पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१४६

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गढ़ा-गब और देशा० ७७१३ पू०में अवस्थित है। इसकी लोक- । बाटसमने अंगरेजो फौजक साहाय्यमे उन्हें निकाल ख्या कोई १०१८५ होगी। गढ़वालका दुर्ग राजा बाहर किया । यह राज्य संधियाके अधिकारमें तो रहा, सोमाद्रिन १७१०ई०को बनवा कर तैयार कराया था। किन्तु अगरेज गवर्नमेण्ट अपना हुक्म चलाने लगी। नास नगरमें रेशमी साड़ियां, रूमाल और जर न् किनार- | १८६१ ईमें अगरेजोने सेंधियाको दूसरी जगह दे करके भी बढ़िया धोतियां बनतो और लाखों रुपयको हैदरा इसको अपने आप अधिकार किया था। बाद आदि निकटस्थ स्थानों में जा कर बिकती है। पाजकल नगर दो भागों विभक्त है। बीचमें भड़ा (हिं० पु० ) गा देखो। सोनार नदी बहती है। नदीके उस पार हृदयनगरमें मलाई ( हि स्त्री०) १ गढ़नेका काम । २ गढ़ नेकी कारबारको बडो जगह है। यहां स्त्रियोंक पहननका मजदूरौ । अडी श्रीर पट्टी नामक वस्त्र बनता पोर प्रति शुक्रवार गंदकोट ( गढाकोट ) मध्यभारतके मागर जिले का एक को बाजार लगता है। एतदव्यतीत यहां पौष मासको विभाग । दमका प्रधान नगर भी गढ कोट ही है। वह एक बड़ा मला भी होता है। मोनार और गधैरी नदीके सोनार ओर गधेची नदीके सङ्गम पर अक्षा० २३ ४७, सङ्गमके पाम अची भूमि पर किला बना है। उसमें ७. ओर देशा० ७८.११ ३० पू०में मागर नगरसे बहुतमे घर है । १८५८ ई.में अगरेज सेनापति सर १३ कोम पूर्व को पडता है। मम्भवतः यह शहर गोंड. हरोजने उमको जीता था। नगरसे एक कोस उत्तरको 'सीगोंका बनाया हुआ है। १६२८ ई०को बुदेलखण्डके मद नमिहके प्रकाण्ड प्रासादका भग्नावशेष पडा है। चन्द्रशाह नामक किमो राजपूत मामन्सने गोडीको उसकी दीवार पाज भी नहीं बिगड़ी। यह प्रायः ६० निकाल करके गढ.कोट अधिकार किया और एक दुर्ग हाथ जचा होगा। एक घुमावदार जोनमे उस पर चढ़ा बना दिया था। पनाके बुदेला राजा छत्रसालक पुत्र जाता है। पदयशाहने चन्द्रशाह-वशीय किसी राजाको हलीके | गटि.या ( हि पु० ) गढ नेवाला, वह जो कोई चीज अन्तर्गत नायगुवान ग्राम अर्पण करके यह मगर ले | बनाता हो । लिया। उन्होंने नदीके दूसरे पार और एक दुर्ग तथा | गढ़ोई ( हि पु० ) किलादार, गढ.पति । मगर निर्माण करके उसका नाम हृदयनगर रखा था। गण ( स० पु० ) गण कम्मणि अच कर्तरि पच, वा। १७३८ ई०को हदय शाहका स्वर्गवास हुपा । पांच वर्ष १ समूह, ढेर। पछि योभासिद और उनके भाई पृथ्वीसिह दोनोंके | "गचामा वामपति। (बाबसनेयम ) पीच झगड़ा उठा था। पृथ्वीशाह पेशवाके साहाय्यमे, 'गणपति गणानां समाना पालक (महीधर) पपने पाप राजा बन बैठे। १८२० को नागपुरके २ प्रमथ, शिव सेवक। राजाने जव किले पर धावा किया, पृथ्वीसिपके वशीय 'म :बछच विरिति गम्: सादरीधामाष:।" (म घडूत १५) मदनसिंहने सड़ते लड़ते अपना प्राण दे दिया। मदन- सेनाको सख्या । सत्ताइस रथ, सत्ताइस गज, के लड़के अर्जुनसिंहने सेंधियाका पाश्रय लिया था। इकासी घोड़ा और एक सौ पैंतीस पदाति, सब समेत बनस लियाम वामिस्त नामक किसी युरोपीय सेनापति- दोसौ सत्तरको गण कहते । ४ चोर नामक गन्ध द्रव्य । प्रधिन सेंधियाने एक फौज भेज दी। युधमें नागपुर- ५ गणेश । "गवदोषा प्रवतंक:। (महानिर्वाचत.) विवाहमें "श्री सेनाके हारन पर अधियाने मालखन और गढ़ाकोट सरका और सडकीका सदभाव वा पसदभाव जाननका अधिकार करके शाहगढ. तथा अन्यान्य प्रदेश पर्जुन-। उपाय विशेष । ज्योतिषियोंने इसे तीन भागोंमें विभक्त सिंहको दे डाले और वाप्तिस्स साइव ससैन्य गढ़ाकोट किया है, यथा देवगण, नरगण और राक्षस गण । पूर्व सहने लगे । घोड़े दिनों बाद पर्जुनसिंहने चालाकी- फलानी, पूर्वाषाढ., पूर्व भाद्रपद, उत्तरफलानी, किसा होना था। परन्तु 4 महीने पीछे जमरस उत्तराषाढ, उत्तर भाद्रपद, भरणी, पादा, पौर रोहिणी