पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११० . मई-गव ना (म. पु. ) गम-भावे विप, तुकच गतम् गमनम् | भद्र हस्ती ३ हाथ अचा, ५ हाथ लम्बा और ६ हाथ छाति छो-क । १ वृत्त, गाछ । २ लीलावतीके थेढ़ी व्यव- | तक चौड़ा पड़ता है। परन्तु मङ्काण वा सङ्कर जातीय हारान्तर्गतका एक गणित। २ जन सम्प्रदायके यतियों- गजको लम्बाईचौड़ाई का कोई भो ठिकाना महौं। की एक थेणी। ये आजन्म कुवार रहा करते हैं। समय ममय हाथोके शरीरसे जो पमोना आता, मदजन्न ये कहौं स्थायो रूपसे नहीं रहते। हमेशा चलते फिरते कहलाता है। भद्र इस्तीका मटजन हरा, मन्द्रका रहते हैं। गाड़ी आदिमें ये नहीं चढ़ते । पीला, मृगका काला और मोर्णका मिला हुआ होता मुनियोंके शिष्य परम्परामे सातवीं पोडीको गच्छ है। जिन हाथियों । होट, तनवा और मुंह कुछ और तामरोको गण करते हैं। म देखो। लाल, दोनों आंग्वं चिड़े पक्षोको ज मी. दांतोंका अगन्ना मन ( म० पु. ) गजति मदेन मत्तो भवति, गज-अच । | भाग चिकना और ऊच , मह चौड़ा चौकोर, गढ़ १जस्तो, हाथी। धनुष जै मो उठो हई, चौड़ी और बहुत ही डबी हई हाथी जङ्गली जन्तु होते भी मनुष्यक विशेष उप और मत्था कछुवे जैसा एक एक रूए को लकीरवाला; वार करता और पादरणीय होता है। पृथिवीक प्रायः | कान, ठाडो, ललाट ओर गुयदे श कुछ कुछ फैन्ना हुआ, सभी स्थानों में यह देख पड़ता है। आजकन्नको तरह बहुत नव अट्ठारह या बीम, देखनमें कछुवेकी पीठ-जमा पुराने समयमें भो हाथोका समधिक आदर रहा और वह चढ़ा-उतार, डम ३ धारियां पड़ी हुई और गोल, रुए मनुष्क बहुत काम आता था । ऋग्वेद के अनेक स्थानों में सुन्दर, मद सुगन्धि और मांससे पद्मगन्ध फुटता, वराह- हाथीका उल्लेख है। इसको छोड़ लगभग मभी पुराने मिहिरके मतमें अच्छे और राजाओंके शवहारयोग्य हैं। ग्रन्थों में हाथीको कितनो ही वर्ण ना मिलतो है । प्राचीन उगलिया बहुत लम्बी, मंडकी नोक लाल, चिङ्गाड़ ऋषिोंने हाथोका जातिभेद, लक्षण, रोग और चिकित्सा बादल जैमी बहुत ही भरी हुई और गन्ना गोल होनसे पादिका विषय निरूपम किया है। हाथीको राजा अपने काममें लायें। मदहोन, कुबड़ा, वराहमिहिरको वृहत्-मंहितामें भद्र, मन्द्र और बहुत छोटा, भेड़के मौंग जैसे टेढ़ दांतवान्ना, नख मृग---तीन जातीय हाथियोंका उल्लेख है। जिमके गिनती में न्य न वा अधिक हो, कोई अङ्गः न हो या दांतका वर्ण मधु-जैमा, अङ्गप्रत्यङ्ग गठा हुआ, न बहुत अधिक हो, कोषफल ( मुष्क ) देख पड़े, म डमें नोक मोटा न पतला हो, पतिशय बलशालो, रोढ़ धनुष-जैसो न रहे; शरीर भूरा, नीला या काला हो और छोटे पौर जाघ शूकर सदृश पाते, भद्रजातीय इस्ती बत दांतोंवाला या बे दांतका हाथो अच्छा नहीं। इस आते है। प्रकारकं गजाको परराष्ट्रमें भेज देना चाहिये। जिसका वक्षःस्थल पौर कक्षावसि ढीली, पेट लम्बा, वद्यक मतमें हाथी पर चढ़नसे वायु बिगड़ता, बलदे श बड़ा, चमड़ा मोटा, पुच्छका मूल म्यूल और अङ्ग ठहरता और भूख लगती है । ( राजवल . ) कालिका- सिंकी-जमी दोनों पाखें होतीं, मन्द्र हाथो कहते पुराणमें लिखा है कि कामोचत्त हाथी पर बैठना न है। होंठ, पूंछ और लिङ्ग छोटा; गला, दांत, सुंड, कान चाहिये। क्योंकि उससे इहकाल और परकाल दोनों चौर चारो पैर भी कोटे और दोनों पाखें मोटी रहनेसे मष्ट होते हैं। (बालिकापुराण ८५०) ज्येष्ठा, अनुराधा, मजको मृग कहा जाता है। जिन हाथियोंमें मित्र | शतभिषा, स्वाती, पुथा, मृगशिरा, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्री, रवि, सक्षम अर्थात् दोनों लक्षण मिलते, उन्हें सकीर्ण वा मार शाक वृहस्पति और बुधवारको गजारोहण प्रशस्त है। बातीय कहते हैं। इन ३ प्रकारके हाथियोंमें मृग ! मेष, कर्कट, तुम्ना और मकर लगनमें शुभग्रहको दृष्टि या बातीय ५ हाथ जचा, ७ हाथ लम्बा पौर ८ हाथ तक योग होने और उसो शुभग्रहयुक्त वा शुभग्रह-दृष्ट लग्न में चौड़ा हुआ करता है। मन्द्र हाथोकी उंचाई ४ हाथ, चन्द्रको भी दृष्टि पड़नेसे हाथोकी सवारीमें भलाई महीं सम्बाई ६ हाय पोर चौड़ाई ७ हाथ होती है। फिर ' होती। शुभ मुहूर्त को हस्ता, मूला, धमिष्ठा, अवखा.