पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६१०

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वरियु-वरीयान कुछ म तथा भौर भी कुछ सड़के पको बना दो परिणी ( स० स्त्री०) गिी, करिया। चरिप ( स० को०) सायाहुलकात् इट् । परसर, वर्ष । २ उपन मान तराज्यका प्रधान नगर। यह मशाल परिषा (स स्त्री०) साबहुपचनात् इट् । वर्षा। २२ ४४० तथा देशा० ७३ ५६ ३०“पू०फे मध्य घरियाप्रिय (स.पु०) यरिया पर्या प्रिया यस्य । चातर मस्थित है। बहोदा राजधानोसे यह २५ कोस उत्तर | पक्षो। पुडा पडता है। परिष्ठ (स० वि० ) अयमेरामतिशपेन घर उकर्या इमन, परियुगर्सवानवासी एक यणिस्। इसका असल नाम प्रिपस्थिति परादेशः। १ पातम, श्रेष्ठ। २ उपतम, मगदू है। श्यामराजका अनुप्रह लाभ पर ये धीरे धीरे विस्तीण'। (मा.) ३ ताम्र, तावा। ४ मिर्च । (पु.) पहाफ १६ अमात्य हो गपे। एक दिन राजा रहे राज | ५तित्तिरपक्षी तीतर। ६ नागरड या नारद पृक्ष धानोशी शामनात धनार किमी कामर्म वाहर चले नारगो नोवूका पेह। ७ चाक्षप मनुके पुत्रका नाम । गपे। इसी समय पे श्यामराजकन्याको चुरा फर मर्श | धर्म-सायणि मग्य तरफे सप्त ऋपियोंमसे एक। उस पान ले मापे तथा यहाके पासनाता आलेइनमाका | तमस् प्राषिका एक नाम | १० दैत्यविशेष । विनाश कर मर्तनानके तामनकर्ता दन पैठे। १२८५ परिष्ठक ( स०नि० ) परतम, श्रेष्ठ पूजनीय । ० श्यामराजने उनका पदाधिकार स्मोकार किया। इस परिहा ( स० स्रो०) १ मादित्यमका, हुरहुर । २ हरिद्रा, समयमै इतिहामा ये राजा परियु नाममे प्रमिद्ध हुए। हलो। ३गुल्मभेद । ( Poln ima Icosandra ) इसके बाद परियु कापानी राज्यको जीत कर राज | परिष्ठाभ्रम ( १० पु. ) स्थानयिशेष । कम्पाका पाणिग्रहण किया और अपनो नामनातितो परिशिष्ठ ( स० को०) १ कशार । २ सुगधचाला। फैलाया। दो चीनमेनाके अ याचारमे पेगूगेजको परिहिष्ठमूल (स० क्लो० ) शोर मूल, खसको जड । बचाने के लिपे थानो सेनासे मदद पहुचाई थी रितु यरी (स० मी०) वृणोतीति यूपदाधच गौरादित्वात् डीप । पोहे हो दिन मनमुटाय हो गया जिममे घे १शताग मतावर । २ पाजामाग्निसन्दीपनरस । पेगराज्यको अधिकार कर बैठे। १२८२ इ०में इन्होने | ३ सूर्यको पतो। मर्रायान नगरमें 'माधिरेनमा पगोडा म्यापन दिया। वरीताक्ष ( स० पु० ॥ एक दैत्यका नाम । ( महाभारत) परिपस (स.नि.) १ अतरोक्ष। (पु.)२धन । वरीत (म त्रि०) आच्छादनकारी, दानेवाला। ३ पूजा शुथूपा। वरीदास ( स . पु. ) गधर्च नारदक पिता। परिपत् (म.नि.) धनश्र्ता । धराधरा ( स० स्त्री०) छन्दोमेद । इसके १, २ और ४थ परिवम्या (म. खा०) वरियम पूताया करपाम् परि चरणमें ११ अक्षर होते हैं जिनसे १, २, ४ ५८ १०, यस-या। (नमोवरिवसरिचा फ्यच । पा ३३१०१६ ) ततः ११या पूर्ण गुरु और याको लघु होते हैं। तीसरे चरणम अ ततशप । शुभूपा मा। १, ३,६७ और या लघु गौर वाकी वण गुरु होते है। यरिवस्थित (स० वि०) वरिवस्या सखाता अस्य तारका 'घरीमन (८०नि०) वरिमन देखा। दित्वादितच अपना परिवस्य क, (क्यस्यविमापा । पा घरायान ( स० वि०) अयमनयोरतिशपेन उपर्यगे या ६१५०) पझे यरोपाभार । उपासित, जिसको उपा। ईयसुन्, प्रियस्थिति यरादश ।१ धेठ, यहा। "वरी सा की गई हो। यानेपा प्रश्ना कृती रोहितो नृप ।" (मागवत २०११) घरिवोद (म.लि.) परिव धन ददानाति परिधन्दा ! २वरिष्ठ, पूजनीय। ३ मति युवा । (पु.) ४ फलिा का धनदाता । (शुस्सयजु १७१४) ज्योतिष विक्म्म आदि सत्ताईस योगोंमसे अठारहया वरिवोधा (स.नि.) घनदाना। योग। इस योगमें जन्म लेनेवाला मनुष्य दयाल, दाता, परियोविद् (स.लि०) धन सम्भयिरा जो धन मिलया दे। सुन्दर सत्कर्म करनेवाला मधुर सभावका एच धन जन Vol x 150