पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१४५

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गढ़वाल भावरमें माथी और निचला पहाड़ियों में चोते मिलते हम जिलेमें कितने ही ऐसे मन्दिर हैं, जिनको सभी है। तेंदुवें गढ़वालमें मभो जगह हैं। भालू, गोदड़ | भारतवासी परम पवित्र ममझते हैं। इनमें बदरीनाथ, और जङ्गली कुतं भी पाये जाते हैं। इस जिलेमें | जोशीमठ, केदारनाथ और पाण्ड केखर प्रधान हैं। गोपे- चिड़ियां बहुत हैं। श्वरम १० फुट ऊंचे एक त्रिशूल पर अनेक मल्लराजाक गढ़वालका प्राचीन इतिहास अन्धकाराच्छन्न है।। विजयकी वर्ण ना अङ्कित है, जो मम्भवत: एक नेपाली सम्भवतः इसका कुछ भाग ब्रह्मपुर राज्यमें लगता था, नृपति थे यह लिपि ई० १२वीं शताब्दीकी है। मन्दिरी. जिमको बात ७वौं शताब्दीको चीन-परिव्राजकने कही। में या लोगोंक पाम कितने ही ताम्रफलक सुरक्षित पुराणानुमार ब्रह्मपुरका कत्य री राजवश जोशीमठका हैं, जो अपनी ऐतिहासिक दिलचस्पीके लिये बहमूख्य था, जहाँसे वह दक्षिणपूर्व और अलमोडाको फेल पड़ा। लगते हैं। स्थानीय वण नानुमार ई० १४वां शताब्दोके शेषभागको गढ़वालमै ३ नगर और ३६०० ग्राम हैं। आबादी अजयपाल नामक नृपति छोटे छोटे राज्यों को तोड़ करके कोई ४२८८०० होगी। इसका सदर पौरी एक ग्राम देवलगदमें बसे थे। परन्तु १७वीं शताब्दीके आदि मात्र है । सैक पीछे ८७ लोग गढ.वाली भाषा वाव- कालको उनके मनीपति शाह नामक किसी उत्तराधि हार करते हैं। प्रत्येक खेत पत्थरकी बाहरी दीवारसे कारीने श्रीनगर पत्तन करके प्रकृत स्वाधीन राज्य घेर दिया जाता है। यहां थोडी बहुत सब चीज उप- स्थापित किया। प्रायः १५८१ ई०को गदवालक राजा जती है । ५७८ वर्ग मोलमें मरकारी जङ्गल है। साल अलमोडाके चांदोंसे लड़े, जब रुद्रचन्द्र गदवाल पर चढ़े। और बांस बहत होता और जलानकी लकड़ी तथा घास थे। वह कई वार विफन्न हुए। १६५४ ई०को शाह | भी मिन्नती है । पहले स्थानीय व्यवहारकं लिये कुछ जहानने राजा पृथ्वीशाहको दबानेके लिये अभियान तांबा और लोहा निकाल लिया जाता था, परन्तु पब भेजा, जिमके फलमें देहरादून गढ़वालसे अलग हुआ। वह काम बन्द है। कुछ नदियों में अल्प परिमागा मिलता फिर कुछ वर्ष पोळे पृथ्वीराजने दारा शिकोहके लड़के | है। सनसे मोटा कपड़ा और रम्मी बनाते और कम्बल सलेमान शिकोहको जो भाग कर गढ़वालमें जा रहे थे | तैयार किये जाते हैं। दो एक जगह पत्थर पर नक्कामी लूट लिया और उन्हें औरङ्गजेबको मौंप दिया । अलमो भी होती है। तिब्बतके साथ गढ़वालका बड़ा व्यवसाय डाके जगत-चन्दने ( १७०८-२० ई.) राजाको श्रीनगरसे चलता है। वहांसे नमक, ऊन, भेड, बकरे, टट्ट पौर निकाल उसे किमी ब्राह्मणको प्रदान किया था, परन्तु सोहागा मंगात और अनाज, कपड़ा और नकद रुपया प्रदीप शाहने (१७१७-७२ ई०) गढ़वाल फिर स्ने लिया । पैसा पहुंचाते हैं। सब काम काज प्रायः भाटियोंके १७७८ ई०को गढ़वालके ललितभाहन कुमाज के राजाको हाथमें है। श्रीनगर और कोटद्वारा इस जिलेके बडो हरा अपने पुत्र प्रद्युम शाहको उस राज्य पर अभिषिक्त | बाजार हैं। सडक लगभग सभी कच्ची है। किया । १७०० ई०को गुरखे अलमोड़ा विजय करके | गढ़वालसमस्यान (केशवनगर) १ हैदराबाद राज्यकं राय- गढ़वालको ओर बढ़े थे, परन्तु तिब्बतमें घोनाओंसे | च र जिले की एक खिराज देनेवाली रियासत। इसका झगड़ा हो जाने के कारण लौट गये। १८०३ ई०को | क्षेत्रफम्न ८६४ वर्ग मील और लोकमख्या प्रायः ८६८४८१ उन्होंने फिर चढ़ाई करके गढ़वालको रौंदा और देहरा- | है। यह राज्य हैदराबादसे भी पुराना है । पाली दुन भी अधिकार किया। प्रद्युम्न शाह मैदानोंको भगे यहां सिबा ढलता, जो आज भी रायच र जिले में चाता पौर १८०४ ई०को देहराके पास अपने साथिया साथ | है। कृष्णा चौर सङ्गभद्रा इस राज्यकं दक्षिण और पबिम मी थे । १८१५ ई०को अंगरेजोको कुमाऊ' अधिकार अञ्चलमें प्रवाहित हैं। किया । १८३७ ई को गढ़वाल एक उपविभाग और २ हैदराबाद राज्य रायचूर जिले के गड.बाल सस. १८८१ को जिला बनाया गया। स्थान राज्यका प्रधान नगर । यह पक्षा० १६१४ ७०