पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७१३

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७८ वसन्तजयसन्तपाल वसन्तज (स० त्रि०) वसन्ते जायते इति जन-ड । वसन्त- रोगहें बहुत फायदा पहुंचाती है। इसको मावा २ कालोत्पन्न । । रती है। वसन्तजा (सत्री०) वासन्ती लता।२ शुक्ल थिका, 'वसन्ततिलका (सं० स्त्री०) पफ वर्णवृत्त । सफेद जुही । २ चसन्तोत्सव । • सन्ततितक देखो। वसन्ततिलक (सं० ली०) वसन्तस्य तिलकमिव । १ पुष्प- वसन्तदूत ( सं० पु०) वसन्तस्य दून इव । आम्रक्ष, विशेष । २एक वर्पवृत्त । इसके प्रत्येक चरणमें तगण, | थामका पेड़ । २ फोफिल, कोयल। ३ पञ्चमराग। भगण, जगण, जगण, और दो गुरु, इस प्रकार कुल चौदह ! ४ चैत मास। वर्ण होने है। यसन्तदूती (सं० स्त्रो०) वसन्तस्य दृतीय ! १ पाटली- उदाहरण- वृक्ष । २ पांदरि, पाडर | ३ कोटिला। ४ माधवीलना। "फुल वसन्ततिलक तिलक वनाल्याः वसन्तदेव-एक प्राचीन कवि। लीनापर पिरकन फनमन गैति । बसन्तद्र (सं० पु.) वसन्तस्य यः। वानवृक्ष, गत्यंष पुष्पसुरभिर्मलयाद्रिवातो आमका पेड। याता हरिः स मथुरा विधिना हताः स्मः ॥" वसन्तपञ्चमी ( सं० स्त्रो०) वसन्तन्य पञ्चमी । श्रीपंचमी। (चन्द्रम०) मत्स्यसकके ५५वें पटलमें लिया है. कि सूर्य मकररागिस्य बसन्ततिलक (सं० पु०) १ सोपविशेष। यह औषध होनेले शुक्लपक्षीय पञ्चमीमें लक्ष्मीसह जगद्धात्रीको गुवज रोगर्ने प्रयोग की जाती है । २एक दुमरी औपच, यह स्नान करा कर पूजा करनी होती है। स्नान सबेरे कास श्वास आदि कितने गेगोमे इस्तमाल होती है। मरफतमय कुम्भमें नदी जलसे कराये। यह वसन्तपञ्चमी इसके बनानेका नराका-सोना १ नोला, मन सर्वपापनाशिनी है। इस दिन बसन्तको तथा पति- नोला, लोहा ३ तोला, रांगो २ तोला, पारा, सह फन्दर्पको भी पूजा करनी चाहिये। इसके अति- गंधक, मुक्ता, मूगा प्रत्येक ४ तोला ले कर गोखरू, रिक्त इस दिन वसन्तराग नुननेसे अभीष्ट श्रीलाम होता अजूस और इसमे नाचना दे कर जंगली हाधीके है। किसी किसी मुनिने इस वसन्तपञ्चमीको श्रीपञ्चमी गोई की मागमे मात दार पुटपाक करे और कस्तूरी और नामसे उल्लेख किया है। जो कुछ हो, इस दिन कपूर उसमें मिला दें। इससे कास, ध्यान, वात, पिन, एकाहारी रहना उचित है। इससे लक्ष्मी सर्वदा हो फफ, क्षय, शूल, पाण्डु, प्रहणी, वीस प्रकारका प्रमेह, प्रसन्न रहती हैं। (मत्स्यवक्त ५५ पटल ) विप, हृद्रोग और ज्वर आदि रोग नष्ट होने है। मृत्यु हरिमक्तिविलासमें लिखा है, कि माघमासकी शुक- अयके अनुसार यह धौपध वृष्य, बलकर तया पुष्टिकर। पञ्चमीके दिन महापूजा करनी होती है। इस पूजाको वि. मानी गई है। (रसेन्द्रसार वाजीकर०) पता यह है, कि इसमें नव प्रवाल, नव कुलुम और मनु. वसन्ततिलकतन्त्र (सली. ) तन्त्रप्रन्थमेव । लेपनदान पकान्त आवश्यक है। इनके अलावे बड़े वसन्ततिलकरस (सं० पु० ) कासरोगको एक प्रकारकी समारोहसे नीराजना, भक्तिसे वैष्णवोंकी सम्मानना एवं दवा। इसको प्रस्तुत प्रणाली सोना १ तोला, मन्न | वसन्तरागमय सङ्गीत और नृत्यादि करे। कहते हैं, २ तोला, लोहा : तोला, पाग ४ तोला, गंधक ४ तोला, कि श्रीपञ्चमीसे आरम्भ करके श्रीहरिके शयन पर्यन्त रांगा २ तोला, मुक्ता ४ तोला, मूंगा ४ तोला, इन सदों- वसन्तराग गानेका समय है, दूसरा समय निषेध बनाया को गोबरू, अडम और इन रसमे घोट कर गोइठेकी । है। वसन्तपञ्चमोके दिन इस प्रकार अन्दावनविहारी आगमें सात पहर तक पाक करे। पीछे औषध निकाल श्रीकृष्णकी पूजा करनेसे वसन्तके सप्लान प्रिय हो जाता कर उसके साथ मृगनाभि ४ तोला और कपूर ४ तोला है। श्रीपश्चमी देखो। मिला कर मर्ह न कर ले। यह दवा झास सौर क्षय-वसन्तपाल-महीपालका शिलालेख वर्णित एक राजकुमार।