पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७१०

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वसन्त यामिनी प्रमोदना एव ऊपा मधुरदासिनी होती है। } मी कामिनी में नहीं दखता । अतएव हे विधाता। यह जल निगल एवं पथ सुगम हो जाते हैं। सामे | तब्य सम्पादनके लिये आपको ही कोई उपाय विधान स्थल पद्म तथा बलम जल-पद्म प्रस्फुटिन दास हैं। परना होगा। बलिया चटक जाती हैं। उनस्थला अलि ममुदायको ___फन्दर्पको बातें सुन कर किम तरह शियको सम्मोहित मधुर भकारस गूंज उठती है। मरय समोर माद मन्द | | किया नायगा इसको चितासे विधाता व्याकुल हुए। चालसे प्रवाहित होता है। स्निग्ध मधुर तरलनाकुल चिता करत करत उनका एक निश्वाम निर्गत हुआ, उसी नाना जातीय प्रचुरतर कुसुमभारस झूम जाती हैं। निश्वाससे कुसुमसमूह भूषित यसतका उत्पात हु ।चुता कुसुमाके सौरभम धन, उपवन, उद्यान प्रभूति पामोदित | दूर, चुनलिका प्रमरममुदाय पर कि शुरु प्रभृति यम हो उठते हैं। लताओंके नये नये पल्लर, फल, 'फल,! तक हाधम विराजमान थे। उस समय यम त एक पर कलियांस घास ती नभूमि नपान माज नवीन | प्रफुल पादपत् शोभित हुआ। उसको आकृति रस कोर वेपमे सुसज्जित हो कर सदैव हास्यमया बनी रहता नदनिम, दोना नयन प्रफुल पकजयत् सुशोभित, मुखमडठ है। चद्रदयको दुग्स्निग्ध ज्योत्सना पक्षियो क म ध्योदित पूर्ण शशाडूको तरद समुज्ज्यल, नासिक कूतन, काकिली 'कुहू कुहू' मलय समीरका मृदु । सुदर, कणपिचर २स मद्रश फेशकलाप पुञ्चित एवं मद हिलोल, सुमनो का मौरम, मनोकको गोक्हर, श्यामवर्ण, कर्ण कुण्डल अस्तो मुल अ शुमालाको तरह सुषमा, समो इस समय हृदयमें अपार मान पहुगती समुज्ज्यल एव वक्षस्थल विस्तीण था। इनके अतिरिक्त सोरि भारतक प्राचीन वियोन अपनी। उसकी गति मत्त मातगपत्. दोनो भजद पौन स्थल अपना वर्णाम यसतऋतुको मसल र सुमज्जिता तथा आयत करद्वय कठिनस्पर्श करि पर जघा सुपत्त एघ रूप यौचन सम्पन्ना तुराणो कहा है। माया कम्मुवत्, स्कग्ध उनत, जल दे। गूढ पर हृदय ___यह भारतपय दो यमतऋतुको माधुरी मदिमा पूर्ण देश सब सुलझणसे परिपूर्ण था। लालाभूमि ह । इसीलिपे मदनोत्सव वा बस तोत्सवादि इस तरह सर्व सुलक्षणयुक्त सुकुमागकृति धमत सतऋतुक अनुप अनुष्ठानादि इस भारतश्पर्म हो। फ उभय होते ही शीतल मन्द सुगध ममार प्रवाहित सर्वप्रथम प्रचलित हुइ जितु धीरे धार कालके उलट होने लगा द्र मराजि कुसुमित हो उठो, क्लफ्ट कोक्ति फरसे उन उत्मय अनुष्ठानादिक लुप्तप्राय हो जाने पर भी समूह पचम सुरमे गाने लगे, सरोवरोका जल स्वच्छ इम सयप्राचीन सभ्यदशक कई स्थानों में धमतोत्सव | मोतोके ममान मला उठा एव उस स्यच्छ सनिलम मनाया जाता है। मदनमहोत्सव देखा। श्रोडौं शतदर (पद्म) प्रस्फुटित हुए। वसम्तकालके अधिष्ठातृ देवकी उत्पत्ति मम्ब धर्म | (कानिकापु० ४ म०) पौराणिक उपास्यान इस तरह है- हरसम्मोहनक समय घसरतने दिम तरह कन्द एक समय विधाताके भाहानसे मम्मथ उनके समीप पंको सहायता को था इसके सम्बधमे उन पुराणों के आकर योषा-विमो । मैं आपके आदेशानुसार त्रिपुरहर सातौं अध्याय में लिखा है कि मदन जिस समय हरफ माहविधानमै समय , तु कामिनो हो मेरा हरका धर्यहरण करनेको उद्यत हुआ, उस समय मात्र है। यही महारत्र कामिनो आप सृष्टि परें। जिस घम तने हरक एका त माधम चारों ओर कि शुरु, ममय में शम्भुको सम्मोदिन करू गा, उस समय यह फ्ता वापुनाग, नागफशर, माधयो, मल्लिका पणमार कामिनी महादेवको वीच पोचमें और भी मुग्ध कर रस्त्रेगा तथा कुरया प्रभृति पुष्पोंको प्रस्फुटित कर दिया । यसत सुतरा इस कठोर तपस्या शिवको मम्मोहन करने लिये को सहायताम स्वच्छ मरोवरों में मचन्द मुम्बुरा कामिनोत्री बडो गारश्याना है। किंतु इस ममय पहे, शीनल म द सुगघ पयन प्रवाहित हान लगा, जितना शामिनिया है, उनमें दरके मनको मोहनपाला एक ! उससे शरफा समूचा आधम सुगधमय हो उठा।