पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६९

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गतायु:-गतात वा आदि उपद्रव उठ खर्ड होनसे बलवान रोगी भो मर उभयपाव स्फोत पड़न, अर्धाङ्ग में शोथ बढ़ने, ममस्त जाता है। जिम रोगोंक चक्षुजलसे मुख भर जाता, अङ्ग शुष्क पड़ने, स्वर नष्ट, होन, विक,त वा विकल दोनों परोसे अविरत पसीना चला आता, चक्षु अाकुलित लगने, दन्त, मुख, वा नख प्रभृति स्थानों में विवर्ण पुष्य दिखाता, जिमका शरोर हठात् बहुत ही हलका या जैसे चिह्न पड़ने. कफ, पुरोष वा रेतः जलमें मग्न रहन, भारी हो जाता या जिमका वमन कीचड, मछली, दृष्टिम डलमें भिन्न प्रकार विक तरूप देख पड़न, केश चरबी, तेल य घो जेमाग धाता, वह रोगी अवश्य वा अङ्ग तेलात जमा लगने, अतीसार रोगमें अरुचि परलोक पहुंचता है । मन्तको कपाल तक जं भर तथा दुव न्नता वढ़ने, फेणक माथ पूयरक्त वमन करने, आन, मङ्गाल कामनामे प्रदत्त वलि का प्रभृतिके न खान काशरोगमें तृणाके अभिभूत रहने क्षोणता, वमन तथा और रतिशक्ति एकबारगी । बिगड़ जानमे मृत्यु उप अरुचि लगन, भग्नम्वर तथा वदनामे दबने, हाथ, पैर स्थित होने में कोई मन्दह नहीं। जिम रोगोको ज्वर, और मुह सज उठने, क्षीण पड़न वा रुचि हीन रहनः अतीमार और सूजन तीनों धर दबाते अ र जिम के माम नाभि, स्कन्ध एव हम्तपद शिथिल पड़न और ज्वर तथा तथा बलमें सोणता पात, उमकी कभी भी चिकित्सा नहीं काशसे अभिभूत रहने पर रोगीका जीना कठिन है। चलाते। शरीर अतिशय लोग होन पर रुचिकर, मिष्ट पूर्वाग्में आहार करके अपराहमें वमन करने और और हितकर अन्न न हाग क्षुधा वा दृषणा न मिटनम पामाशयमें अम्लरम उत्पन्न न होतं भी अतीमार जमा मृत्य को आमन ममझना चा ये। ग्रहणी, शिरःशूल, मन निकलन, भूमि पर पतित हो बकरी की तरह बोलन, कोष्टशूल, अतिशय पिपामा और बनहानि जिमको एक कोष शिथिन्न, उपस्थ मङ्गचित तथा ग्रीवा टूट पड़ने, हो माथ आतो, उमक बचनको कोई आशा नहीं देवाती। नोचेका प्रोष्ठ दंशन वा ऊपरका ओष्ठ लेहन करते रहने (सपत म.व २१ १०) अथवा कंश वा कर्ण नोच रखन, देवता, हिज, गुरु, शरीरका जो अङ्ग स्वभावत; जमा होता, उमसे उन्नटा सुहट् एव वैद्यको बुग ममझन, पापग्रहोंके अधिकतर पड़ने पर मृत्य का लक्षण ठहरता है। शरीर गोर मे मन्द स्थानोंमें जा करके जन्मनक्षत्रको पीडित करने काला तथा कालमे गोरा पड़न, रक्त प्रभृति वर्गाका अन्य अथवा उल्का वा वज्र द्वारा अभिहित पड़नसे मनुषा प्रकार वर्ण लगन, स्थिरकै अस्थिर, स्थ लके कृश, कुशक गतायुः कहलाता है। स्त्री पुत्र, ग्रह, शयन, आसन, यान, स्थ न दीर्घक ग्व, और खर्वक दोघं बनने अथवा कोई वाहन और मणि रत्न प्रभूति गृहक उपकरण द्रव्यांका अङ्ग एकाएक ठगड़ा, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष्म, विवर्ण वा टुल क्षण प्रादुर्भाव होतं भी आयुःको शेष ममझत हैं। अवमन्न पड़नसे थोड़े दिनोंमें हो कानकवलित होते बन्न और मामहीन रोगीको चिकित्सा करते भी यदि रोग हैं। शरीरका कोई अङ्ग अपने स्थानसे मवलित, उत् वृद्धि होती, तो वह मन का ही लक्षण देख पड़ती है। क्षिप्त, अक्षिा , पतित, निर्गत, अन्तर्गत, गुरु वा लघु जिमको उत्कट पोड़ा एककालको हठात निवृत्त हो होना भी स्वभावके विपरीत है शरीरमं असम्मात मग जाती अथवा जिम शरीरमें प्राहाकी कोई बात नहीं जैसे चकत पड़ने, ललाटको मभो शिराए झलकन, दिखाती, उमकी मौत शीघ्र ही आती है। (सव स म ३२१०) नाकको डण्डीमें फोडाफुन्मी उठन, मवेरे मस्र्य से पमोना गतात वा ( मं० स्त्री० ) गतं नव तं तवं रजो यममा:, निकलन, नेत्ररोग न रहत भो आंसू चलने, मम्तकमें गोबः बहवी । वृद्धा स्त्री, वह भारत जिमर्क जमो धुलि उड़ने अथवा उम पर कबूतर, कङ्ग आदि वर्ष से अधिक की हो। वैद्यकशास्त्रक मतान नार बारह पक्षो गिरने, भोजन न करते भी मलमत्र पड़ने वा भोजन वर्ष मे ५० वर्ष तकको त्रियांका ऋतु या रजोदशन करनेमे भो मलमत्र न उतरनः स्तनमल वक्षःस्थल वा होता है। इनके बाद स्त्रीको गतात वा कहते हैं। हृदयमें अतिशय वेदना उठने, किमी अङ्गका मध्यस्थन्न "हा माद कर दूय मा५चात् स वियः । स्फीत अथवा उभय पान कृश वा मध्यस्थल क श तथा मामि मामि गहरा प्रत्यवान वसवैत ।" (भाबकास)