देख कर स्वयं उसके अधीन हो गये। मृत्युसे पहले का प्रष्ट निदर्शन प्रसिद्ध इमामबाडा नामक प्रासाद सैयत्ने अपने शत्रु कुलको निर्मूल कर अयोध्या विभाग स्थापन किया । यह प्रसिद्ध अट्टालिका यद्यपि दिल्ली एक स्वाधीन देश बसाया था । वृद्धावस्थामें भी उसके और आगरेके इमामबाड़े की तरह मुसलमानी ढग पर घलवीर्यका ह्रास नही हुया था। हिन्दू लोग उसक, नहीं बनी है, तो भी 'कमिदरवाजा' नामक मसजिदके युद्ध-कौशलसे पराजित और भयमोत होते थे । प्रसिद्ध साथ संलग्न रहनेके कारण इसका सौन्दर्य देखने लायक हिन्दू-वीर भगवन्तसिह सीचि उससे द्वन्द्वयुद्ध कर मारे । है। इसका गठन साधारण तथा गाम्भीर्यपूर्ण है। इसमें गये। अपने अधीनस्थ सेनादल और अध्यक्षके शिक्षा ग्रीक और इटली गठनकी बहुत कुछ सदृश्यता देखी गुणसे उस समय उसने विशेष प्रतिष्ठा लाभ की थी। जाती है । १७८४ ई में जव यहां महामारीका भारो प्रकोप