पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२१०

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लवण २१५ दिये हैं। उसके सुशासनके लिये कहा कहीं भ गरेजराजे| मात्र ही लषण प्रस्तुत करनेके मलाया खेतोवारी भी भी रखे गये हैं। बगदेशीय ल्यणके कारखानोंके प्यय | परते हैं। इतने पर भी उनकी गरीवा दूर नहीं होती। स्थापक अगरेज कलकत्तम रहते हैं। घे जहा पात्र हो। सभी बड़े कनखोर और अत्यत दरिद्र हैं। का मंत्रणा करते हैं, यह "सास्टपोर्ट" कहलाता है। इसे तमलुषका ल्यण यहाँकी भागीरथी, हल्दी, टेंगरा यो के अधीमस्य समो कायालयमें एक नियम चलता स्वाली, रायपाली आदि कई नदीके जलसे प्रस्तुत होता है। विस्तार हो जाने भयसे मय स्थानोंकी लवण | है। इसरिपे एपण प्रस्तुत करनेफे सभी कार्यालय इन्हीं प्रस्तुतप्रणाला न लिख कर सिर्फ तमलुककी ल्वण, मदियोंक पिनारे बने हैं। मलङ्गी रोग यथोपयुक्त स्थान प्रस्तुतप्रणाला जाता है। निर्दिष्ट कर उसे चार भागोंम पारसे हैं। उसके एक भाग तमलुक नगर, कल्पत्तेसे २२ कोस दक्षिण रूपनारा का नाम 'चातर' है । यह सबसे बडा होता है और उसमें यण नदोके तट पर अवस्थित है। पहले यह नगर समृद्ध लणकी मिट्टी प्रस्तुत होती है। दूसरेका नाम 'जुरी' अर्थात् और वाणियम बड़ा प्रसिद्ध था, लेकिन भाज यह प्याति, कुएड है और यह लवणात जल रखनेके काममें माता है। जाति रही। मिर्ग नाममात्र रह गया है। रितु लवण' तीसरेका नाम 'मादा अर्थात् लपण छाननेका म्यान है। लिपे यह नगर सामान्य नहीं है। यहा जो कोठो है उम चौथा "भूरो घर' अथात् लवण पाक करनेका घर है। से हर साल नी या दश लाख मन ल्यण प्रस्तुत होता है। इन चारों मागको समप्टिको 'वालाहा' या 'मलान कहते तथा उससे कम्पनी पचास लाग्व रुपये करीब लाम हैं। इस प्रकार एप पक पालामी लिपे दो तीन उठाती है। दोघे जमीनकी जरूरत होती है। ____ तमलुसफो सदर कोठाक अधीन पाच कार्यालय है पहले हो षद आये हैं, कि खालाडीके अन्यान्य मशसे जिनमेंसे तमलुक महिपादल, जमालुठा, औरझापाद तथा 'वातर' पहा होता है उसके लिपे एक घोघा या उससे हुमजुनको गाढत ही प्रधान और विग्यात है। फिर भी अधिक स्थानको मावश्यकता होती है। मलगी प्रत्येक माढतके अधीन छोटे छोटे कार्यालय हैं। इस , लोग उसे वही सावधानीसे साफ करने हैं और यहांसे छोटे कार्यालयको नाम 'इहा है। इन सब हुद्दोंम दारोगा, कुछ मिट्टी खोद कर उसके वीच वोचमें वथा चारों ओर मोहरर, आदलदार आदि मिस मिन नामके यहुतसे' वाघ दते और इस म्धानको तीन भाग करते हैं। उसके कर्मचारी नियुक्त रहते हैं। ये कातिकसे ले कर जेठ तक बाद उन तीन वेतोंको कोड कर पटेलेसे चौरस र लेते ल्यण प्रस्तुत करते हैं। कातिकके शुरूम लवणममिति, हैं। यह चीरस की हुई भूमि आठ दश दिन तक धूपमें (साल्ट-चो) के साहव जिस आदतमें कितना लरण सुखाइ जाती है। पीछे उसके ऊपरी मिट्टा और इटे तैयार करना चाहिए, यह ठाक करते है। इस निर्दिष्ट की दीवारमें ना लगनेसे जैसा चूण उत्पन होता है परिमाणका नाम 'तायदाद' है। इस तायदादके मुताबिक, वैसा ही घृण हो जाता है। घृण तैयार होने पर पाच प्रत्येक हुद्दे के कर्मचारी अपने अपने हुद्दे के प्रजाओं या या छ मनुष्य इधर उधर घूम कर उसको मच्छी तरह कुलियोको थुला कर कहत है कि कौन कितना ल्यण रौंदते हैं। अनन्तर एक सप्ताह तक उसे घूपमें सुखा तैयार करेगा और घया दाम हेगा। पाछे एक स्रार या छपा कर तसे जमा करते हैं। इसके बाद वाढसे चातर हुमा कागज दिया जाता है । म निर्धारण क्रियाका नाम सिक रहने और धृपकी सहायता पानेसे ल्यण मृत्तिका सौदापन" है तथा जिस कागग पर यह लिया जाता है। अच्छी तरह उत्पान होती है । बाढके जलसे पद हायचिट्ठा कहलाता है । जो हम प्रकार सौदापत चातर घुल जानेसे तथा कातिक पा अगहनके महीने में स्थिर कर हायचिट्ठा लेते है, ये 'मला' कहलाते हैं। रयण, मत्यत घर्ग या कुहेसेसे अपया मेघसे मायाश के नेयार करने में बहुत कम लाम होता है। सुतरा फेयर यही रहनेसे ल्यणोत्पत्तिमें उकसान पनुचता है। पूस और काम पर कोई अपना गुनारा चला नहीं सक्ना रामललो माघफे महीने सुमारफे जलसे जुरी नामक कुएर परि