पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५५

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गणीभूत-गणेश ८ अनुत्तरोपपादक दशाङ्गः, १० प्रश्नवाकरण, ११ विपाक अत्यन्त चिन्तित और विपन हो गये। एक दिन हिरण्य- . श्रत, १२ दृष्टिप्रवाद इन बारहोंको गणिपिटक कहते हैं। गर्भ से उन्होंने अपने मनको व्यथा कह सुनाई। इस पर गणीभूत (सं० वि०) जो किमो गण या पक्षमें स्थित हो, हिरण्यगर्भने गणशको लेखक करने के लिये परामर्श गणाक्रान्त । किया। व्यामदेवने गणशको लिखने के लियं अनुरोध गणेय ( म. वि. ) संख्यय, गिनने योग्य, गिनतो लायक ।। किया। गणशन यह कहते हवे लिखना अङ्गीकार गणरु (सं० पु.) १ कर्मिकावृत्त । २ वेश्या। ३ हस्तिनो. किया कि यदि व्यामदेवको बोलनम बिलम्ब हो य: मादा हाथ। जिम कारण उनके दोषसे मेरी लेखनी विथान्त हो पड़े गणरुका ( मं० स्त्री०) गणरुष वेश्यास कायति के कः।। तो में कदापि लिख नहीं सकता । गणशनि लिखना आरम्भ कुटनी, दूती। किया और साम कहने लगे। जब वाम देत ध कि गणेश (मं० पु०) गणानामोश: ६-तत्। पार्वतोनन्दन, गिरिजा- अब अधिक कहा नहीं जाता तो उमी ममय दो एक के पत्र । शनयरको दृष्टि पडनेसे इनका मिर कट गया था। कूट लोक रचना कर बोलते जात थे। गणेशको इस इस पर विष्णुने एक हाथीका मिर काट कर धड पर मंयो, कूट नोकका अर्थ शीघ्र ममझमें न आनक कारण लेखनी- जित कर दिया, इमी कारण इनका नाम गजानन पड़ा। को कुछ काल के लिय रुक जानी पड़ती थी हमी अवसर गजानन खो। महावल क्षत्रियान्तकारो परशुराम क्षत्रियों पर धाम मनही मन बहुत लोक रचना कर डालते थे। को विनाश कर शिव और पावतीको नमस्कार करनके (भारत १३१.१०) लिये कलाम गये। उम ममय शिव और पार्वतो गाढ़ी जब कोई कार्य प्रारम्भ करना होता है तो उस निद्रामें पड़े और गजानन हार पर पहरा देते थे जिमसे ममय गणशकी मूर्तिको स्मरण करनमे वह कार्य निर्विघ्न उन्होंको निद्रामें किमी प्रकारका विघ्न न हो। परशुराम समाप्त हो जाता है। इमो कारण गणेशको मिडिदाता भी मे आकर कहा कि मैं शिव और पार्वतीमे भेंट करना कहा करते हैं। आस्तिक हिन्द-लेखक सबसे पहले चाहता हूं। किन्तु गणेशने उन्हें वाधा देते हुए कहा, गणेशका नाम लिखा करते हैं। उन्होंका विश्वास है कि प्र पभोकदोनों निद्राके पसीभूत हैं। कृपया गणश एक प्रमिह लेखक और सिद्धिदाता हैं। इसो थोडी देर विलम्ब जाइये, जागने पर उनसे सामाग लिये इनका नाम पहले लिखनमे किमो प्रकारके बिन- कर सकते है । इम पर परशुरामजो सन्तुष्ट न हुए । की सम्भावना नहीं रहती है। एक दूसरेको मीठो बागमे कुछ काल तक ममझानको स्कन्द पुराणके गणशखहमें वक्रतुण्ड, पपिन, चिन्ता- चेष्टा करते रहे किन्तु निष्फल हुआ। तब परशुरामजी मगि तथा विनायक प्रभृति रूपमि गणेशके अवतार- क्रोधित हो पर और गणेशको अवहेलना करते हुए भीतर की कथा लिखी है । गणपति-तत्त्व नामक ग्रन्थके मतसे माने लगे। इस प.वै खनको हासे पकड़ समस्त त्रिभु गणेश ही परब्रह्म, श्रुति स्म ति वर्णित परमब्रह्म, परमे- वनमें शग कर सड़ दिया। परएरामने सज्जित हो श्वर हैं। गणपति-तत्त्वमें लिखा है कि गणेश सर्वेश्वर, व.९ प्रपते शुको बाहर निकाला और उन पर निक्षेप भूत, भविष्य और वर्तमानको हालत जाननेवाले हैं। मूर्ति- ।। परशुको आघातसे तो गणेशका विनाश नहीं | भेदसे यही मस्तकके प्रतिपालक हैं, फिर ममस्त जन्य- है लेकिन एक दांत जड़से उखड़ गया। इसी कारण पदार्थ इन्होंमें लय हो जाते हैं तथा य हो प्रधान अर्थात् गणेश एकदन्त कहलाते हैं। (वय वर्ष पुगणेशस) प्रकति एवं क्षेत्रन अथ त् जीवात्माके अधिपति है। गणेश एक प्रसिद्ध लेखक थे । महाभारत में लिखा इनकी आराधना करने से मुक्तिलाभ होता है। जिस है कि सत्यवतीनन्दन व्यासदेव योगवलसे विपुलायतन तरह शक्तिके उपासक शाक्त और विष्णुके उपासक वैष्णव महाभारत मनही मन रचे थे. किन्तु लेखकके, प्रभावसे | कहलाते उसी तरह जो गणपतिके उपासक हैं वे गाण- । जनसमाजमें उसका प्रचार न कर सके । इसलिये वे | पत्य कहलाते हैं। हिन्दू सिद्धिदाता गणेशको पूजा सबरे Vol. VI. 39