पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३६३

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लोककत्त-लोकनाथ ब्रह्मचारी लोदकर्तृ (स० पु०) लोकस्य कर्ता । १ विग्णु । २ शिव । लोकहारीय ( स० क्लो०) सामभेद । ब्रह्मा। लोकधात ( स० पु०) लोकस्य धाता। शिव । लोकम्प ( स ०नि०) मनुष्यको डरानेवाला। लोकधातु (सं० पु० ) वौद्धने मतसे जगत्का अन लोककल्प ( सं० वि० ) १ जगत्के जैसा। २ जगत् विशेष । स्थितिके समान। लोकधारिणो ( स० स्त्री०) पृथयो । लोककान्त (सं० त्रि.) लोकानां कान्तः। १ लोकप्रिय, लोकधुनि (हि स्त्रो०) जनरव, अफवाह । जनप्रिय । २ऋद्धि नामक योपध। लोकना (हिं० कि० ) १ ऊपरले गिरतो हुई किसी वस्तु- लोककार ( स० पु०) लोककर्ता। ब्रह्मा, विष्णु और को भूमि पर गिरनेसे पहले हो हाथोंसे पकड लेना। शिव। २ वीचमेंसे ही उडा लेना, रास्ते से ही लेना। लोककृत् (सं० त्रि०) १ सृष्टिकारी । २ स्थलकारी। लोकनाथ (सं० पु०) लोकाना नाथः । १ बुद्ध । २ ब्रह्मा। लोकरुनु (सं०नि०) सृष्टिकर्ता। ३विष्णु । ४ शिव । ५ पारद, पाग। लोकक्षित् (सं० वि०) स्वर्गगामी, आकाशचारी। | लोकनाथ--१ अद्वैतमुक्तासारके रचयिता । २ मल्लप्रकाश- लोकगति ( स० स्त्री० ) जीवनयात्रा। के प्रणेता। लोगाथा ( स० स्त्री०) लोकपरम्पराथुत गाथा, कि व लोकनाव-एक कवि। ये दरवार वूदीमें राव राजा दन्ती । वुद्धसिहजीके आश्रित थे । उन्हों के नाम मे इन्होंने- लोकगुरु (सं० पु०) जगद्वासीके उपदेष्टा, याचार्य । रसतरङ्ग और हरिवशचौरासोका भाष्य प्रणयन किया लोकचक्षल ( स ० क्ली०) लोकानां चक्षुरिव । १ सूर्य ।। था। एक वार राव राजा कावुल जाते थे। उस समय २ लोगोंके चक्षु, यादमीकी आंख ) कविजोको भी साथ चलनेका हुक्म हुआ। इस पर लोकचर ( स० वि०) १ जीव, प्राणो । २ जगत्नमण-1 इनकी स्त्रीने जो कवि थीं, इनके पास एक छन्द लिख झारो, संसारमें विचरनेवाला। भेजा। वह छन्द राब राजाको दिला कर इन्होंने वहां लोकचरित्र (सं० क्ली० ) जीवनयात्रा, मनुष्यका जोवन- | जानेसे छुट्टी पाई। इनका काध्य साधारण श्रेणीका है। इतिहास। उदाहरणार्थ एक नोचे देते हैं- लोकवारिन् ( स० त्रि०) लोकचर। भूषण निवाज्यो जैसे सिवा महाराज जू ने लोकजननी (सं० स्त्री०) लक्ष्मी। वारन दै वान वरा पं जस छाव है। लोकजिन ( स० पु०) लोक जितवानिति जि किप तुक दिल्लीशाह दिलीप भये है खानखाना जिन च। १ बुद्ध । (त्रि०) २ लोकजेता, संसारके जीतने गगसे गुनीको लाखे मौज मन भाव है । वाला। अब कविरानन पै सकल समस्या हेत लोकन ( स० वि० ) मानवतत्त्वदशी । हाथी घोड़ा तोड़ा दै वढायो बहु नाव है : लोकज्येष्ठ ( स० लि०) १ नदश्रेष्ठ । २ वुद्धभेद । वुद्धजू दिवान लाफ्नाथ कविराज करें लोकतत्त्व ( स० की०) मानवतत्त्व । दियो इक लौरा पुनि धौलपुर गांव है ।। लोकतन्त्र (सं० क्ली०.) जगत्का इतिहास । लोकनाथ चक्रवत्ती-कर्णपूरकृत अलङ्कारकौस्तुभको टोका लोकतस् ( स० अव्य ० ) लोकानुरूप, पहले के जैसा।। और मनोहरा नाम्नी रामायणी टोकाके रचयिता । लोकनुपार ( स० पु०) लोके तुपार इव । कर्पूर, कपूर । लोकनाथ ब्रह्मचारी-पश्चिम-वनमें ब्राह्मप फुल उत्पन्न लोकत्रय (सं० क्ली० ) स्वर्ग, मत्य और रसातल । एक ब्रह्मचारी। दश वर्षको अवस्था तक इन्होंने गांव. लोकदम्मक ( स० वि० ) प्रपञ्चक, ठग । की पाठशालामें पढ़ा। पीछे वे संस्कृत पढ़नेके लिये लोकद्वार (सं० क्लो०) स्वगंद्वार । गुरुगृहमें गये। इसी समय इनका यज्ञोपवीत संस्कार