पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१७९

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१८४ लजकारिका- लज्जालु ई०मे इनके एक पुत्र हुआ जो राज्यका उत्तराधिकारी लाप्राया ( स० स्त्री० ) केशवके अनुसार मुग्धा नायिका- समझा गया। फ चार भेदोमसे पक। लजकारिका (सस्त्री० ) लजलज्जां करोतीव घुल लजालु (सं० पु० स्त्री०) लाजेवाम्य अम्नीत्यय आलुः। टाप अत इत्वं । लजालूका पीधा। रवनामन्यात क्ष परिशेष । लजालु नामका पौधा । भिन्न लजना (हिं क्रि०) लजाना, गरमाना। भिन्न देशमे याद भिन्न भिन्न नामसे प्रसिद्ध है। जैसे, लजर-एक पहाडी जाति । बङ्गालमें-लाजक, लानुकीलता, लजावती, कुमायुन्- लजवर्द-वदोकसानके अन्तर्गत पदः नगर । लाजवती ; पक्षाव-टाजवन्तो ; पणतु-मान्दा मराठी- लजवाना ( हिं० क्रि० ) दृसरेको लजित कराना। लजालू, लाजरी ; गुर्जर-लजालु-ऋपामुनि , तामिला- लजाधुर (हि० पु० ) लजालु नामका पौधा । नोनलवटि; सेन्टगृ-पेङ्गनिद्राकण्ठी, अयोपत्ति ; कणाड़ी . लजाना (हिं० कि०) १ अपने किसी बुरे या महे व्यव मृदुगुढयरे । ब्रह्म-तस्युम् . संस्टन चराहक्रान्ता, हारका ध्यान करके वृत्तियोंके सकोचका अनुभव होना। लजालु, पर्याय--रनापादा, शमीपत्रा, स्पृशा, पदिर- २ लजित करना। पत्रिका, सदोचिनी, समडी, नमस्कारी, प्रमारिणी, मत. लजालू (हिं पु०) नज्जालु देखो। पणी, सदिगे, गण्डमालिका, लना, लजिरी, र पर्शलजा, लजीज़ (अ० वि० ) स्वादिष्ट, लज्जतदार । अवरोधिनी, रक्तामूला, ताम्रमला, म्यगुमा, अलविका लजीला (हि.वि.) जिममें लना हो, लजायुक्त ।। रिका, महाभीता, वशिनी, महीपधि । लजौहाँ (हिं० वि० ) जिममें लना हो या जिससे लजा __ यह हाथ डेढ हाथ ऊंचा पक काटेदार छोटा पौधा सूचित होती हो, लजीला। होता है । इसको पत्तियां छुनेमे मुझड कर चंद्र हो जाती लजका (म० स्त्री० ) १ वनकार्पासी, वनकपास । २ एक और फिर थोडी देग्मे धोरे धीरे फैलती है। इसके ब्राह्मणकी श्रेणी (सद्यो० २।५१४) इंटलका रंग लाल होता और महीन महीन पत्तियां शमी लज्जत ( ० स्त्री०) स्वाद, जायका। या बबूलकी पत्तियों के समान पफ सीकेके दोनों ओरकी लज्जतदार (फा०वि० ) स्वादिष्ट, मजेदार । पंक्तिमें होती हैं। हाथ लगने ही दोनों बोरकी पत्तियां लजरी (सस्त्री०) लजालुका, लजालु लता। लजा (स स्त्री० ) लजनमिति लसन जीऽने (गुरोश्च । संकुक्ति हो कर पररपर मिल जाती है, इसीसे इसका । नाम लजालु पडा। फूल गुलायो रंगकी गोल गोल हलः। पा ३।३।१०३ ) इति अ-टाप । १ अन्तःकरणवृत्ति विशेप, अन्तःकरणको वह अवस्था जिसमें स्वभावतः चुडियों की तरह के होने हैं। फूलके भढ़ जाने पर छोटे छोटे चिपटे बीज पड़ते हैं । भारतके गरम भागोंमें यह अथवा अपने किसो भद्दे या बुरे याचरणकी भावनाके कारण दूसरोंके सामने वृत्तियां संकुचित हो जती हैं, सर्वत्र होता है । बंगाल के दक्षिण मागमें कहीं कहीं बहुत चेष्टा मंद पड़ जाती है, मुंहसे शब्द नहीं निकलता, सिर दूर तक रास्तेके दोनों ओर यह लगा मिलता है। नीचा हो जाता है और सामने ताफा नहीं जाता, लाज, इसका गुण-कटु, शीतल, पित्तातिसार, गोफ, दाह, शर्म, हया। पर्याय-मन्दाम, हो, त्रया, बोड़ा, अपनपा, । श्रम, श्वास, व्रण, कुष्ट और कफनाशक । (गजनि० ) भावप्रकाशके मतले-शीतल, तिक्त, पाय, कफपित्त. मन्दास्य, लन्या, ब्रीड, नीडन। २मान-मर्यादा, इजत । ३ लजालु, लजालू। ४ वराहकान्ता, वाराही। नाशक, रक्तपित्त, अतीसार और योनिरोगनाशक । लजाकर (सत्रि०) लज्जाजनक, लाज पैदा करनेवाला। ____एस्लिका कहना है, कि मलवार उपकूलवासी लजान्वित ( स०वि०) लजया अन्वितः । लजायक्त पथरीको वेदनामें इसकी जडका काढ़ा पीते हैं। कर. लाजवाला। मण्डल उपकूल वामी वाइती जाति अशं और भगन्दर लजाप्रद ( स० वि०) लजाजनक, जिससे लला उत्पन्न । रोगमें इसकी जड़का काढ़ा पीतो और दूधके साथ दो वा दो से अधिक पत्तोंका चूर्ण सेवन करती हैं । भगन्दर