पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८४

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१८२ गग्धपिण्डौरः-- गग्धवणिक गन्धपिण्डौरः ( स० पु०) कृष्णमदनवृक्ष । | के अन्तर्गत और चांदसौदागरके वंशज बतलाते हैं। गन्धपिशाचिका ( म० स्त्रो० ) गधेन पिशाचान् किरति कोई कोई पद्मपुराणोक्त शाहराजको ही इन लोगोंके दूरीकरोति यहा गंधन पिशाचान् कृणाति हन्ति पिशाच- वंशका आदिपुरुष मानते हैं। आज कलके वैश्यको नाई क-ड । धूप धूपगधसे पिशाचगण दुःखित हो कर भाग ये यज्ञोपवीत धारण नहीं करते और शट्रके जैसा एक जाते हैं । इम लिये धपका नाम गंधपिशाचिका पड़ा है। मास मृत अशौच मानते हैं। गन्धपीता ( म० स्त्रो० ) गन्धयुक्त पोत पत्र यसपा: "बहान राजापुवाच जायते गांधिको यषिक । बहती टाप् । १ गठीविशेष, कपूर कचरी। २ गन्धपत्रा। गन्धचन्द नध पादिक्रय विक्रयकारकः॥" गन्धपुष्प ( म० पु०) गधयुक्त पुष्य यम्य, बहनो। (ब्रह्मावत पुराण, परशरामपजति ) १वतमवृक्ष, वतका पड़। २ अङ्कटवृक्ष, अकोल, अर्थात् अम्बष्ठक औरस और राजपूत-महिलाक 'अकोला। ३ बवारतक्ष, बहार-नमोरा। अशोक गम मे गधणिकका जम्म है । गध, चन्दन और धपा- वृत्त । (को०) गधथ पुष्यश्न, इतरेतरहन्छ । ५ गध दिका क्रय, और विक्रय इनकी उपजीविका है। और पुष्य । प्रवाद है कि कुलादामी कंसराजको मभामें रहती तथा "पभाव गधयामा के वलेन लेन वा।' (चारिकततत्व) गजसदनमें फ ल चन्दन प्रभृति विविध सुगधि द्रवा मंग्रह ६ गन्धयुक्तपुष्प, वह फल जिममें ग'ध हो। करती थी। एक दिन जब श्रीकणचन्द्रजी मथ रामें कंस गन्धपुष्पक ( म० पु० ) गधपुष्प मज्ञार्थ कन् । व सम पुर जा रहे थे, माग में ही उन्हें कलादासीसे भेंट हई। वृक्ष, वतका गाछ। श्रीकृष्णन उम दामीको सुन्दर बना कर अपनी पटराणी गन्धपुष्या (म'. स्त्री० ) गधयक्त पुष प यस्याः, बना लो । कुनागभप्रसूत वालक ही मबसे पहले गध- बहुव्री० । १ नोनीवृक्ष, नीलका पेड़ । २ केतकोवृक्ष। द्रवा विक्रय करत रह तथा वेही गधवणिक के आदि ३ गणिकारी वृक्ष, गनियारीका पेड़। पिता ठहराये गये । इसके अतिरिक्त एक दूसरा प्रवाद है गन्धप्रिय (म त्रि०) गध: प्रियो यस्या, बहुव्री० । जिसकी कि देवादिदेव शिवजीको दुर्गाके साथ विवाह के गध अत्यन्त प्रिय हो। समय गधवाका प्रयोजन पड़ा। इस लिये उन्होंने गन्धप्रियङ्ग, ( म. स्त्री० ) प्रियङ्ग लता, फलफेन। पहिल अपन कपालसे "देश" गधव णक , बगलसे गन्धप्रियङ्ग का ( म० वी० ) गधप्रधाना प्रियङ्ग का । “शङ्ख," नाभिसे “ऑउत" और पादसे “छत्रिश" उन चार प्रियङ्ग विशेष । प्रिया देखो। मनुषीको मृष्टि की। गन्धफणिजाक ( म० पु० ) गधप्रधानः सणिज्मकः । गन्धषणिक् जातियों में ऑउताश्रम; कृत्रिशाश्रम, देशा- रततुलमोवृक्ष, लाल तुलसीका पेड़ । श्रम और शङ्कायम येही चार नामधेय श्रेणी वर्तमान हैं। गन्धफल ( म० पु० ) गधयुक्त फन्न यस्य, बह वी० । १ इनके गोत्र आलम्यान, भरहाज, काश्यप, कृष्णात्र य, मौप कपित्यवत, कथका पड। २ विल्ववृक्ष, बेलका पेड़। गल्य, नृसिंह, राजऋषि, सावर्ण और शाण्डिल्य हैं। देशा ३ तेजःफतवृक्ष। श्रमी गधवणिकोंमें शाह, साधु, लाहा और खाँ एवं गन्धफला ( म० स्त्री० ) गधयुक्त फल यस्याः, बहुव्री० आँउताश्रमोमें दत्त, दे, धर, धार, कर नाग, प्रभृति पद- टाप । १ प्रियङ्ग वृक्ष । २ मेथिका, मेथी। ३ विदारी। वोयां पायी जाती हैं । इस जातिमें वाल्यावस्था में ही लड़ वोयां पायी जाती हैं । रम जा ४ शजकोच, शलईका पेड़। कोको सादी होती है। वर तथा कन्या पक्षवालेको सांसा- गन्धफली (म० स्त्री०) १ चम्पाकी कली। २ प्रियङ्ग । रिक अवस्थानुसार कन्यापण दिया जाता है । विक्रमपुरक गन्धवणिक् (मं० पु०) गधस्य प्रामोदयुक्त द्रवास्य वणिक, गधवणिक उच्चवंशक है। इस लिये नीच घरमें कन्याको ६.तत् । वङ्गवासी जातिविशेष । इस जातिको उत्पत्तिके देनेसे वे अधिक रुपये लेते तथा पुत्रादिके विवाहमें अल्प मनवमें बहसोका मतभेद है। ये पपमको वैश्यजाति पण देते हैं। जब लड़का विवाह करने आता है तो उसे