पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४३३

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चक्रवर-क्रोक्ति ब्रह्मकुण्डसे पूर्वभागमे श्वेताला नामक सर्वपापनाका चार, आयुष्मान् कोनिमान होगे।' वाश्यक पक बुण्ड है ! इस कुरडमें आ कर स्नान करने वचन सुन कर खेत नाति भक्तियुत वित्तसं प्रणत हो नियम है। सगवागजो प्रसन्न करने लिये तय करने लगे। मग. श्वेतगड़ाके उत्तर पुन, ऐश्वर्य और नुपमा अक्षय वान वोयरने प्रसार हो यार कहा, 'राजेन्द्र ! तुम्हारी नामक एक बट है। इस क्रममा प्रदक्षिणा कर शिवभार जा इच्छा दो लो घर मासो।' जान हथ जाउ प्रार्थना दत्तचित्तसे पूजन करना होता । वृक्ष समाप की, 'यदि आप दम दास पर प्रा है, तो दो चर माधवदेव अवस्थित हैं। उनमें दर्शन गनेसे महज दीजिये। पहला वह कि इस पुण्यतम भापक निकट मुक्तिलाम होता है। भरा प्रणान्न होने परमीनारोगार मग साप हाके __माधवले निकट अनेक चिता पड़े हैं। गन्धपुग्पादि निट मेग अन्तिम काल शेप हो।' शिवने कहा, 'महा द्वारा उनकी भी पूजा करनी होती है। पीछे कामधेनुनी रा. 'तुम धन्य हो, फोरिदमरा र टने की अपनी प्रजा काना आवश्यक है। बेनगट्नाले दक्षिण वैनगना जग मी इच्छा न दुई। महाराज मेरे पास जो जारी ले जलने निजट परूपी धर्म अवस्थित है । गन्धयुप्पादि है, मेरे स्नानार्थी जिसमे नाना तोों हा समागम होता द्वारा उनकी पूजा करनेसे चतुर्वेद पाठ फल हाता है। ले, भाजने उस नुस्यारे नामानुसार ध्येतगना नाम वृपको आलिङ्गन कर पोछे बकेश्वरके दर्शन रे । पाद्य रंगा और तुम भा अन्त जाल में मेगा पद लाभ करोगे, अादि द्वारा अभिषेक कर यथाक्रम पूजा करनी होतो इसमें सन्द नही । तुम्हारा चरित जो सुनेगा और तुम्हारा है। नृपमूर्ति के पश्चिम बंदी के मध्य वक्रेश्वरदेव अव- स्तोत्र जो पाठ करेगा उसे स्वर्गकी प्राप्ति होगी। उस स्थित है। फिर पानी भी यमालय नहीं जाना पडेगा। मेरे निष्ट इस अष्टावक्रनिर्मित परम रमणीय पुण्य शिवक्षेत्रका स श्वेतगडाके जलगे स्नान कर जो पिण्डदान करेगा, जो रमरण वा प्रणाम करता उसके सभी पार दूर उस भया-प्राद्ध करना फल दोगा।' होते है। इस प्राचीन बहानीसे मालूम पड़ता ६, हि नाना ऊपर जिन सब कुण्डौका उल्लेख किया गया उनकी उण-प्रत्रत्रणशोभिन यह निभृत रवान बह-ऋपियों तप नामोत्पत्ति किस प्रकार हुई है, वह भी बकेश्वर माहात्मा- वियोंका प्रिय स्थान समझे जाने पर मो श्वेन नामक ने वर्णित है। विरतार हो जानेको सयसे यहां पर नहीं किली हिन्दू-राजले यत्नसे हो उस पुण्यक्षेत्रको प्रतिष्टा लिया गया। । ई है । आज भी नाना स्थानाले भने यात्री इस तीलि केश्वर-माहात्म्यमे पक ऐतिहासिक घटनामा उल्लेख । दर्शन जरने आते है । यह ६ वान अत्यन्त स्वास्थ्यार है। इस प्रकार है- यहांक कुण्डरूपी उष्ण प्रत्रयों का जल सचमुच रोग- ___ सत्यवादी, सत्यपरायण, वीर्यवान, जितेन्द्रिय और नाशक है। दयालु श्त नामक एक राजा थे। शिवजीमे उनकी | वक्रोक्ति (सं० स्त्रो०) का कुटिला उक्तिः । १काकृक्ति, अट मक्ति थी। मङ्गलमोर नामक नगरमें उनकी राज- | यङ्ग-वचन । २ कुटिलोक्ति, कपट वचन । ३ शब्दालङ्कार यानी प्रनिटिन थी। वे प्रति दिन ५ योजनका रास्ता विशेष । काबादिमें श्पवाक्य प्रशंग या व्यहोक्तिको ने र चक्रेश्वरमा पूजा करने आते और फिर लौट जाते वक्रोक्ति महने हैं । नाहित्यदणके १०म परिच्छेद में थे। उन्हें भक्तवत्सल भगवान् चक्रेश्वरने वर दिया। इसका विषय गों लिया है- था, कि 'तुम शत्रुओंसे दुराधर्ष और सर्व वा ब्रह्माण्य "अन्यस्यान्यार्थकं बारपमन्यया योजनेद यदि । (चा वाहाणमे अनुरक्त) होगे तया देवहितको प्रिय वस्तु अन्यःश्लेपणा काका या सा वक्रोक्तिस्ततो द्विधा॥" वानरचण्ट जमे राज्य करोगे। तुम्हाग राजसवन (साहित्यदर्पण १०६४१५०) सभी प्रकार के ऐश्वर्यसे समायुक्त होगा, तुम निपुल धन साधारणतः वक्रोक्तिले दो अर्थ समझे जाने हैं। उनमें