पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१२७

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गनकुमार मुमि-गवचिमिटी १२॥ दौड़ा अर्थात् गजकुमार जबरदस्ती अच्छे अच्छे घरों- | गजकेशर (सं० पु. ) नागकेशर, कबाबचीनी। की सती स्त्रियोंका मतोत्व नष्ट करने लगे। एक दिन | गजकेशरी-उडिसाके केशरीवंशीय एक प्रतापी राज, पांसुल सेठको स्त्री पर इन्होंने दृष्टि डालो और उसे | बटकेशरीके पुत्र । आपने १२ वर्ष राज्य किया था। बिगाड़ भी दिया। सेठको मालूम पड़ते ही वह क्रोधा- उत्कल देखो। ग्निसे जल कर उनके विरुद्ध खडा त्रा; परन्तु राज- गजकेसर (सं० पु. ) एक प्रकारका धान जो अगहन कुमारके मामने उस वैचारको कुछ भी न चली। इमी महोनामें तैयार होता है। इमका चावल बहुत दिन प्रकार जो उनके विरुद्ध खड़ा होता था, वह जई मूलसे तक रहता है। नष्ट हो जाता था गजक्रोडित ( स० पु.) नृत्यमें एक प्रकारका भाव । एक दिन पुण्योदयसे नेमिनाथ भगवान् हारकामें गजगति ( म० स्त्री० ) १ हाथीको चान । २ हाथोकी पाये। बन्नभद्र, वासुदेव तथा और भी बहुतसे राज- मन्द चाल ( सुलक्षणा स्त्रो हाथोकी मन्द चालको तरह महाराज उनकी पूजाके लिए पहुंचे। उनके माथ चलती है)।३ रोहिणी, मृगशिरा और पाम शक्रको गजकुमार भी थे । भगवान्का उपदेश हुआ । स्थिति । ४ एक वर्णमाला वा वर्ग वृत्त । उपदेशका अमर गजकुमार पर खूब हो पड़ा। उन्हें । गजगमन ( म० पु.) हाथाको तरह मन्द गति, वह जो संसारसे घृणा हो गई। अपने किये हुए पापों पर ये | हाथोकी मदगति सरोखे चलता हो। बहत हो पचात्ताप करने लगे। उमी ममय भगवान्के | गजगामो ( स० पु. ) हाथोकी चालको तरह चलनेबाला, ममस उन्होंने दिगम्बरी दीक्षा धारण की और वनमें जा मन्द गामी। आत्म-ध्यानमें लीन हो तप करने लगे। मजगाह (हिं० पु. ) हाथोकी झल, पाखर । मुनि होनेका हाल जब पांसल सेठको मालूम पड़ा | गजगौहर ( फा• पु.) गजमोती, गजमुना । तब वह क्रोधी अपना बदला लेने के लिये वनमें पहुंचा गजघण्टा (स. स्त्री०) गजस्य घण्टा-६-तत् । १हाथी- और उन ध्यानस्थ गजकुमार मुनिके समस्त सन्धिस्थानों- के गलेका घण्टा। २ रङ्गपुर जिलाका एक वाणिज्य- में लोहके बड़े बड़े कोले ठोक कर चला आया। गज- प्रधान नगर। यह पक्षा. २५.४४४५"उ. और कुमार मुनि पर उपद्रव तो बड़ा ही दुःसह हुा; पर देशा० ८८.२० पू०में अवस्थित है। यहांसे चूना पौर वे जनतत्त्वके अच्छे अभ्यासी और विद्वान थे, इस लिये पाटकी रफ तनो अधिक होतो है। उन्होंने इस घोर वेदनाको एक कांटे चुभने के समान भी | गजचक्षुः (म० त्रि०) गजस्य व चतुर्यस्य वा गजख न समझ बड़ी शान्ति और धीरताकै साथ शरीर छोड़ा। | चक्षुरिव चतुर्यस्य इति बहुव्रो०। जिसको प्रॉन हाथी- यहांसे ये स्वर्ग में गये। (पाराधनाक थाकीप) को पाखौको सरह हो, विकतचक्षु । गजकुम्भ (हिं. पु०) हाथोका उभरा हुवा मस्तक, गजचम (स• पु.) १ गजका चमड़ा।२ एक प्रकारका हाथीके माथे पर दोनों ओर उठे हुए भाग। रोग, जिसमें शरीरका चर्म गजके चमड़े को तरह मोटा गजकुसुम (सं० ए०) नागकेशर।। पोर कड़ा हो जाता है । यह रोग सिर्फ मनुथ होको गजकुसुमा ( सं० स्त्री० ) नागकेशर । नहीं होता किन्तु घोड़े को भी होता है। गजकर्माशिम (सं० १०)ज कर्मो अनाति, प्रश-णिनि । | गजचिर्भिट (स० पु. ) गजप्रियथिर्भिट: । एक प्रकारका गरुड। ( शब्दरबा० ) पक्षिराज गरुड़ने युध्यमान गज- सरबज । कच्छपको भक्षण किया था, इस लिये इसका नाम 'गज- गजचिभिटा (स• स्त्री०) गजप्रिया चिभिंटा, मध्यस्तो । कूर्माशिन्' पड़ा । मनकापीय युर यो। इन्द्रवारुणी, इन्द्रायम, बड़ी इन्द्रफला । गजवणा ( सं० स्त्री० ) गज इव कृष्णा । गजपिप्पला, | गजचिभिटो ( स. स्त्री.) गजप्रिया चिभि टो। इन्द्र- बड़ी पोपर। (भाषाकाय) बारणी, इन्द्रायन। Vol.VI.82