पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२४७

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- २५२ लापा चय जानने पर उसके शारीरिक बलकी परीक्षा की जाती संघका उद्देश्य और बोलनेकी गति आदि सिनाई जाती है। क्योंकि उसका शरीर यदि दुर्वाल हो तो वह कभी भी है। इस पाध्यायम्या प्रथम वर्षमे दालकके पिता या ऐमा कठोर व्रतपालन नहीं कर सकता। पहले लडका, | आत्मीर म्जन महीने में मिर्फ एक दिन आद तथा लंगड़ा, बहरा, गूगा या तोतला है या नहीं, इसको ये शिक्षका वेतन और लड़के की ग्बुगकी दे कर घर लौट अच्छी तरह जांच लेते हैं। यदि बालकके स्नायविक , माने हैं। इस प्रकार दो या तीन वर्ष के भीतर बालक जब दुर्वलता आदि कोई दोष हो, तो वह कदापि मठमें प्रवेश पायथ्यकीय समी पाठ कण्ठन्य कर लेता और शिक्षक नहीं कर सकता। शारीरिक परीक्षामें उपयुक्त होनेसे उसको गे त्य उल पदके लायक समझने है, तब वे प्रधान बालकके पिता या अभिभावक मठके किसी यति या ' यति (रिप-रगन् )के पास आवेदनपत्र भेज देते है। लामाले निकट अपने पुत्रको रन आने है । बालकके निकट' इस समय पाठकको एक उत्तगंध और १०) काया भेजना यात्मीय ही असर उसके परिदर्शक और उपदेष्टा हुआ पडता है। प्रधान यति उसको शारीरिक और मान- करते । निकट आत्मारका अभाव होदेमे बालकका कोष्टी- मिक शक्तिही फिर परीक्षा लेने है । गेय उल पदके फल विचार र मठके किसी वृद्धयतिके हाध बालकको लायक जान कर उन पट पर ग्यापित करने के लिये एक सौर दिया जाता है। उस समय वही वृद्र पनि बालकों । जामीन नामा लिनवा कर अंगूठे का निशान ले लेने हैं। के उपदेष्टा शेते है। गुरुके हाथ समर्पण करत समय । पीछे गायाविशेष में शिक्ष' ममाप्त करने के लिये शिक्षक बालकके पिता कुछ रुपया, खानेशी वस्तु और शराब दे अपने छात्रको वहाँके प्रधान मठाध्यक्ष ( टपाध्याय )के कर यतिको सनुष्ट मरते है। वही कहीं रुपये देनेकी निकट ले जाने हैं। इस उपाध्यायको टम समय प्रणामी प्रयाताई। मिकिम के पेमियोनछि स्चाराममे करीव स्वरूप एक रुपया और पक उत्तीय देना होता है। डेढ़ सौ रुपये और भूटान में एक नी भूटानो मुद्रा दी जब गुरु शिष्यके माथ उपाध्यायके पास जाते हैं, जाती है। छोटे छोटे मठामि १०) तक भी दिया । तो उपाध्याय गुरुको निम्नलिखित प्रश्न पूछने हैं,- जाता है। । "लामा धर्म ग्रहण करनेकी इसदी प्रबल इच्छा है वा गरगान या उपदेगा ययोपयुन वर्ग और खाद्य , नहीं ? यह बालक क्रीतदास, ऋणी अथवा सैनिकत्ति- वस्तु पार वालक्को मठमें ले जाते हैं। पोछे जिस , धारी है या नहीं? इसको कामर्यादा कैसी है पश विस्तात गृहम यति लोग एकत्र हो कर बैठते हैं, वहां किसीने इमके यह धर्मग्रहण करनेमे आपत्ति भी की है। बालकको ला कर सबोंके सामने उमके वंशका परिचय | क्या इसने कभी बुद्धकी दोन आमाओंका उलंघन भी और पिताक दिये हुए उपहार आदिके बारेमे कह मुनात किया है ? जल में विप डाला है या पर्वत पर पक्षियोंको और प्रधान यति या वओ-छओससे उस वालकको कमी ढेला भी मारा है ?' इत्यादि । उपरोक्त प्रश्नों के लिया बनाने के लिये अनुमति लेते हैं। श्रेष्ठ यतिके इस ! यथायथ उत्तर पर संतुष्ट होनेसे उपाध्याय उसे पढ़े हुए विषयमं अनुमोदन करने पर वह बालक शिक्षाधिरूपमे पाट्यग्रन्थोंका आनुपूर्णिक पाठ पढ़ने रहते हैं। मठा- लिया जाता है। चार्य जब बालकके मेधा और विनयादि गुण पर मुग्ध हो विद्यार्थी अवस्थामे इस दालकके वाल छैटवा दिये जाते, तब चे मठकी नाम-तालिका पर शिष्य और गुरुका जाते हैं। पीछे वह शिक्षकके अधीन साधारण वस्त्र पहन नाम लिख अंगूठेका निशान ले लेते है। इस समय कर पाठाम्यान करता है। क न ग से आरम्भ कर क्रमशः वालकको एक उत्तरीय उपहारमें दिया जाता है। इसके वह कई छोटे छोटे धर्मग्रन्थ कराउथ कर डालता है। बाद उसे शाक्यमुनिके संसारत्याग और संन्यासाश्रम- इसके अलावा उस नीति उपदेश और ध्याकरण पढ़ाया ग्रहणकालीन बनधारणके अनुरूप लाल या हल्दीसे जाता और शिक्षा तथा उसका चरित्र मंशाधनके हेतु रंगे हुए वस्त्र पहनाये जाते हैं। वालक उपाध्यायको इसी समय उसे दशविध दुष्कर्म, नोच जन्मके लक्षण, | परीक्षामें लामा-धमंग्रहण अनुपयोगी होनेसे वह मउसे