पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७१२

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वसन्त-वस तथापिन् ७६७ शयन पप्य त जितना समय है, उतने समयके भग्दर हो। इसका सेवन करनेसे विविध रोगोंकी नाति होती है। सगोततत्वविदो ने वस तराग गानेका समय निर्धारण बस तकुसुमाराम ( स० पु०) १ कासाधिकार में एक क्यिा है। प्रकारकी यापघ । प्रस्तुत प्रणाली-मोना २माग, चादी सगोतदर्पणके मतानुसार यस तानुगामिनी रागिणी | २ माग ( चादीके बदले कोइ कोई कपूर ध्यपहार परते के साथ घसतराग वसतस्तुमें हो गाना चाहिये। हैं) रागा, मीसा, लोहा प्रत्येक ३ भाग, अम्र, म्गा, दिन रातके मध्य वसतराग गान करनेका ममय मुवा प्रत्येक ४ भाग इन सर्वोको एक साथ मल कर प्रभातसे भारम्म होता है। यथाक्रमसे गायका दूध इक्ष रस अडूसका छालका रस पसत राग आकार, ताल, व्य. सुर-कम तथा| लाक्षाका काढा पथरचुरका काढा, दलीमूरका रम, समयादिफे सम्व धमें घगाला सगात कपि राधामोहन ! मोगका रस, पद्मका रम मालती फरफा रस और सेनदास कृत सगीततरग प्रथम सपसे वणन किया। मृगनामि इन सब द्रव्योंसे भावना द कर दो रत्तीकी गया है। गोली बनाये। अनुपान घी चानी और मधु है। यह यसव (स० पु०) १ पुराण तथा नाटशेत प्रमिद ऋतु मेहरोगको सवम फायदम द ओपय है। इमसे बहुत पति देवताभेद । ये कामदेव तथा मदनक चिर सहचर रोग दूर होते है। चीनी और चन्दन के साथ सपन करने हैं। बसन्तदेयके आगमनसे पृथ्वी मचमुच ही माधुरी | मे अम्लपित्त आदि अनेक पोड़ा दूर होती है। मालासे परिप्लायित हो कर पोत्फुल्ल हो उठती है।। २ मोमरोगाधिकारमें एक प्रकारकी दवा। इसक भयोन श्यामल शस्यक्षेत्रनिचय चुतमुकुट कठिकाकीर्ण बनानेको तरफोय-धैकात (चुन्न!) १ भाग सोना नर शिलय समूह कोमल्पतरल्लियो के मध्य नमोन सम्र, मुक्ता, मूगा प्रत्येक २ भाग, रागा ३ भाग, रस रागस रजिन हो कर मानों उहाँकी दयासे अपूर्व श्री | सिदूर ४ भाग इन्हे नोवूक रसम, गायक धर्म, बम धारणा कर रहे हैं। उसी यस तऋतुको प्रेरणासे | बसकी जमक कामें गहू सकी छाल और इस रसर्म घरपामी यस तकालकी महिमा गनुभव करते हैं। सात वार भावना दे कर दा रतीको गोली तैयार करे। २ रोगभेद ( Small por) [मरिका देखो। ]३एक इसका अनुपान मधु है। इससे सोमरोग, बहुमूत्र, तालका नाम । ४ फूलोका गुच्छा। प्रमेह, तृष्णा, दाह तथा अन्याय रोग प्रशमित होते और यसन्तक ( स० पु०) वमत सहाया क्न् । १ पृथु शिम्य । वलको वृद्धि होती है। यह उत्रट रसायन औषध है। श्योनाक, सोपाढो। २कथासरित्सागर वर्णित रम घस तगढ-दाक्षिणात्यके वम्बइ प्रेसिडे साके अतर्गत एक पवान नमंसुहदके पुव । प्राचीन दुर्ग। प्रपाद है, कि ११९२६०मै पनाला राज यसन्तकाल ( स० पु.) वसत कार मधाः । यसत घंशफे क्सिी एक राजाने यह दुग बनवाया था। पीछे ऋनु, घस तका समय । महाराष्ट्राय अभ्युदय में वह गियाजा महाराज प्रधान यस तकुसुम (स.पु०) यस ते पुसुम यस्य । वृक्षविशेष।। चला गया। फिर १६६८ इ० रानारामफ निकरसे वसतकुसुमाकर (स० पु० ) पृयिशेष । मुगल सन्नाट औरङ्गजेबने तीन दिन घार युद्ध करनके याद यमतकुमुमाकर (स० पु० ) एक प्रकारकी औषध। यह दुर्ग अपने मातहतमें कर लिया। बहुत दिनोंसे यह इसके धनाका तरीश-मूगा, रससिदूर, मुना अन्न दुर्ग दुर्मेद्य कह र प्यास यो। सम्राट् दुर्गजयफ वाद प्रत्येर ४ भाग, रोहा, सीसा रागा प्रत्येक ३ भाग इन | उसश नाम 'कुलाद फते' रखा गया। सयों को एक साथ भडूस हल्दी इस्त्र, प, चन्दन और बस तगधिन् (स.पु.) युद्धमेद। (अमितविस्तर) कदलीमूलक रसमें, दूध तथा मृगनामिके काढ़े में यथा यसतघोपिन् (स.पु०) यसते वसतारे घोपनि कमसे सात पार भावना ६ कर दो रचाकी गोली पनानी चिरीति, पद्वा, यसतं घापति विज्ञापयताति बसत होती है। दोपानुसार अनुपान स्थिर करना होता है। घुप णिनि । कोक्लि । Vol xx 185