पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२५०

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लामा २५५ ग्रहण करना पहा था, इस समय भी उसे उसी प्रकार रमो छे और मोर नाम मठमें भोजयिधा और । मठमी तालिकामे नाम लिखा कर प्रत यति होना | भौतिकविद्या शिक्षाके लिय स्वतन शाखा प्रतिष्ठित है। होता है। जो यति अपन अध्ययसायफ वल पर खुलो। जो इस विद्यारयमें रह कर इस विज्ञानक गूढ रहस्यका विचारसमामे अथवा मठको प्रधान परीक्षा उत्तीर्ण मम जानते और परोक्षा उत्तीण होते है, घे डग रम्प होते, ही बौद्धधर्मतत्त्वको श्रेष्ट उपाधि पाते है । कहलाते है । ये आयुर्थेद, रसायन, भूततस्य मादिको उपाधिपान के बाद ये सब प्रकार माचार मयादा पानेके | आलोचना करते है । शैवमाप्रदायकी तरह घे घेशभूषा अधिकारी होते है। धारण करते है । सम्मरत तान्त्रिक कापालिक मत गे घे तथा रय जम पा चौद्धधर्मकी नेष्ठ उपाधि है। अनुसरण पर हो इस सम्प्रदायको उत्पत्ति हुई होगी। गेलोह शिक्षा बलसे 'घेप' हो र किसी एक धानिक इस ध पोफे अश व्यक्ति 'मग' या मविष्यद्वका कह तस्यालोचनामें नियुक्त रह सकत हैं। लेकिन जब तक | लाते है और झाइना फूलना और भूत उतारना या घे इस पद पर न चढे ग तब तक उद घमशास्त्र हाका | भगाना आदि कार्य दिखात है। आलोचना करना होग। गे पे उपाधि प्राप्त बटुन रे। आधिान नरे। मठकी शासन यवस्था। बौदर्यात तिव्यत, माडोल्या भामदो और चीन राज्यो । बडे पड़े सघारामम हनारों बौद्धयति वास करते गरएटको देसरेसमें परिमालित सधारामक प्रधान लामा है। एक नियम पालन न पर सरनेके कारण या स्पा मगोन पद पर मिपिक है। नो मठक, समान वहामा कार्याची निर्विरोध चलाने के लिये आचार्गा पद प्रहण महा परत घे मठमें रद करतज्ञ एफ शासनत त बनाया है। यह एक तरह राजतन्त्र हो शास्त्र पढ़ते है। पाछे त शास्त्रको वक्ष्यमाण परोशामे विद्यमान देखा जाता है। इस पद्धतिका परिचालन उत्तण हो पर सपूज्य गा रदन् स्यारामा 'लप करराक लिपे परिदशकरूपमें कुछ पर्मचारी नियुक्त हैं। पद पाते है। घे यहाका हिसाव किताव करते और आवश्यकता पहने पर जम्प परीक्षा उत्तीर्ण छात्रगण जनस धारणके पर दुर्रत छात्रसको भा अपराधके अनुसार दण्ड वीच हो गिने जाते हैं। ये सुलो जगह सगेको बौद्धधर्म का उपदेश दिया करते हैं। जिसके बारह मसित सधा | कु-यो र कु मादि उपाधिधारी देवानुग्रहीत लामा रामोशे कोह मन्य पिसी मठाई को यह उपाधि रोग ही इन सब सघारामोंक एकमात्र पर्ता हैं। महो देनका अधिकार नहीं है। देवाशसम्भूत लामाक ीय बौद्ध सम्प्रदायमें घे पुलियन नामसे परिचित है। लिय निर्दिए पद और कार्याउली में उनश अधिकार है। पिसी पिसी सघाराममे स्थान पो या उपाध्याय ही अध्यक्ष राजशनिधारी दई लामा ऐसे छात्रों को 'छमोजे' और है। ये पान पो दर लामाफी अनुमतिके अनुसार या 'पण्डित'को उपाधि देत है। इन दोनारी मध्यरत्ती| प्रादेशिक लामा प्रधानोक यादेशानुमार हा नियुक्त होते उपाधिका नाम लोरस य है। 'रव जम्प और 'छमोजे । है । ये एकमसे मिफ मात वप तक एक मठका अध्यक्ष उपाधि करीब परीव समान है। पे ते जा कह कर सम्मा रह सरते हैं। उनक अधान निमोक्त कर्मचारी मठकी नित होत हैं। इसलिये देशाशसम्भून लामामोंक नावे | सुवा मोर सुशासनकी रक्षा करते है। ये ममी मठ यधाममसे सान पो, छाजे तथा रव जम प पदाधिशारा यासा यतिमोकी सराहस निर्वाचित होते तथा समी गण मर्शदासम्पन्न है। छप्रोजे और रव जम्-प थ्रणासे | निधि समय तक नियोजित पदको मर्यादा रक्षा करने सान पो चुना जाता है । पिसी रिसा मठ, खान् | बाप है । पोफे महफारी काम छमा नियुर दपे जात है। रोष पोन या अध्यापा-ये सयरामफै धर्म छोटे छोटे मठमें प्रधान रामाश फर्य छमाजे पारव भोर विद्या शिक्षाके पारदर्शक है। नम्-प मोक्षाय सौंपा हुआ है। २९ दसो-कोषाध्यक्ष गौर क्षजांची।